ट्रेनों के आवागमन में लेटलतीफी बीते कुछ सालों तक केवल सर्दियों के मौसम तक ही सीमित रहती थी. सर्दियों में कोहरे की मार झेल रही ट्रेनों में सफर करने वाला हर शख्स खुद को लेटलतीफी के लिए मानसिक तौर पर तैयार रखता था. बदली हुई मौजूदा परिस्थितियों में ट्रेनों की लेतलतीफी अब सर्दी के मौसम तक सीमित नहीं रह गई है. आलम यह है कि बीते करीब एक साल से करीब 40 फीसदी ट्रेनों का आवागमन घंटों की देरी से हो रहा है.
रेलवे लगातार इस ट्रेनों के देरी की मुख्य वजह जर्जर हो चुके ट्रैक की मरम्मत और ट्रैक के नवीनीकरण को बताता आया है. रेलवे ने विभिन्न प्लेटफार्म से मुसाफिरों तक यह संदेश पहुंचाने की कोशिश की है कि कल की बेहतर नींव के लिए यात्रियों को आज धैर्य रखना होगा. रेलवे की तमाम कोशिशों के बावजूद यह संदेश पूरी तरह से यात्रियों तक नहीं पहुंचा है. जिसका नतीजा है कि ट्रेनों की लेटलतीफी का यह मुद्दा अब भारतीय रेल की छवि पर चोंट करने लगा है.
अपनी छवि को लेकर हमेशा से संवेदशील रही भारतीय रेल ने अपने यात्रियों तक सही संदेश पहुंचाने के लिए नए रास्ता चुना है. जिसके तहत यदि कोई ट्रेन लेट चल रही है तो उसमें सफर करने वाले मुसाफिरों को गंतव्य स्टेशन पहुंचने का संभावित समय एसएमएस किया जा रहा है. इस एसएमएस के साथ एक दूसरा मैसेज भी भेजा जा रहा है, जिसमें ट्रेन की देरी की वजह बताई जा रही है. इतना ही नहीं, भारतीय रेलवे अपने यात्रियों को एक वीडियो का लिंक भी भेज रही है, जिसमें यात्रा में देरी की सभी वजहों का सिलसिलेवार तरीके से उल्लेख किया गया है.
रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार भारतीय रेल का नेटवर्क कुल 17 जोन में बंटा हुआ है. जिसमें तीन जोन ही ऐसे हैं, जिस पर ट्रेनों का परिचालन सबसे ज्यादा प्रभावित है. इन तीन जोन में एनसीआर जोन, नार्थ-ईस्ट जोन और नार्दन जोन शामिल है. इन तीनों जोन में सबसे तेजी से ट्रैक के मरम्मत और नवीनीकरण का काम चल रहा है. जिसकी वजह से ट्रेनों के आवागमन को कुछ समय के लिए रोकना पड़ता है. यात्री संरक्षा के मकसद से ट्रेनों के आवागमन पर लगने वाली रोक से रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों का दबाव बढ़ जाता है. जिसका नतीजा ट्रेनों के लेटलतीफी के तौर पर हमारे सामने है.