यार मदारी!
तुम अच्छे हो;
रस्सी पर चल लेते हो,
लोहे के छल्ले से कैसे
ये करतब कर लेते हो?
एक पैसे से दो फिर दो से,
चार उन्हें कर देते हो;
हाँ तो जमूरे कह-कह के,
क्या से क्या कर देते हो I
कालू-भालू और बंदरिया
सबको नचाते एक उंगली पर,
एक डुगडुगी की थापों पर
सबका मन हर लेते हो I
जीवन की पगडंडी पर,
मुझे भी चलना सिखला दो,
कैसे मनाऊँ प्रियजन को,
ये मुझको बतला दो I
प्रेम की डुगडुगी
कैसे बजती,
वो संगीत सिखा दो !
-ओम
विजय कुमार शर्मा
11 अप्रैल 2015भारतीय सांस्कृतिक कला का उत्कृष्ट वर्णन