ज़िंदगी तू है और एक मैं
समझना तुझे चाहती हूँ
तू मेरी समझ से है दूर,बहुत दूर
कभी छू कर महसूस करना चाहुँ , तो
लगता है, तू भाग रही है |
तुझे बढ़कर रोकना चाहुँ , तो
लगता है, तू पहले से ही थमी है |
हर पल रंग बदलती है तू,
कभी बहुत फीके तो कभी बहुत स्याह
जब भी चाहुँ तेरे रंग में रंगना
उसी पल रंग बदलती है तू
आलोक सिन्हा
18 जुलाई 2018काफी अच्छा लिखा है | मैंने भी इस पर कुछ लिखने का प्रयत्न किया है __ ज़िंदगी क्या है क्या बताऊँ मैं
एक गूंगे का ख्वाब हो जैसे
या किसी लालची महाजन का
उलझा उलझा हिसाब हो जैसे
2 --ज़िंदगी एक दर्द भी है गीत भी है
ज़िंदगी एक हार भी है जीत भी है
तुम इसे यदि प्यार का मधुर साज समझो
तो ये सौ खुशियों भरा संगीत भी है