तू जग की आधी सृजन है,
मानवता तेरा आभारी।
तू खुद में सम्पूर्ण ज्वाला ज्योति है,
कदमों में तेरे जग सारी।।
वक़्त आती तलवार खींचती,
जंगों में तेरी हाहाकारी।
ज़रूरत में तू भूमि सींचती,
ले कर हाथों में हल आरी।।
तू आत्मबल की स्रोत है,
ले उसको चन्द्रमा तक जाए।
मनोबल तो तेरा घोर प्रबल है,
पर्वत को निचा दिखलाये।।
ह्रदय में कोमल फूल मग्न है,
चाहे तो पतथर पिघला दे।
तुझमे वो क्रोध अग्न है,
जिनसे तू सागर सूखा दे।।
पथ पर तेरे काफी कांटे है,
फिर भी मंज़िल की ओर बढ़ती गयी।
सदियों से जो हमने बांटे है,
सारी वाणी चुप करती गयी।।