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मन्जुला

6 जुलाई 2018

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बारिश की पहली फुहार के साथ ही अपने बचपन की खट्टी-मिठी यादे ताजा हो गई। बचपन के वो झूले, वोनीम का पेड ,वो जानी -पहचानी गलियाँ और वो गुड्डे- गुडियो का खेल।मेरे लिए मानो ये कल की ही बात हो।इतनी जल्दी बचपन गुजारके आज दो बच्चो की माँ हूँ। पर अब भी मेरा मन बचपन की स्मतियों मे बार-बार खो जाता हैं ।जब बडा होने की जल्दी थी और आज उस बचपन को जीने की जल्दी हैं उन अनमोल यादों में एक नाम बहुत खास था। मन्जुला मेरे घर के पिछे ही रहा करती थी। मैं और वो एक ही उम्र की थी।कितने ही खेल हमने साथ मिलकर खेले थे पर उसका जीवन भी एक खेल बनकर रह जायेगा ,ऐसा कभी सोचा न था ।उसके पापा कुछ काम -धाम नहीं करते थे।रोज शराब भी पिते थे। हर रात उनके घर से गन्दी गालियो का शोर रहता था।परजब वो मेरे पास आती तो वही शरारती मुस्कान लिए ,जैसे कुछ हुआ ही न हो।एक दिन वो सुबह-सुबह ही मेरा हाथ पकड कर मुझे अपने घर ले गयी ।चेहरे पर खुशी की एक अलग ही चमक थी। मैं अन्दाजानहीं लगा पा रही थी। आखिर बात क्या हैं। बक्से पर बहुत सारा सामान रखा था। सुन्दर सी साडी,सुन्दर सा सूट,फल,मिठाईयाँ । उसे सजने-संवरने का बडा शौक था और श्रृंगार का सामान देखकर तो खुशी मे पागल हो गई थी। हर चीज को पहर कर दिखा रही थी। मैं उसकी खुशी को अन्दर से महसूस कर रही थी। आज पहली बार केवल उसके लिए कुछ आया था और वो विश्वास नही कर पा रहीं थी।जल्दी ही पता चला की उसकी शादी तय कर दी गई हैं ।वो बहुत खुश थी। वो अक्सर बताया करती थी कि उसकी शादी एक बहुत बडे घर में हो रही है। अब तो वो एक स्वप्न लोक में रहने लगी थी।जैसे घोडी पर सवार होकर कोई राजकुमार आयेगा और उसकी सारी परेशानियाँ हर लेगा। पर सपने तो सच कहाँ होते हैं ।शादी वाले दिन दूल्हा देखते ही सबके होश उड गये। एक बारह साल की बच्ची के लिए अधेड उम्र का दूल्हा। मन्जुला का तो रो-रो कर बुरा हाल था। मुझे नहीं करनी शादी वो बिलख रही थी ।हम सब तमाशबीन की तरह सिर्फ तमाशा देख रहे थे।उनके घर वालो का तर्क था कि लडके की उम्र का क्या हैं ।ये वहाँ राज करेगी राज ।विदाई के समय पर उसका करूण विलाप चरम पर था,सबकी आँखो में आँसू थे पर कोई कुछ नही कर पायें एक निरीह जानवर की तरह उसे एक खूँटे से दूसरे खूँटै पर बाँध दिया गया। जब पहली बार वो ससुराल से आई तो दौड के मेरे पास आकर मुझसे लिपट गई और सुबकने लगी। पर मैं मै भी क्या कर सकती थी। वो जब तक यहाँ रहती खुश रहती पर ससुराल के नाम पर उसे बुखार चढ जाता। शादी के एक साल के भीतर वो एक बच्चे की माँ भी बन गयी। बडे प्यार से अपनी बच्ची का नाम रखा था-माधुरी। वो अपने आप को ससुराल में समायोजित नहीं कर पा रहीथी। वो खुद एक बच्ची ही थी पर उम्मीदें बडो सी लगा रखी थी,जिन्हे पूरा करना बहुत मुश्किल था। उसने अपनी बच्ची के साथ यहीं रहने का निश्चय किया। लेकिन वो भूल गयी थी की उसे अपनी जीन्दगी के फैसले लेने का हक नहीं हैं ।दो बार उसका पति उसे लेने आया पर वो नही गई। जि से वो अपना अपमान समझ कर अपनी जीवन लीला का समा प न कर कर लिया। साल दो साल की शादी में उसने तीन चार महिने ही उसके साथ गुजारे थे। उसका अनुभव उसके लिए बहुत बुरा था।वो प्यार जो एक पति -पत्नि में होना चाहिए वो उसके लिए नही जगा पाई थी। उसे कुछ समझ नही आ रहा था,वो रोये या हँसे। समय के साथ हर घाव भर जाता हैं, वो भी सब भूल कर दोनो माँ बेटी आराम से जिन्दगी गुजार रही थी।लेकिन एक बार फिर उसके पिता ने उसका रिश्ता कर दिया।मजबूर होकर उसे अपनी बेटी को छोडना पडा। मुश्किल से वहाँ वो दो महिने ही रूकी होगी ।और एक दिन मौका पाकर वो वहाँ से भाग आयी। अब एक बार फिर दोनो माँ बेटी साथ साथ थी। वो अपनी बेटी के साथ खुश थी।उन्हे किसी तिसरे की जरूरत नही थी पर औरौ को कैसे समझाये ।जल्दी ही उसके पापा ने तीसरी जगह जबरदस्ती नाते बैठा दी और वो अब भी कुछ नही कर पायी ।अपनी बेटी को छोडते समय वो जितना तडपी जितना रोई थी,ये मै अच्छे से जानती हूँ।उसके हर दर्द,हर तकलीफ की गवाह रही हूँ। पर हमेशा की तरह कुछ नही कर पायी। करीब चार महीने बाद एक गर्मी की दोपहर दरवाजा खटखटाने की आवाज हुई। दरवाजा खोलते ही सामने मन्जुला थी।मैं सपकपा गयी। चेहरे पर चोट के निशान थे।चुन्नी से मुँह ढक रखा था।चुपचाप मुझे वो घर की छत पर ले गयी।गले लगकर रोने लगी।बार -बार अपनी बेटी के बारे मे पूछने लगी। मैंने कहाँ शाम तक तेरे घरवाले आ जायेंगे तब मिल लेना माधुरी से,अभी तो सब कहीं गये हैं।माधुरी तो अब अच्छे से बोलने लग गयी हैं।चुन्नी से आँसू पोछते हुए वो बोली ,मेरे पास शाम तक का समय नही हैं। एक बार अपनी बेटी को देखना चाहती थी इसलिए यहाँ आ गयी।ये तु क्या कह रही हैं। तु पूरा सच नही जानती ।आज बताती हूँ। मेरी पहली शादी मेरा पहला सौदा जो खुद मेरे पिता ने किया मात्र तीस हजार रूपये के लिए किया।दूसरा सौदा सत्तर हजार रूपये के लिए किया। इस बार तो मुझे पूरे एक लाख रूपये के लिए बेच दिया गया हैं।मुझे अपनी बेटी से भी नही मिल सकती।देख इस राक्षस ने मेरा क्या हाल किया हैं।उसके घावो को देखकर मैं अन्दर तक से हिल गयी थी। इतनी सी उम्र मे अपनो द्वारा इतना सब कुछ झेल चुकी थी। पिता होकर अपनी बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं। पर अब और नहीं ।मैं अब अपना सौदा बार बार नहीं होने दूंगी। मैं यहाँ से बहुत दूर जा रही हूँ,क्यो की यहाँ मैं रही तो ये मुझे बेचते रहे गें ।मैं इन सबसे बहुत दूर जा रही हूँ।अगर समय मिले तो कभी -कभी मेरी माधुरी को देख लेना और किसी से मत कहना की मैं यहाँ आई थी। आज अठारह साल बाद भी उसका कोई सुराग नहीं हैं।कहाँ गई,कैसी हैं, कोई नही जानता। बस भगवान से इतनी दुआ हैं, जहाँ भी हो,खुश हो।

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