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आध्यात्मिक भ्रान्ति

7 जुलाई 2018

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जय सिय राम भारत सदा से ही एक समृद्ध परंपरा और संस्कृति का प्रचारक रहा हैI क्या हम अपने देश को आध्यात्म-विहीन देश के रूप में देख सकते हैं? प्रश्न यह है कि “आजकल की युवा पीढ़ी धर्म को मज़हब या सम्प्रदाय मानने लगी और उन्हें केवल उपरी सतह की मात्र जानकारी हैI” यह पीढ़ी महिला-उत्पीड़न, सांप्रदायिक दंगे,या अन्य कुरीतियाँ इत्यादि विषयों का कारण धर्म जगत को मानती हैI उदाहरण के रूप में -उसे लगता है कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर नहीं बनना चाहिए क्योंकि इससे धार्मिक निरपेक्षता पर ठेस पहुँचेगी, और भी अन्य दलीलें दी जाती हैंI यह एक सामान्य कामकाजी युवा की सोच है, जो स्वयं नहीं सोच सकता, उसका यह कहना कि मन्दिर नहीं बनना चाहिए बताता है कि उसके दिमाग पर कुछ भड़काउ लोगों का प्रभाव हैI अब यह भ्रम फैलाया जाता है कि भारत में धर्म हमें तोड़ता हैIकैसे? क्योंकि अलग-अलग पूजा पद्धति,रहन-सहन का ढंग इत्यादि हमें बांटते हैं, और सबसे बड़ा कारण यह कि धर्म नाम की चीज़ ही है जो हिन्दू-मुस्लिम दंगे करवाती है, राम और अल्लाह अलग-अलग हैंI इसलिए हमें इस धार्मिक माहौल में नहीं रहना हमें तो सुख और चैन की नींद चाहिए, इसलिए हम इश्वर में नहीं मानते हैं और नास्तिक बन जाते हैंI यह है एक सामान्य युवा कि सोच जो भ्रमित है,और जो इश्वर में थोड़ी आस्था रखते हैं वे भयभीत हैं, अर्थात धर्म को जानने का प्रयास कोई नहीं करना चाहताI अब यह भ्रान्ति बहुत सालों से फैलाइ जा रही है, भारतीय युवा को अपनी संस्कृति के प्रति कुंठित और विचारहीन बनाया जा रहा हैI आज का माहौल भारतीय युवा को स्वयं की सोच विकसित नहीं करने देना चाहता, जैसा शहीदे-आज़म भगत सिंह ने किया थाI क्योंकि यदि लोग भगत सिंह कि भांति स्वयं की सोच बना लें और दूसरों की सोच का सम्मान करने लगें तो तो यह भ्रमित करने वाला ,भयभीत करने वाला और भड़काऊ कारखाने का उत्पाद कौन खरीदेगा? आज कल कुछ लोगों ने एक कारखाना खोल दिया है, युवा पीढ़ी को “विचारहीन सोच” बेचने का,और उत्पाद की tagline है ”चिंता-चिन्तन एक समान”,एक ऐसी विचारहीन सोच का उत्पाद भरे बाज़ार में बेचा जा रहा है जो हमें दिमागी रूप से पंगु बनाएगाI लोग पहले दिनभर के संघर्ष से राहत पाने के लिए धार्मिक स्थलों पर जाते थे,लेकिन अब तो उन धार्मिक स्थानों पर भी नहीं जाते क्योंकि जब से सोच बेचने वाला कारखाना खुला है वहाँ तो लोगों को अब साम्प्रदायिक सोच दिख जाती हैI इसलिए अब दौड़धूप के बाद शांति पाना है तो हमारी विचारहीन सोच खरीदियेI और शौक से लोग खरीद भी लेते हैंI और उसी बनावटी सोच के द्वारा कहते हैं,”धर्म लोगों को बांटता हैI” अब सत्य क्या है वह भी जान लेंI धर्म का अर्थ है, अपना कर्तव्य का पालन इमानदारी और समझदारी से करना और अपने आराध्य को कभी भूलना नहींI अब इतनी साधारण सी बात को कितना गाढ़ा करके पेश किया जाता हैI इश्वर है हमारे भीतर की आवाज़ जो केवल हम सुनते हैं, और यही आवाज़ किसी वस्तु में परिणीत हो जाए तो वह वस्तु भी पूजनीय है, जिसे बाकि लोग पूजते हैंIअब इसमें कोई बांटने या बंटने का प्रश्न ही नहीं उठताI हम अपनी निजता और स्वाभिमान बनाये रखें, और दूसरों का भी सम्मान करें, यही धर्म है, यही आध्यात्म हैI और यदि गहराई में जाएँ तो पता चलेगा कि सब देवी-देवता अपने आप में जीवन सुधार के तत्व हैंI जैसे: श्री गणेश- विद्या, विनय और विवेक श्री विष्णु – विचारों में व्यापकता श्री शंकर - करुणा श्री शक्ति –आत्मबल, स्वाभिमान श्री सूर्य –ज्ञान जो सबको अन्धकार से निकाले अब लोग इन्हीं नाम पर लड़ते हैंI जबकि इन सबकी आराधना से लड़ने और झगड़ने की सोच तो मिलती ही नहीं हैI ऐसे ही लोग मजहब के नाम पर लड़ते हैं,जबकि सारे धर्मों में सद्भाव से रहने की सीख दी जाती हैI जैसे: सनातन:वसुधैव कुटुम्बकम इस्लाम:अपने सारे पडौसियों का भला करोगे तो जन्नत नसीब होगी जैन:अहिंसा परमो धर्मं:,जीवदया सर्वोपरि बौद्ध:आप्प दीपो भवः सिख:सरबत दा भला, वंड के छको इसाई:प्रेम और करुणा से आप सबका दिल जीत सकते हो सभी में एक दूसरे के लिए प्रेम और सम्मान की बात कही गयी हैI धर्म में लचीलापन होना है ,धर्म एक निर्मल धारा है उसमें जड़ता या ठहराव नहीं हैI वह स्वीकार्यता सिखाता है, असहिष्णुता नहीं सिखाताI श्री ऋगवेद में एक प्रार्थना है: संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते || May you move in harmony, speak in one voice; let your minds be in agreement; just as the ancient gods shared their portion of sacrifice. समानो मन्त्र: समिति: समानी समानं मन: सहचित्तमेषाम् समानं मन्त्रमभिमन्त्रये व: समानेन वो हविषा जुहोमि || May our purpose be the same; may we all be of one mind. In order for such unity to form I offer a common prayer. समानी व आकूति: समाना हृदयानि व समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति || May our intentions and aspirations be alike, so that a common objective unifies us all. अब धर्म क्या? यह तो स्पष्ट हो ही गया होगाI हमारे साथ सबसे बड़ी समस्या है कि हम लोग समुद्र पर तैरते हुए कचरे को ही देखते, और इस बात को भूल जाते हैं कि समुद्र मोतियों का खज़ाना है,परन्तु यदि मोती ढूँढने है तो उसके लिए हमें गोताखोर बनना होगाI जय हिन्द वन्दे भारत मातरम्

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