ए ज़िन्दगी और सब कर मगर
मुझे और शर्मिन्दा मत कर
फरेब कि इस दुनियाँ मे
मुझे मार कर , फिर से ज़िन्दा ना कर
ना दे कोई ईनाम दे, ना दे कोई दुआ मगर
मेरे गम से मेरा दिल हल्का तो कर
ए जिन्दगी और सब कर मगर
मुझे और शर्मिन्दा मत कर
मेरे शहर मे अजनबी हु मैं
उनके घर के नीचे खड़ा हु
ए मौत दो पल का सहारा तो दे
वो आ जाए नज़र , ऐसा एक पहर तो दे
फिर मर जाऊ चाहे सो बार
मरने से पहले मत मार मगर
ए जिन्दगी और सब कर मगर
मुझे और शर्मिन्दा मत कर
ख़ुदा के मन्दिर मे ख़ुदा तो नहीं मिला,
मगर कुछ लोग मिल गए
बोले मुझे देखकर यू वो
इसको बैठा दो आज,
ख़ुदा कि जगह पत्थर बनाकर
फ़रेब कि इस दुनियाँ मे
मुझे मार कर, फिर से जिन्दा ना कर