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प्यार एक रूप अनेक

14 जून 2018

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" प्यार क्या है " सदियों से ये सवाल सब के दिलो में उठता रहा है और सदियों तक उठता रहेगा .इस सवाल का जबाब देने की सबने अपनी तरफ से पूरी कोशिश भी की है ." प्यार" शब्द अपने आप में इतना वयापक और बिस्तृत है की इसकी वयाख्या करना बड़े बड़ो के लिए भी काफी मुश्किल रहा है तो हम जैसे छोटे कलमकारों की क्या बिसद जो इसके बारे में कुछ लिखे .लेकिन फिर भी मैं ये हिमाकत कर रही हु .अपने जीवन के अनुभव से जो कुछ मैंने जाना और समझा है वही आप सब से साझा कर रही हु.

" प्यार " शब्द तो एक है लेकिन इसके रूप अनेक है.माँ बाप से प्यार ,भाई बहनो से प्यार,पति- पत्नी का प्यार, दोस्तों का प्यार, प्रेमी- प्रेमिका का प्यार और भगवान- भक्त का प्यार. ये सब तो प्यार के ही रूप है लेकिन देखा ये जाता है कि इन सारे प्यार के रूपों में सब से जयादा चर्चा सिर्फ दो रूपों की होती है. उनके ही किस्से कहानिया हमेशा से सुनने को मिलते आ रहे है. वो है प्रेमी-प्रेमिका का प्यार,और भक्त का भगवान् से प्यार .बाकी प्यार जैसे माँ बाप से बच्चों का प्यार, भाई बहन का प्यार और दोस्ती के किस्से यदा कदा सुनने को मिलते है. वैसे प्यार का सबसे पवित्र और अनोखा रूप भगवान् से भक्त का और एक माँ का उसके छोटे बचो से प्यार ही है. इससे सुन्दर और पवित्र प्यार का और के रूप हो ही नही सकता है. लेकिन इतिहास उठा कर देखे तो सबसे ज्यादा प्यार के फसाने प्रेमी प्रेमिका के ही मिलते है. राधा-कृष्ण,हीर-राँझा, लीला - मजनू ,सोहनी-महिवाल और न जाने कितने किस्से है इस प्यार के अनादि कल से अब तक.सारे फिल्मो की कहानिया भी इसी प्यार के ही ऊपर बनती है. यह तक की प्यार शब्द का नाम आते ही सबके जेहन में सिर्फ और सिर्फ एक लड़का-लड़की का प्यार ही आता है.तो क्या वाकई कुछ खास बात है इस प्रेमी प्रेमिका वाले प्यार में?तो क्या बाकी और सारे प्यार का कोई महत्व नहीं? मेरे जेहन में बचपन से ही ये सवाल उठता रहता था. काफी जादो जेहाद रहती थी मेरे दिल में कि " ऐसा क्यों है."उम्र के तीसरे पड़ाव में हु मैं और आज सरे जवाब मुझे थोड़े बहुत समझ आरहे है.

तो शुरू करते है माँ-बाप के प्यार से.ये रिश्ता हमे ईश्वर की तरफ से मिलता है, कहते है कि हमारे अच्छे बुरे कर्मो के रूप में ही हमे अच्छे या बुरे माँ बाप मिलते है. तो ये हमारी किस्मत हुई और इसी खून के रिश्ते से हमारे बाकि रिश्ते जैसे भाई-बहिन वैगेरह-वैगेरह जुड़े होते है. ये सरे रिश्ते अधिकार और कर्तव्य के डोर से बंधे होते है. जब तक हम बचे होते है तब तक हमारा किसी के प्रति कोई कर्तव्य नहीं होता सिर्फ और सिर्फ हमारा सब पे अधिकार होता है. उस वक़्त हमे माँ-बाप का भरपूर प्यार मिलता है और हम भी उन्हें बेहिसाब प्यार करते है. भाई-बेहेन के रिश्तो की तो बात ही क्या. वह तो न अधिकार होता है और न कोई कर्तव्य.होता है तो सिर्फ प्यार. यह तक की छोटी छोटी बातो पर झगड़े भी बड़े प्यारे होते है. रूठना-मानना, लड़ना-झगड़ना फिर भी एक दूसरे पर जान देना. लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते है और अधिकार के साथ साथ कर्तवय भी शामिल होने लगता है फिर इस अधिकार और कर्तवय रुपी डोर के बीच स्वार्थ की गांठे पड़ने लगाती है और धीरे-धीरे प्यार की जगह स्वार्थ लेने लगता है. ये स्वार्थ आपस में मनमुटाव लाता है और फिर दिलो में दूरिया आ जाती है. अक्सर ये दूरिया इतनी बढ़ जाती है कि भाई-भाई हो या भाई-बहिन एक दूसरे की सूरत तक देखना नहीं चाहते. माँ-बाप का प्यार भी इस स्वार्थ रुपी गांठ से अछूता नहीं रहता. बच्चो को माँ-बाप बोझ लगने लगते है और माँ-बाप को वो बच्चे जो आर्थिक रूप से थोड़े कमजोर होते है. इस रिश्ते को कमजोर करने के कुछ और भी कारन होते है जैसे दूसरे परिवार से बहु या दामाद के रूप में नए सदस्य का घर में आना और उनका एक दूसरे को दिल से स्वीकार नहीं करना. इस तरह माँ-बाप और बच्चो के बीच के प्यार की तपिस को स्वार्थ ठंढा कर देता है. ये लगभग हर घर की कहानी है. वैसे इसमें अपबाद भी है तभी तो चाँद किस्से माँ-बाप और भाई बहन के प्यार की भी है. लेकिन आमतौर पर इन रिश्तो का प्यार वक़्त के साथ स्वार्थ की बलि चढ़ जाता है.

अब प्यार का दूसरा रूप वो है " दोस्ती " का. दोस्त हम बड़ी सूझ-बुझ के साथ अपने स्वभाव के अनुकूल ही बनाते है यु कहे की ये रिश्ता हम अपने दिमाग और बुद्धि से खुद चुनते है. दोस्ती एक अनमोल धन है जो जितना मिले कम ही लगता है."दोस्ती" जिसमे सबसे ज्यादा सुकून और मस्ती होती है. दोस्ती में हर ख़ुशी और गम बेझिझक हो कर बाँट लेते है. यह अधिकार और कर्तवय भी नहीं होते है सिर्फ प्यार होता है.फिर भी ये रिश्ता टिकाऊ नहीं होता. क्युकि वक़्त के साथ कुछ मज़बूररियो के कारण ये रिश्ता दम तोड़ देता है. जैसे लड़कपन के दोस्त, स्कूल के दोस्त, फिर कॉलेज के दोस्त,ये सरे दोस्त मज़बूरी बस ही वक़्त के साथ छूटते चले जाते है. और धीरे धीरे धूमिल भी हो जाते है. इसमें भी कुछ अपवाद है. कुछ दोस्ती उसी प्यार और खुलुस के साथ ता उम्र जिन्दा रहती है. तभी तो दोस्ती मूवी भी बानी है.

पहला प्यार का रिश्ता देता है वो है खून के रिश्ते, दूसरा प्यार का रिश्ता जो हमखुद बनाते है वो है दोस्ती.अब आता है तीसरा प्यार का रिश्ता वो है पति-पत्नी का. ( वैसे तो कहते है कि " जोड़ियां ऊपरवाला बनता है."लेकिन मैं ये नहीं मानती.) इस रिश्ते को तो बनाने में तो बहुतो का हाथ होता है. परिवार, समाज, जाती-धर्म, परम्परा ये सरे मिल कर पति-पत्नी के रिश्ते को बनाते है. इसमें एक लड़का-लड़की का कोई हाथ नहीं होता. इस रिश्ते की तो बुनियाद ही स्वार्थ से शुरू होती है. लड़की के माँ-बाप को लड़की की शादी कर अपना बोझ हल्का करने का स्वार्थ, लड़के के माँ-बाप को एक सेवा करने वाली बहु और ढेर सारा दहेज़ पाने का स्वार्थ,लड़के को एक अच्छी पत्नी जो सिर्फ उसकी मर्ज़ी पर जिए उसका स्वार्थ,लड़की को धन-धन्य से परिपूर्ण और बहुत प्यार करने वाले पति के चाहत का स्वार्थ.ये तो पूरा रिश्ता ही स्वार्थ में लिपट होता है. इस रिश्ते के बनने की वज़ह तो स्वार्थ होता है लेकिन ये निभाता सिर्फ और सिर्फ समझौते के बलबूते ही है. क्यूकि जब ये रिश्ता एक बार बन जाता है तो इसे निभाना भी एक पारिवारिक और सामाजिक मज़बूरी हो जाती है. शुरू-शुरू में जब जिस्मानी भूख मिटने की छह होती है तो पति-पत्नी के बीच वक़्ती लगाव हो जाता है. एक साथ रहते- रहते थोड़ा बहुत प्यार भी होजाता है. एक दूसरे का ख्याल भी रहता है. लेकिन वक़्त के साथ पारिवारिक दायित्यो को पूरा करते करते कब वो थोड़ा प्यार भी जीवन से चला जाता है पता ही नही चलता.उस प्यार को खोने का एहसास भी तब होता है जब दोनों में से एक दूसरे को छोड़ हमेशा के लिए दुनिया से चला जाता है. वरना जीतेजी तो स्वार्थ और शिकायतो का ही जीवन में जगह होता है. ९०के दसक तक इस रिश्ते में औरतो को ही ज्यादा समझौते करने पड़ते थे अपने अरमानो को टाक पर रख कर उन्हें पति की ख्वाइशो को पूरा करना होता था. लेकिन अब ज्यादा समझौते पति कर रहे है. क्योकि लड़किया अब काफी उग्र हो चुकी है. शायद ये भी एक सामाजिक परिवर्तन है. खेर, हमारा बिषय बस्तु ये नहीं है. हम तो प्यार की बात कर रहे है. इस पति-पत्नी के रिश्ते में भी कुछ अमर प्यार के उदाहरण है. कुछ पति-पत्नी ऐसे हुए है जो पहली मिलान से ही एक दूसरे को समर्पित हो गए. और कुछ वो जिन्हे प्रेमी-प्रेमिका से पति पत्नी बनने का सौभाग्य मिल गया.ऐसे पति-पत्नी की जोड़ी लाखो में एक होगी.

अब बात करते है प्रेमी-प्रेमिका के रिश्ते की. ये रिश्ता ना भगवान बनाते है, ना परिवार और समाज,ना ही इंसान खुद. ये रिश्ता बनाया नहीं जाता और अगर बन जाये तो तोडा भी नहीं जाता. या यु कह सकते है कि ना इसको बनाने में किसी का जोर चलता है ना तोड़ने में. आप छह कर भी किसी से प्यार नहीं कर सकते और ना ही अपने आप को किसी को प्यार करने से रोक पते है और अगर प्यार हो जाये तो फिर आप खुद कोशिश करे या पूरी दुनिया जोर लगा दे आप उस प्यार से दूर भी नहीं हो पते. कहते है- "प्यार किया नहीं जाता हो जाता है" इस रिश्ते को बनाने में सिर्फ दिल और आत्मा का हाथ होता है बहरी किसी भी तत्व का इससे कोई सरोकार नहीं. हम हज़ारो लोगो से मिलते है पर कोई एक जिस पर पहली नज़र पड़ते ही ऐसा महसूस होता है जैसे की वो हमारी ही आत्मा का बिछुड़ा हुआ टुकड़ा है. उसे देखते ही उस पर अपना सब कुछ न्योछवर करने को जी चाहता है. इससे ही हम प्यार कहते है. जब किसी से प्यार होता है तो रूप-रंग, जाती-धर्म, अमीरी-गरीबी, परिवार-समाज कुछ इसके बीच नहीं आता. यह ये साडी बाते महतवहीन हो जाती है. इस प्यार में अधिकार और कर्तव्य की डोर भी नहीं होती इसलिए इसमें स्वार्थ की गांठ भी नहीं होता, होता है तो सिर्फ " प्यार और परवाह" सिर्फ एक ख्वाइश होती है एक दूसरे में खोजने की, एक दूसरे पर न्योछवर हो जाने की बस. इस प्यार में मिलना और बिछड़ना भी कोई मायने नहीं रखता. यानि उनका प्यार किसी परिस्थिति में कम नहीं होता है. कहते है राधा कृष्ण १५-१६सल की उम्र में ही बिछड़ गए थे और फिर कभी नहीं मिले.लेकिन उनका प्यार उम्र रहा उन्हें हम " प्यार के देवता" के रूप में पूजते है. कहते है लैला बिलकुल काली थी कोई खूबसूरती नहीं थी उसमे फिर मजनू क्यों उसका दीवाना था.यानि इस प्यार में जिस्मानी वज़ूद भी महत्वहीन है. ये सिर्फ और सिर्फ एक रूहानी रिश्ता है जिसे सिर्फ वही समझ सकता है जिसने कभी ऐसा प्यार किया हो. ये अलग बात है कि ऐसे रिश्ते को इस समाज नई कभी समझा ही नहीं और जाति- धर्म, अमीरी-गरीबी उच्च-नीच और कभी अपने पारिवारिक स्वार्थ के लिए प्यार करने वालो की कुर्बानी देता चला आया. इस समाज ने इस रिश्ते की क़ुरबानी ना दी होतीऔर उन्हें फैलने-फूलने का सौभाग्य दिया होता तो यकीनन आज दुनिया में स्वार्थ और नफरत की जगह सिर्फ और सिर्फ प्यार पनपता.

अब आखिरी रिश्ता है भक्त और भगवान का. तो हमारी समझ से भक्त-भगवन और प्रेमी-प्रेमिका के रिश्ते में बड़ा ही बारीक़ अंतर है. एक प्रेमी अपने प्रियतम में भगवन का अंस देखता है और एक भक्त अपने भगवान को ही अपना प्रियतम बना लेता है. जैसे मीरा ने भगवान कृष्ण को ही अपना पति मान लिया था और उनके प्रेम में दीवानी होकर दुनिया से बेगानी हो गए थी. भक्त रसखान वो भी कृष्ण के दीवाने थे. आज भी कृष्ण को चाहने वाले पुरुष भी अपने आप को राधा रानी की तरह सवारते है और खुद को उनकी प्रेमिका ही मानते है.

अब गलती से भी आप मेरे इस फ़साने को आज के ज़माने से नहीं जोड़ लेना. क्योकि इस युवा वर्ग ने प्यार को व्यवहरिकता का रूप दे दिया है. माँ-बाप को पता है कि हमारा काम बच्चो को पाल-पोस कर बड़ा करना है इसके बाद हमर ें पर कोई हक़ नहीं.बच्चो को पता है कि हम बड़े होगये है तो हमे शादी कर अलग घर बसना है. माँ-बाप हमारी जिम्मेदारी नहीं है. इस नए जनरेसन को अपनी पसंद से शादी करने के लिए किसी की इजाजत की भी जरुरत नहीं शादी न निभाने पर इन्हे उस शादी को तोड़ने में भी कोई गुरेज नहीं.आज कल के युवा वर्ग उसे प्यार का नाम देते है जिसमे पहले हमबिस्तर होते है, फिर साल दो साल साथ गुजरते है अगर इसके बाद भी उनमे लगाव बाकि रहा तो सोचते है की हमे शादी करनी चाहिए या नहीं. अब ऐसे रिश्तो के माहौल में आप भगवान- भक्त, और हीर-राँझा को खा ढूढेंगे .वो रिश्ता तो बिलुपत हो गया है. इन सब के वावजुद अब भी ऐसा नहीं है कि पूरी दुनिया ही प्यार के इस नए रूप में डूब गया है. अभी भी इस धरती पर कही न कही कुछ ऐसे घर है जहा निस्वार्थ सा प्यार भरा परिवार रहता है. कही न कही वो दोस्तों का मस्ती भरा साथ बचा है जिन्हे कोई भी मज़बूरी दूर ना कर पाए है. अभी भी कुछ प्रेमी बचे है जो इस आत्मा बिहीन दुनिया में भी आत्मा से जुड़े है. भले ही उनके प्यार के किस्से ना बने हो, चर्चे ना हुए हो लेकिन उनका प्यार भी राधा-कृष्ण और हीर-राँझा के प्यार से कम नहीं. आज भले ही भगवन में आस्था ना बची हो लेकिन कही न कही कोई मीरा और रसखान है जिनके लिए भगवान् ही सब कुछ है. जिस दिन ये धरती प्यार बिहीन हो जाएगी वही दिन कयामत का दिन होगा ऐसा मेरा मन्ना है.

,इन सारे प्यार के रिश्तो के अलावा एक रिश्ता और है जो सबसे सर्वोपरि है वो है " इंसानियत का रिश्ता" ये प्यार तो बिलकुल ही दुनिया से ख़त्म हो गया है. दोस्तों, हो सके तो हम इस प्यार के रिश्ते को बचने की कोशिश करे ,अगर ये रिश्ता ख़त्म हो गया तो धरती रहेगी तो लेकिन नर्क से भी बुरे हालत में.

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कामिनी सिन्हा

कामिनी सिन्हा

आप का बहुत बहुत धन्यबाद जो आप ने मेरा लेख पढ़ा.बस ये तो मेरी एक छोटी सी प्रयास थी आप सब से जुड़ने की.आप ने तो प्यार को दो लब्जो में ही बया कर दिया बहुत अच्छा लगा, धन्यबाद

16 जून 2018

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

यह बहुत ही सशक्त ,सराहनीय और दिशा बोधक लेख है आपका | वास्तव में इस पर कितना भी लिखा जाये किन्तु यह अधूरा ही रहता है | मेरा एक मुक्तक है --- प्यार तो निर्मल बरन है चन्द्रमा का , एक आभूषण है पावन आत्मा का | स्वार्थ की कुदृष्टि तुम इस पर न डालो , प्यार तो पर्याय है परमात्मा का |

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