बीते कुछ सालों में ईद और रमजान (कुछ लोग रमदान भी कहते हैं) के दौरान एक मैसेज व्हाट्सएप और फेसबुक में खूब वायरल होता था, जिसमें लिखा होता था कि Ramdan में Ram होता है और Diwali में Ali होता है.
अबकी बार ये ‘आपसी सौहार्द’ वाला मैसेज व्हाट्सएप और फेसबुक से नदारद था. अबकी बार रमदान वाले राम नदारद थे. अबकी बार अगर कोई थे, तो वो थे खंज़र वाले राम. लोगों को इस खंजर वाले राम के साथ मैसेज भी आने लगे –
पूरी ईद तक ये डीपी हर हिंदू के मोबाइल में होनी चाहिए.
और जंगल में लगी आग की तरह अगले आधे घंटे से कम के भीतर आधे से ज़्यादा लोगों की डीपी बदल कर ‘राम नाम’ हो गई. ये डीपी गोया एक सर्टिफिकेट था कि आप हिंदू हैं.
लेकिन फिर ये डीपी भी शक के दायरे में आ गई. जब एक बच्चे ने बताया कि ये सब मुसलमानों की साजिश है. बच्चा फोटो को ज़ूम करके समझा रहा था, और हम समझ रहे थे. बच्चे ने कहा –
हाय फ्रेंडस, मैं ‘नरेस’ आपके सामने एक हक़ीकत लेकर आया हूं. ‘देकिए’. आप सबने व्हाट्सऐप में ये डीपी रखी है. राम नाम का. लेकिन ये हकीकत में राम नाम का हे नई. ये आप लोगों को. आप लोगों को, हिंदू लोगों को, उल्लू बनाने के लिए मुसलमानों ने ये किया है…
फिर नरेश ने एक्सप्लेन किया कि इसमें तीन खंज़र हैं. खंज़र हिंदू यूज़ नहीं करते. (हथियार भी हिंदू मुस्लिम होते हैं!) इस वीडियो में नरेश हम सब को फोटो ज़ूम करके भी दिखाता है कि इसमें जानवरों के कटे अंग हैं.
इसके अलावा नरेश हमें इस फोटो में कटी हुई गाय भी दिखाता है. और हिंदू भाइयों से अनुरोध करता है कि –
प्लीज़ आप अपनी ये डीपी हटा दीजिए और दूसरी डीपी रखिए.
अब इस सब में एक बड़ी हास्यास्पद बात और एक सबक है. हास्यास्पद बात ये कि अब समझ में लोगों के ये नहीं आ रहा कि क्या ‘राम नाम’ के चक्कर में उन्होंने किसी मुस्लिम प्रोपोगेन्डा को तो प्रचारित नहीं कर दिया? मतलब डिलेमा, कन्फ्यूज़न या धर्मसंकट ऐसा है कि हर कोई अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है.
ये अंतर है भेड़चाल और अपने विवेक से काम करने वाले लोगों के बीच. भेड़चाल वाले लोग हमेशा पीछे ही रहते हैं. भीड़ का हिस्सा. ये झंडा उठाए आगे रहने का माद्दा नहीं रखते. इन्हें लगता है कि जब इनके कर्मों के चलते उन्माद फैलेगा तो ये घर में सेफ रहेंगे. इन्होंने लोगों को मरते हुए नहीं देखा है.
ये तो थी हास्यास्पद बात. अब जो सबक है वो बताने का कोई फायदा नहीं. क्यूंकि दुनिया में दो तरह के लोग हैं – पहले वो लोग, जिन्हें सबक की कोई ज़रूरत नहीं क्यूंकि वो इन सब में शामिल नहीं हैं, और न ही कभी होंगे. उनके पास ‘विवेक’ नाम की चीज़ पहले से ही है. दूसरे वे लोग हैं जो धर्म और ‘राम नाम’ का प्रयोग किसी विशेष समुदाय को चिढ़ाने और घृणा पैदा करने के लिए कर रहे हैं. ये दूसरी तरह के लोग सोचें कि जब श्री राम अपने सामने उन्हें बिठाएंगे और ये लोग बताएंगे कि किसी विशेष धर्म के लोगों को चिढ़ाने के लिए उन्होंने राम का इस्तेमाल किया तो क्या राम उन्हें शाबाशी देंगे? ये कौन सा पुण्य कम रहे हैं ये लोग – व्हाट्सऐप में राम की फोटो लगाकर? भक्ति या प्रेम के चलते नहीं, अराजकता फैलाने के लिए. मुझे इन लोगों की मूढ़ता देखकर आश्चर्य होता है. लेकिन दुःख भी होता है. क्यूंकि ये लोग नहीं जानते कि इनका इस्तेमाल हो रहा है. एक संख्या की तरह. जब विवेक मर जाता है तो आदमी गिनती हो जाता है. – 500 लोग मारे गए, जुलूस में 1,00,000 लोग आए थे….
ये 500 लोगों में से एक बनना बड़ा आसान है. मगर समझ का पैदा होना मुश्किल. इस्तेमाल होना बड़ा आसान है. कभी देशभक्ति के नाम पर, कभी ईशभक्ति के नाम पर, कभी किसी नेता, किसी कलाकार की भक्ति के नाम पर.
तो नहीं मुझे इन मारे जाने वाले 500 लोगों, जुलूस में आए 1,00,000 लोगों, नारे लगाते आंखों में पट्टी बांधे लोगों से कुछ नहीं कहना. इनका राम मेरा राम नहीं. मेरा राम डरावना नहीं. मेरा राम तीन खंज़र वाला राम नहीं. मेरा राम डीपी और व्हाट्सऐप वाला राम नहीं. मेरा राम दूसरे के त्योहारों का मज़ा किरकिरा करने का राम नहीं. मेरा राम उन्माद फ़ैलाने वाला हत्याओं को अंजाम देने वाला राम नहीं. और मेरा राम जो है वो इनको नहीं दिखेगा.
(बहरहाल नरेश अपने पहले ही कुछ वाक्यों में दो बार ‘हक़ीकत’ शब्द का यूज़ कर लेता है जो एक सच्चा हिंदू कभी नहीं करेगा. लेकिन नरेश मेरी नज़र में हिंदू या मुस्लिम नहीं, एक बच्चा है. एक अबोध बच्चा. मेरा राम उसे माफ़ करेगा. क्यूंकि मेरा राम किसी व्हाट्सऐप की डीपी नहीं, मर्यादा पुरुषोत्तम है.)
Shri Ram DP, which went viral during Eid is said to be a Muslim propaganda