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समंदर - " मेरी नज़र में "

5 जुलाई 2018

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क्या कभी आपने समंदर किनारे बैठ कर उसकी आती जाती लहरों को ध्यान से देखा हैं .सागर दिन में तो बिलकुल शांत और गंभीर होता है. ऐसा लगता है जैसे अपने अंदर अनको राज छुपाये ,अपना विशाल आँचल फैलाये एक खामोश लड़की हो जिसने सारे जहान के दर्द और सारी दुनिया की गन्दगियो को अपने दामन मे समेट रखा है. लेकिन फिर भी खामोश है .किसी से उसे कोई शिकायत नहीं .( वैसे हमेशा से सागर को पुरुष के रूप में ही सम्बोथित किया गया है लेकिन मुझे उसमे एक नारी दिखती है.) हां कभी कभी हलकी फुलकी लहरें जरूर उठती रहती है. उस पल ऐसा लगता है जैसे दर्द सहते सहते अचानक से वो तड़प उठती हो और उसके दिल की तड़प ने ही लहरों का रूप ले लिया हो. लेकिन जैसे जैसे शाम होती है उसकी लहरों में तेज़ी आती जाती है. वो काफी उझाल के साथ किनारे की तरफ तेज़ी से बढ़ती जाती है. ऐसा लगता है जैसे किनारे पर उसे उसका प्रियतम खड़ा दिखाई दे रहा है, जिससे वो बरसो से नहीं मिली. और वो अपने सारे बंधनो को खोलते हुए,सारी सीमाओ को तोड़ते हुए, बेचैन हो कर अपनी पूरी शक्ति के साथ अपने प्रियतम से मिलने के लिए दौड पड़ी है. लेकिन किनारे तक आते आते उसकी हिम्मत टूट जाती है. वो थक कर,निढ़ाल होकर गिर जाती है. तभी कोई हाथ बढ़ता है और उसे खींच कर अंदर की तरफ ले जाता है और कहता है - " तुम्हे अपनी सीमाओं को तोड़ने का कोई हक़ नहीं है. " दो पल के लिए वो शांत हो जाती है. उसे भी लगता है कि - " हां,मुझे अपनी सीमाओं के मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए. " लेकिन फिर जैसे ही उसकी नज़र किनारे पर इंतज़ार कर रहे अपने प्रेमी पर पड़ती है वो फिर उसी व्याकुलता ,उसी बेचैनी से, अपनी दुगुनी शक्ति के साथ अपने प्रियतम के बाहों में जाने को दौड पड़ती है. जैसे जैसे रात गहरी होती जाती है उसकी बेचैनियाँ लहरों की तेज़ी को बढाती जाती है. कभी कभी तो वो आखरी देहलीज़ तक चली जाती है. ( जहा सागर की सीमाओं को पत्थर और दीवारों से घेर कर बंधा गयाहै. ) अपनी दहलीज़ से टकरा- टकरा कर वो वापस आती रहती है लेकिन फिर भी अपनी कोशिश नहीं छोड़ती .सारी रात ये सिलसिला चलता रहता है और जैसे जैसे सुबह होती जाती है वो धीरे धीरे शांत होती जाती है. सूरज के निकलते ही वो फिर अपनों पहली वाली स्थिति में आ जाती है. मुझे नहीं पता वो अपने प्रियतम से मिल भी पति है या नहीं. लेकिन ये सिलसिला हर दिन चलता है. दिनों से नहीं ये तो अनंत कल से चलता आ रहा है और अनंत कल तक चलता रहेगा .शायद जब प्रियतम मिलान की उसकी व्याकुलता हद से जयादा बढ़ जाती है तो उसकी लहरे सुनामी का रूप लेलेती है और चारो तरफ तबाही फैला देती है. ये तो सत्य है न कि जब प्यार अपनी सारी सीमाये तोड़ता है तो तबाही ही लाता है. किसी शायर ने क्या खूब कहा है -

" सूरज को धरती तरसे, धरती को चन्द्रमा

पानी में सीप जैसे प्यासी हर आत्मा "


Shashi Gupta

Shashi Gupta

भभावनाओं से भरा हुआ

5 अक्टूबर 2018

अजय अमिताभ सुमन

अजय अमिताभ सुमन

खूबरसूरत विचार

2 अक्टूबर 2018

कामिनी सिन्हा

कामिनी सिन्हा

बहुत बहुत धन्यबाद रेणु जी,सच कहा आपने ,रेणु जी एक दिन मैं समुंदर किनारे बैठी थी और उसकी आती जाती लेहरो को देख रही थी तो स्वतः ही मेरे दिल में एक सवाल उठा कि कहते है नदिया सागर से मिलने को बेचैन रहती है पर सागर किससे मिलने की व्याकुलता में इतनी उझाले मरता है और मैंने अपने विचारो को शब्दो में पिरो दिया .मैं आपका लेख जरूर पढूंगी .

28 सितम्बर 2018

रेणु

रेणु

बहुत ही सुंदर लेख लिखा आपने प्रिय कामिनी जी -- नदिया और समन्दर का मेल बहुत ही परम्परागत और अक्षुण है | यह प्रेम का अमर प्रतीक है | समद्र की महिमा वेद- पुरानों में भी गई रहेंगी | इसी से मिलते जुलते विषय वाली मेरी रचना - नदिया तू नारी सी '' जरुर पढ़ें | सस्नेह |

27 सितम्बर 2018

आयेशा मेहता

आयेशा मेहता

बहूत ही अच्छी और मार्मिक रचना है ा जिस तरह से आपने समुन्दर के व्यथा को शब्दों में पिरोया है , काबिल-ये-तारीफ है ा

27 सितम्बर 2018

vikas khandelwal

vikas khandelwal

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7 जुलाई 2018

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टूटते - बिखरते रिश्ते

19 जून 2018
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आज कल के दौड के टूटते बिखरते रिश्तो को देख दिल बहुत वय्थित हो जाता है और सोचने पे मज़बूर हो जाता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?आखिर क्या थी पहले के रिश्तो की खुबिया और क्या है आज के टूटते बिखरते रिश्तो की वज़ह ? आज के इस व्यवसायिकता के दौड में रिश्ते

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परिवर्तन या पीढ़ियों में अन्तर

23 जून 2018
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उम्र के तीसरे पड़ाव में हूँ मैं .बचपन और जवानी के सारे खुबसुरत लम्हो को गुजर कर प्रौढ़ता के सीढ़ी पर कदम रख चुकी हूँ .तीन पीढ़ियों को देख लिया है या यूँ कहे की उनके साथ जी लिया है. बदलाव तो प्रक्रति का नियम है इसलिए घर परिवार, संस्कार और समाज में भी निरंतर बदलाव होत

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समंदर - " मेरी नज़र में "

5 जुलाई 2018
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क्या कभी आपने समंदर किनारे बैठ कर उसकी आती जाती लहरों को ध्यान से देखा हैं .सागर दिन में तो बिलकुल शांत और गंभीर होता है. ऐसा लगता है जैसे अपने अंदर अनको राज छुपाये ,अपना विशाल आँचल फैलाये एक खामोश लड़की हो जिसने सारे जहान के दर्द और सारी दुनिया की गन्दगियो को अपने दामन मे समेट रखा है. ले

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प्रकृति और इंसान

18 जुलाई 2018
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नदी,सागर ,झील या झरने ये सारे जल के स्त्रोत है. यही हमारे जीवन के आधार भी है. ये सब जानते और मानते भी है कि " जल ही जीवन है." जीवन से हमारा तातपर्य सिर्फ मानव जीवन से नहीं है. जीवन अर्थात " प्रकृति " अगर प्रकृति है तो हम है .लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम है

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हर पल सिखाती ज़िंदगी

22 जुलाई 2018
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दोस्तों,मैं कोई शायरा,लेखिका या कवित्री नहीं हूँ। मैंने जवानी के दिनों में डायरी के अलावा कभी कुछ नहीं लिखा। हां, बचपन से कुछ लिखने की चाह जरूर थी। लेकिन किस्मत कुछ ऐसी रही कि छोटी उम्र से ही जो पारिवारिक जिमेदारियो में उलझी तो उलझी ही रह गई। उम्र के तीसरे पड़ाव में आ

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आराधना का मन आज बहुत व्यथित हो रहा था। वो फुट फुट कर रो रही थी और खुद को कोसे भी जा रही थी। अपने आप में ही बड़बड़ाये जा रही थी "क्या मिला मुझे सबको इतना प्यार करके,सब पर अपना आप लुटा के ,बचपन के सुख ,जवानी की खुशियाँ तक लुटा दी तुमने ,सबको बाटा ही कभी

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15 ऑगस्त " स्वतंत्रता दिवस " यानि हमारी आज़ादी का दिन .हां ,सालो गुलामी का दंस झेलने के बाद ,लाखो लोगो के कुर्बानियो के फ़लस्वरुप हमे ये दिन देखने नसीब हुए .हम हिन्दुस्तानियो के लिए हर त्यौहार से बड़ा सबसे पवन त्यौहार है ये . यकीनन होली, दिवाली

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फुर्सत के चंद लम्हे जो मैं खुद के साथ बिता रही हूँ। घर से दूर,काम -धंधे,दोस्त - रिस्तेदार से दूर,अकेली सिर्फ और सिर्फ मैं। हां,आस बहरी दुनिया है कुछ लड़के - लड़किया जो मस्ती में डूबे है,कुछ बुजुर्ग जो अपने पोते - पोतियो के साथ खेल रहे है,कुछ और लोग है जो शायद मेरी तरह ब

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रक्षाबंधन -" कमजोर धागे का मजबूत बंधन "

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सावन का रिमझिम महीना हिन्दुओ के लिए पवन महीना होता है। आखिर हो भी क्यों न ये देवो के देव महादेव का महीना जो होता है। और इसी महीने के आखिरी दिन यानि पूर्णिमा को रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाता है। रक्षाबंधन भाई बहन के प्रेम को अभिवयक्त करने का एक जश्न है। जिसे आम बोल चाल में राखी कहते है। सुबह सुबह

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" बृद्धाआश्रम "ये शब्द सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते है। कितना डरावना है ये शब्द और कितनी डरावनी है इस घर यानि "आश्रम" की कल्पना। अपनी भागती दौड़ती ज़िन्दगी में दो पल ढहरे और सोचे, आप भी 60 -65 साल के हो चुके है ,अपनी नौकरी और घर की ज़िम्मेदारियों से आज़ाद हो चुके है। आप के

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दिल तो बच्चा है जी

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ज़िंदगी हर पल एक चलचित्र की तरह अपना रंग रूप बदलती रहती है।है न , जैसे चलचित्र में एक पल सुख का होता है तो दुसरा पल दुःख का ,फिर अगले ही पल कुछ ऐसा जो हमे अचम्भित कर जाता है और एक पल के लिए हम सोचने पर मजबूर हो जाते है कि "क्या

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कहानी सोना की

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"सोना "हाँ ,यही नाम था घुंघट में लिपटी उस दुबली पतली काया का। जैसा नाम वैसा ही रूप और गुण भी। कर्म तो लौहखंड की तरह अटल था बस तक़दीर ही ख़राब थी बेचारी की। आज भी वो दिन मुझे अच्छे से याद है जब वो पहली बार हमारे घर काम करने आई थी। हाँ ,वो एक काम करने वाली बाई थी। पहली नज़र मे देख कर कोई उन्हें काम वाली

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सोना के बेटे की-" हीरा" बनने की कहानी

25 अक्टूबर 2018
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रहम करे अपनी प्रकृति और अपने बच्चो पर , आप से बिनम्र निवेदन है ना मनाया ऐसी दिवाली गैस चैंबर बन चुकी दिल्ली को क्या कोई सरकार ,कानून या धर्म बताएगा कि " हमे पटाखे जलाने चाहिए या नहीं?" क्या हमारी बुद्धि और विवेक बिलकु

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"ज़िंदगी का सबक सिखाता " - दिसम्बर और जनवरी का महीना

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एक और साल अपने नियत अवधि को समाप्त कर जाने को है और एक नया साल दस्तक दे रहा है। बस, एक रात और कैलेंडर पर तारीखे बदल जायेगी। दिसम्बर और जनवरी महीने की कुछ अलग ही खासियत होती है। कहने को तो ये भी दो महीने ही तो है पर साल के सारे महीनो को बंधे रखते है। दोस

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जीवन का अनमोल "अवॉर्ड "

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" नववर्ष मंगलमय हो " " हमारा देश और समज नशामुक्त हो " नशा जो सुरसा बन हमारी युवा पीढ़ी को निगले जा रहा है ,

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"बहुत खूबसूरत होती है ये यादों की दुनियाँ , हमारे बीते हुये कल के छोटे छोटे टुकड़े हमारी यादों में हमेशा महफूज रहते हैं,

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"क्या ,आज भी तुम बाहर जा रहे हो ??तंग आ गई हूँ मैं तुम्हारे इस रोज रोज के टूर और मिटिंग से ,कभी हमारे लिए भी वक़्त निकल लिया करो। " जैसे ही उस आलिशान बँगले के दरवाज़े पर हम पहुंचे और नौकर ने दरवाज़ा खोला ,अंदर से एक तेज़ आवाज़ कानो में पड़ी ,हमारे कदम वही ठिठक गये। लेकिन तभी बड़ी शालीनता के साथ नौकर न

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गाना : हँसते आँसु

27 जून 2019
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हजारो तरह के ये होते हैं आँसुअगर दिल में गम हैं तो रोते हैं आँसुख़ुशी में भी आँखे भिगोते हैं आँसुइन्हे जान सकता नहीं ये जमानामैं खुश हूँ मेरे आँसुओं पे न जानामैं तो दीवाना ,दीवाना ,दीवाना "मिलन " फिल्म का ये गाना वाकई लाजबाब हैं। आनं

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जाने चले जाते हैं कहाँ ......

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जाने चले जाते हैं कहाँ ,दुनिया से जाने वाले, जाने चले जाते हैं कहाँ कैसे ढूढ़े कोई उनको ,नहीं क़दमों के निशां अक्सर मैं भी यही सोचती हूँ आखिर दुनिया

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आस्था और विश्वास का पर्व -" छठ पूजा "

31 अक्टूबर 2019
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" छठ पूजा " हिन्दूओं का एक मात्र ऐसा पौराणिक पर्व हैं जो ऊर्जा के देवता सूर्य और प्रकृति की देवी षष्ठी माता को समर्पित हैं। मान्यता है कि -षष्ठी माता ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं,प्रकृति का छठा अंश होने के कारण उन्हें षष्ठी माता कहा गया जो लोकभाषा में छठी माता के नाम

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धरती की करुण पुकार

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हे! मानस के दीप कलशतुम आज धरा पर फिर आओ।नवयुग की रामायण रचकर मानवता के प्राण बचाओं ।आज कहाँ वो राम जगत में जिसने तप को गले लगाया ।राजसुख से वंचित रह जिसने मात - पिता का वचन निभाया । सुख कहाँ है वो राम राज्य का ?वह सपना तो अब टूट गया ।कहाँ

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सच्ची प्रहरी तो तुम हो "माँ"

30 अगस्त 2021
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<p>कहते हैं, सब मुझको "सैनिक"</p> <p>पर, सच्ची प्रहरी तो तुम हो "माँ" </p> <p>मैं सपूत इस

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दे दो ऐसा वरदान...

31 अगस्त 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d425242f7ed561c89

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आईं झुम के बसंत....

10 फरवरी 2022
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बसंत अर्थात "फुलों का गुच्छा", बसंत, अर्थात  "शिव के पांचवें मुख से निकला एक राग" बसंत जिसके "अधिष्ठाता देवता ही कामदेव" हो, ऐसे ऋतु के क्या कहने।"बसंत" इस शब्द के स्मरण मात्र से ही दिलों में  फुल

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