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गौण होने लगे विकास के मुद्दे

26 मई 2018

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इस समय देश की राजनीति किधर जा रही है, कुछ कहा नहीं जा सकता। विकास की तो शायद ही किसी को फिक्र हो। न कोई विचार है, न चिंतन। सियासत करने वालों पर तो सिर्फ सत्ता की भूख हावी है। सच कहा जाए तो धर्म ही एक ऐसा मुद्दा है, जिसके सहारे सत्ता सुख के चरम तक पहुंचा जा सकता है। बस, तरीका आना चाहिए उसको भुनाने का। विकास के इतर चर्चित विषय हैं, जिनका देश के विकास में जरा सा भी योगदान नहीं है। जैसे-राम मंदिर, लव जिहाद, घर वापसी, गौ रक्षा-गौ मांस, सहिष्णुता, असहिष्णुता, शाहरुख खान, आमिर खान, सलमान खान, कन्हैया, भारत माता की जय, वंदे मातरम्, कश्मीर सर्जिकल स्ट्राइक, तलाक व पर्सनल लॉ कानून, 500, 1000 के नोट बंद होना, अजान... आदि। इन नए मुद्दों ने पूरे तीन साल मीडिया को व्यस्त रखा। वहीं आम आदमी की बुनियादी जरूरतों से जुड़े सवालों को सिरे से ही गायब कर दिया।

काबिले गौर यह भी है...

  • क्या इन तीन सालों में कभी आपने टीवी पर सरकारी शिक्षा के गिरते स्तर पर बहस देखी?

  • ग्रामीण भारत में आज भी जारी बाल विवाह की समस्या पर एक्सपर्ट्स की कोई टीम टीवी पर देखी?

  • सड़को पर भीख मांगते और भूख से बिलखते बच्चों के पीछे लगा कोई कथित मीडिया कर्मी को देखा?

  • नालों-फुटपाथों पर जिंदगी को कूडे के ढेर की तरह ढोते हुए लोगों के लिए किसी को चिल्लाते हुए देखा?

  • आत्महत्या करते किसानों के बारे में किसी को सहानुभूति जताते और ठोस समाधान तलाशते हुए देखा?

  • बेरोजगारी की मार झेल रहे नौजवानों के हक में किसी को बात करते हुए देखा?

  • कुपोषण की शिकार महिलाओं और बच्चों की सहायता और शिशु-मातृ मृत्यु दर में कमी के समाधान तलाशते हुए किसी जिम्मेदार को देखा?

  • गरीब बच्चों को आर्थिक मदद के लिए स्कॉलरशिप के बारे में कोई बहस होते हुए सुना?

  • जेलों में बंद बेगुनाह नौजवानों की रिहाई के बारे में मीडिया को बहस करते हुए देखा?
    व्यर्थ के मुद्दों पर मीडिया को व्यस्त रखकर बहुत बड़े फायदे उठाए जा रहे हैं और हमें इसका एहसास तक नहीं है।

  • सर्जिकल स्ट्राइक से जी भर गया हो तो अब नया शगूफा-समान नागरिक संहिता तैयार है।

  • तीन तलाक पर बहस करके राष्ट्रवाद का राग अलापना कहां की समझदारी है। मामला कोर्ट में है, फिर भी इस पर मुंह चलाए जा रहे हैं।

आखिर कब तक...???

  • आखिर हम कब तक इन मुद्दों को हवा देते रहेंगे? जिसका देश को कोई फायदा नहीं।

  • नाकामी और काले कारनामों को छुपाने और देश का बंटवारा करने की साजिश रचने वालों का शिकार होते रहेंगे।

  • ’अच्छे दिन आने वाले है’ सिर्फ एक जुमला सुनकर खुश होते रहेंगे।

उठो और जागो। आपके जागने से आपका ही भला हो गया तो देश खुद तरक्की राह पकड़ लेगा। अभी इतना ही, बाकी फिर...

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सर तो कटा सकते हैं, सर को झुका सकते नही...

29 मार्च 2018
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इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके...यह देश है तुम्हारा नेता तुम्हीं हो कल के... सचमुच शकील बदायूंनी के ये गीत नहीं बल्कि एक आंदोलन है। बरसों पुराने ये नगमे आज भी अमर और लाजवाब है। इनको सुनकर देश के जांबाज सैनिकों के खून में दुश्मन के खिलाफ उबाल आता है तो नौनिहालों के

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गौण होने लगे विकास के मुद्दे

26 मई 2018
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इस समय देश की राजनीति किधर जा रही है, कुछ कहा नहीं जा सकता। विकास की तो शायद ही किसी को फिक्र हो। न कोई विचार है, न चिंतन। सियासत करने वालों पर तो सिर्फ सत्ता की भूख हावी है। सच कहा जाए तो धर्म ही एक ऐसा मुद्दा है, जिसके सहारे सत्ता सुख के चरम तक पहुंचा जा सकता है। बस, तरीका आना चाहिए उसको भुनाने का

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गौण होने लगे विकास के मुद्दे

26 मई 2018
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मुस्कुराती बहारों को नींद आ गई

26 मार्च 2019
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मुस्कुराती बहारों को नींद आ गईआज यूं गम के मारों को नींद आ गई,जैसे जलते शरारों को नींद आ गई।थे ख़ज़ां में यही होशियार-ए-चमन,फूल चमके तो खारों को नींद आ गई।तुमने नज़रें उठाईं सर-ए-बज़्म जब,एक पल में हजारों को नींद आ गई।वो जो गुलशन में आए मचलते हुए,मुस्कुराती बहारों को नींद आ गई।चलती देखी है 'अरश

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