श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक ऐसा नाम जिन्होंने कश्मीर से धारा 370 खत्म करने के लिए अपने प्राण लुटा दिए. कश्मीर को भी भारत के अन्य राज्यों की तरह मनवाने के लिए उन्होंने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया. कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति के बेटे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी लड़ाई लड़ने के लिए नेहरू मंत्रीमंडल से इस्तीफा देकर जनसंघ की स्थापना की. आज देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा की राजनीतिक विचारधारा जनसंघ की ही विचारधारा पर चल रही है.
6 जुलाई 1901 ई. को श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था. उनके बाबा गंगा प्रसाद मुखर्जी एक ख्याति प्राप्त चिकित्सक थे. श्यामा प्रसाद के पिता आशुतोष मुखर्जी न्यायाधीश और कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति जैसे बड़े पदों पर रहे. बावजूद इसके उनकी जीवन शैली बेहद सरल और सात्विक रही. वे धार्मिक संस्कारों का पालन करने में अडिग रहे.
साल 1923 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी 1924 में कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत करने लगे. हालांकि 1926 में वे आगे की पढ़ाई के लिए लंदन रवाना हो गए. इसके बाद 33 साल की उम्र में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय का वाइस चांसलर बना दिया गया. सन 1938 तक वे इसी पद पर बने रहे. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर एमएलसी का चुनाव जीता लेकिन अगले ही साल इस्तीफा दे दिया. 1944 में वह हिंदू महासभा में शामिल हुए और अध्यक्ष बना दिए गए.
साल 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद जवाहर लाल नेहरू की सरकार में उन्हें उद्योग मंत्री बना दिया गया. लेकिन लियाकत अली खान से दिल्ली पैक्ट पर विवाद के बाद उन्होंने 6 अप्रैल 1950 को नेहरू मंत्रिमंडल से अपना इस्तीफा दे दिया. इसके बाद आरएसएस के गोलवलकर से परामर्श लेकर उन्होंने 21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना की. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके पहले अध्यक्ष बनाए गए. अगले साल 1952 में हुए आम चुनाव में जनसंघ ने तीन सीटें जीतीं.
इसके बाद उन्होंने कश्मीर का मुद्दा जोर-शोर से उठाना चालू कर दिया. तब कश्मीर को धारा 370 के तहत विशेष दर्जा प्राप्त था. अनुच्छेद 370 में यह प्रावधान किया गया था कि कोई भी भारत सरकार से बिना अनुमति लिए हुए जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता. मुखर्जी इस प्रावधान के सख्त खिलाफ थे.
इसे लेकर उन्होंने आंदोलन शुरू किया और कश्मीर के लिए रवाना हो गए. उन्होंने एक देश में दो विधान, एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान- नहीं चलेंगे नहीं चलेंगे जैसे नारे दिए. देश की एकता और अखंडता को लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आंदोलन चलाया. जम्मू-कश्मीर सरकार ने राज्य में प्रवेश करने पर मुखर्जी को 11 मई 1953 को हिरासत में ले लिया. इसके कुछ समय बाद 23 जून 1953 को जेल में उनकी रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई.
श्यामाप्रसाद की रहस्मयी मौत के तुरंत पश्चात तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने नम आंखों से डॉ मुख़र्जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि, " अपने सार्वजनिक जीवन में वह अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को एवं अपनी अंदरूनी प्रतिबद्धताओं को व्यक्त करने में कभी डरते नहीं थे. ख़ामोशी में कठोरतम झूठ बोले जाते हैं, जब बड़ी गलतियां की जाती हैं, तब इस उम्मीद में चुप रहना अपराध है कि एक-न-एक दिन कोई सच बोलेगा."
विडम्बना की बात ये है कि आज भी देश की जनता उनकी रहस्यमयी मौत के पीछे की सच को जान पाने में नाकामयाब रही है. डॉ. मुखर्जी इस प्रण पर सदैव अडिग रहे कि जम्मू एवं कश्मीर भारत का एक अविभाज्य अंग है.
उनका कहना था कि, "नेहरू जी ने ही ये बार-बार ऐलान किया है कि जम्मू व कश्मीर राज्य का भारत में 100% विलय हो चुका है, फिर भी यह देखकर हैरानी होती है कि इस राज्य में कोई भारत सरकार से परमिट लिए बिना दाखिल नहीं हो सकता. मैं नही समझता कि भारत सरकार को यह हक़ है कि वह किसी को भी भारतीय संघ के किसी हिस्से में जाने से रोक सके क्योंकि खुद नेहरू ऐसा कहते हैं कि इस संघ में जम्मू व कश्मीर भी शामिल है."
जन्मदिन विशेष: कश्मीर में धारा 370 के सबसे मुखर विरोधी थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी, हुई थी रहस्यमयी मौत