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भगवान सरकारी बंगला किसी से न खाली करवाए... .!! - हास्य- व्यंग्य

2 जुलाई 2018

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मैं जिस शहर में रहता हूं इसकी एक बड़ी खासियत यह है कि यहां बंगलों का

ही अलग मोहल्ला है। शहर के लोग इसे बंगला साइड कहते हैं। इस मोहल्ला या

कॉलोनी को अंग्रेजों ने बसाया था। इसमें रहते भी तत्कालीन अंग्रेज

अधिकारी ही थे। कहते हैं कि ब्रिटिश युग में किसी भारतीय का इस इलाके में

प्रवेश वर्जित था। अंग्रेज चले गए लेकिन रेल व पुलिस महकमे के तमाम

अधिकारी अब भी इन्हीं बंगलों में रहते हैं। बंगलों के इस मोहल्ले में

कभी कोई अधिकारी नया - नया आता है तो कोई कुछ साल गुजार कर अन्यत्र कुच

कर जाता है। लेकिन बंगलों को लेकर अधिकारियों से एक जैसी शिकायतें सुनने

को मिलती है। नया अधिकारी बताता है कि अभी तक बंगले में गृहप्रवेश का सुख

उसे नहीं मिल पाया है, क्योंकि पुराना नए पद पर तो चला गया, लेकिन बंदे

ने अभी तक बंगला नहीं छोड़ा है। कभी बंगले में उतर भी गए तो अधिकारी उसकी

खस्ताहाल का जिक्र करना नहीं भूलते। साथ ही यह भी बताते हैं कि बंगले को

रहने लायक बनाने में उन्हें कितनी जहमत उठानी पड़ी ... कहलाते हैं इतने

बड़े अधिकारी और रहने को मिला है ऐसा बंगला। इस बंगला पुराण का वाचन और

श्रवण के दौर के बीच ही कब नवागत अधिकारी पुराना होकर अन्यत्र चला जाता,

इसका भान खुद उसे भी नहीं हो पाता। शहर में यह दौर मैं बचपन से देखता - आ

रहा हूं। अधिकारियों के इस बंगला प्रेम से मुझे सचमुच बंगले के महत्व का

अहसास हुआ। मैं सोच में पड़ जाता कि यदि एक अधिकारी का बंगले से इतना मोह

है जिसे इसमें प्रवेश करने से पहले ही पता है कि यह अस्थायी है। तबादले

के साथ ही उसे यह छोड़ना पड़ेगा तो फिर उन राजनेताओं का क्या जिन्हें देश

या प्रदेश की राजधानी में शानदार बंगला उनके पद संभालते ही मिल जाता है।

ऐसे में पाने वाले को यही लगता है कि राजनीति से मिले पद - रुतबे की तरह

उनसे यह बंगला भी कभी कोई नहीं छिन सकता। यही वजह है कि देश के किसी न

किसी हिस्से में सरकारी बंगले पर अधिकार को लेकर कोई न कोई विवाद छिड़ा

ही रहता है। जैसा अभी देश के सबसे बड़े सूबे में पूर्व मुख्यमंत्रियों के

बंगलों को लेकर अभूतपूर्व विवाद का देश साक्षी बना। पद से हटने के बावजूद

माननीय न जाने कितने सालों से बंगले में जमे थे। उच्चतम न्यायालय के

हस्तक्षेप से हटे भी तो ऐसे तमाम निशान छोड़ गए, जिस पर कई दिनों तक वाद

- विवाद चलता रहा। उन्होंने तो बंगले का पोस्टमार्टम किया ही उनके जाने

के बाद मीडिया पोस्टमार्टम के पोस्टमार्टम में कई दिनों तक जुटा रहा।

देश का कीमती समय बंगला विवाद पर नष्ट होता रहा। सच पूछा जाए तो सरकारी

बंगला किसी से वापस नहीं कराया जाना चाहिए। जिस तरह माननीयों के लिए यह

नियम है कि यदि वे एक दिन के लिए भी माननीय निर्वाचित हो जाते हैं जो

उन्हें जीवन भर पेंशन व अन्य सुविधाएं मिलती रहेंगी, उसी तरह यह नियम भी

पारित कर ही दिया जाना चाहिए कि जो एक बार भी किसी सरकारी बंगले में रहने

लगा तो वह जीवन भर उसी का रहेगा। उसके बैकुंठ गमन के बाद बंगले को उसके

वंशजों के नाम स्थानांतरित कर दिया जाएगा। यदि कोई माननीय अविवाहित ही

बैंकुंठ को चला गया तो उसके बंगले को उसके नाम पर स्मारक बना दिया

जाएगा। फिर देखिए हमारे माननीय कितने अभिप्रेरित होकर देश व समाज की सेवा

करते हैं। यह भी कोई बात हुई । पद पर थे तो आलीशान बंगला और पद से हटते

ही लगे धकियाने । यह तो सरासर अन्याय है। आखिर हमारे राजनेता देश - समाज

सेवा करें या किराए का मकान ढूंढें ... चैनलों को बयान दें या या फिर

ईंट - गारा लेकर अपना खुद का मकान बनवाएं। यह तो सरासर ज्यादती है। देश

के सारे माननीयों को जल्द से जल्द यह नियम पारित कर देने चाहिए कि एक दिन

के लिए भी किसी पद पर आसीन वाले राजनेता पेंशन की तरह गाड़ी - बंगला भी

आजीवन उपभोग करने के अधिकारी होंगे।

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