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सन्तु जीजी -२

14 जुलाई 2018

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कल की सोलह साल की दुल्हन आज बीस बरस की विधवा हो चुकी थी ।एक औरत का विधवा होना ही एक बहुत बडा अभिशाप माना जाता हैं और पश्चिमी राजस्थान में तो इनके नियम ही बडे कठोर थे। सन्तु जीजी के दुख की गहराई को कोई नही समझ सकता था लेकिन एक विधवा को क्या करना चाहिए ,किन- किन नियमो का पालन करना हैं,इनकी परवाह जरूर थी ।दिन रात एक ही जगह बैठे रहना,जमीन में सोना ।रूखी रोटी खाना।सुबह- सुबह किसी को मुँह ना दिखाना ।और न जाने ऐसे कितने ही नियम थे, जिनका पालन वो दिन रात कर रही थी।भगवान से एक ही शिकायत थी की ये सब उसके साथ ही क्यो किया। एक रात उन्हे कुछ ठण्ड सी महसूस हुयी पर उनके पास ओढने को कुछ नही था ,रात में सब गहरी नींद में सो रहे थे इसलिये कीसी को न जगाकर खुद ही अन्दर से चादर ले आयी। सुबह जब चाची सास ने देखा तो बोली,'बिन्दणी सब कपडान के हाथ कोनी लगाबो करे।पाछे धोणी पडसी ,कुछ चायजे तो म्हाने बोल द्यो। बारा बामण तो हो जाबा द्यो। 'जीजी अवाक रह गयी कल तक पूरे घर में बिन्दणी सा- बिन्दणी सा और आज वो अछूत हो गयी है। एक रिश्ता ना होने पर क्या सारे रिश्ते भी खत्म हो जाते हैं ।जीजी एक पत्थर के बु त की तरह सबके कहे अनुसार किये जा रही थी। हर समय बोलते रहने वाली सन्तु जीजी आज बिल्कुल खामोश थी ।बिना पिन के वो साडी को संभाल भी नही पाती थी पर गाँव में साडी मे पिन लगाकर पहनना भी मैडम बनने का प्रतीक था जीजी को ये सब झेलकर भी जीना थाअपने उस ख्वाब के लिए ,जिसका सपना दोनो ने मिलकर देखा था ।लेकिन होनी को यह खुशी भी मन्जूर नहीं हुई। वो भी जीजी को इस बेरहम दुनियाँ में अकेली छोडकर चला गया ।अपने तीन महीने के गर्भ के गिर जाने पर वो और भी व्यथित हो गयी। इन तीन महीनो मे जीजी ने उससे गहरा जुडाव महसूस कर लिया था। उसके साथ वो हँसती थी,बातें करती थी। उनके अकेले पन का साथी था वो। लेकिन उसने भी दगा दे दिया यूँ समय दुख के साये मे निकल रहे थे। एक दिन मौका देखकर चाची और चाचा जी (ससुर) ने जीजी को बडे प्यार से बैठाकर समझाया की अकेले जिन्दगी काटना बहुत मुश्किल हैं ।अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हैं ।अभी तो पूरी जिन्दगी पडी हैं। तुम्हारे सारे दुखो का अन्त हो सकता हैं यदि तुम हमारी बात मान लो। हमारे बेटे के तुम नाते बैठ जाओ ।हमें और उसे कोई परेशानी नही हैं,लेकिन एक शर्त हैं।तुम्हे अनुकम्पा नियुक्ति में इसका नाम देना होगा। आखिर एक विधवा से शादी कर रहा हैं,ऊपर से तुम्हा रे बच्चे भी नहीं होते, बदले में कुछ तो मिलना चाहिये।जीजी विश्वास नहीं कर पा रही थी की उनसे ये सब कहा जा रहा हैं एक दम सुन्न सी हो गयी फिर कुछ देर बाद बोली,'मुझे इन चार, सालो में ही उनसे इतना प्यार मिला हैं की उसके सहारे मैं अपनी पूरी जिन्दगी निकाल सकती हूँ।उसके लिये मुझे रिश्तो के सोदेबाजी की जरूरत नहीं हैं । ' जीजी के जवाब से सब चिढ से गये। सन्तु जीजी इस समय दो-दो युद्ध लड रही थी ,एक अपने आप से और दूसरा इन रिश्तो से।बाहर निकल ते ही देवर ने कटाक्ष किया,तो आप भाई की जगह नोकरी करना चा हती हो। दसवी पास भी नही हो,चपडासी की ही नोकरी मिलेगी। आँफिस में पानी पिलाते डोलना सब को। जीजी अन्दर से बहुत दुखी पर उनके पास ये सब झेलने के अलावा कोई चारा भी नही था। उनकी सगी ननद ने कहा ठीक किया भाभी जो आपने मना कर दिया। ये सब तो परायें हैं पर मैं तो आपकी सगी ननद हूँ ,ये नोकरी आप इनको (पति) को दे दिजिये। आपका मैं बहुत ख्याल रखूंगी।किसी बात की कमी नही होने दूंगी। जीजी समझ नहीं पा रही थी ,क्या ये वही रिश्ते है जो कल तक कितने सगे लग रहे थे। उसे ये रिश्ते नाते सब के सब ढकोसला नजर आ रहे थे। उनके अकेले पन का जो साथी था वो भी बहुत दूर जा चुका था। । लेकिन वो क्या करें, क्या ना करे उस सवाल का क्या जवाब दे। जैसे-तैसे जीजी ने वहाँ पर छ: महीने पूरे किये।फिर उनके भाई उन्हे यहाँ पर ले आयें। हम भी कई महीनो में देख पायें उन्हे। हम सब पूरा सहयोग कर रहें थे कि ये सब कुछ भूलकर पहले की तरह सामान्य हो जायें पर जीजी के लिए जीजाजी को भूलना असंभव था। एक जिन्दा लाश की तरह अपने जीवन को ढो रही थी।देवर के वो शब्द ,'आप नोकरी करना चाहो हो। दसवी पास भी ना हो ,चपडासी की ही नोकरी मिलेगी।'कानो में गूंज ते रहते थे। एक दिन भाई ने समझाया की आप पढाई शुरू कर ,इससे आप का ध्यान भी दूसरी तरफ लगेगा और आप दसवी पास कर के भी सबको दिखा दो। अब जीजी ने भी कमर कस ली ।उन्होने दसवी के प्राइवेट फार्म भर दिये। वो हमारे साथ ही अपनी पढाई करने लगी। लेकिन लाख कोशिश करने पर भी उनका ध्यान पुरानी यादों में ही खो जाता। कभी मन ही मन मुस्कुराने लगती तो कभी गहरे दुख मे भर जाती। और सब तो वो कर लेती पर मैथ उनकी समझ से बाहर थी।मैथ का ट्यूशन भी किया फिर भी सब उनके ऊपर से जा रहा था। परीक्षा दी। हम दोनो भाई-बहन पास हो गयें किन्तु जीजी फैल हो गयी। हम सब बहुत दुखी हुयें। लेकिन हम ने उन्हे फिर से दसवी पास करने की हिम्मत दी लेकिन उनके लिए तो दसवी पास करना तो एवरेस्ट की चढाई थी। ससुराल वाले हँस रहे थे। नही होगी तुझसे दसवी पास। लेकिन फिर लग गयी जीजी अपनी तैयारी में अब यहाँ भी मोहल्ले वाले उन्हे मनहूस समझने लग गये थे। अागे-पिछे बोलती कैसी किस्मत लिखा के लायी हैं ना गोद भरी हैं ना माँग ।जाने पिछले जन्म के क्या-क्या लेख बाकी हैं अभी ।जीजी भी अब इन बातो को समझने लगी थी। किसी भी शुभ काम में वो बाहर नहीं निकलती थी। अगर रास्ते में भी होती तो अपना रास्ता बदल लेती थी। मैं अब उनकी मनो व्यथा को समझने लगी थी पर चाहकर भी उनके लिए मैं कुछ नही कर पा रही थी। इसी बीच पापा का तबादला हमारे गाँव में हो गया और हम सब अपने पैत्रक गाँव आ गये। बडे दुख के साथ वो हमें बस स्टेण्ड तक विदा करने आयी थी। हम सब को उनस् बिछुडने का काफी दुख था। एक दो बार खतो का आदान -प्रदान हुआ।लेकिन दूरी की वजह से मिलना मुमकिन ना हुआ। लगातार तीन असफलताओ के बाद आखिर चौथी बार में सन्तु जीजी ने सफलता प्राप्त कर ली ।हम सब उनके पास होने की खबर से बहुत खुश थे। शायद इससे ही जीजी के घावो पर मरहम लग जाये।जीजी की नोकरी लग गयी। हमें कुछ सुकून था कि अब वो अपनी जिन्द गीमें बिना किसी पर बोझ बने स्वाभीमान से जी सकती हैं ।फिर हम अपनी दुनियाँ दारी में ऐसे उलझे की उनके बारे में पूंछने की फुरसत ही नही लगी। कभ ी - कभी उनकी याद जरूर आ जाती थी। फिर पता चला कि उनके घर वालो ने उनकी शादी कर दी हैं कोई शरीफ आदमी मिल गया जो उनका हाथ थामने के लिए बिना शर्त तैयार था। लेकिन जीजी के लिए ये रिश्ता मात्र समझोता था।अभी दो महिने पहले ही एक बेटे को जन्म दिया था। हम सब खुश थे कि चलो देर से ही सही पर भगवान ने उनकी झोली में भी खुशियाँ डाल दी। उन्होने मुझसे मेरी शादी में आने का वादा किया। मेरी भी शादी तय हो गयी थी। सब जगह कार्ड बँट गये थे।मुझे सन्तु जीजी के आने का बेसब्री से इन्तजार था।पापा तो वहाँ के सभी मित्रो को खुद कार्ड देके आये थे।शादी के दो दिन ही रह गये थे परन्तु जीजी अब तक नही आयी थी। हमारे एक रिश्तेदार जो वही रहते थे,वो शादी में आ रहे थे,उनका फोन आया। मैने उनसे कहा की आप जीजी को भी साथ लेते आना।पगली सन्तु अब कहाँ हैं । उसे गुजरे तो पूरा एक महीना हो गयाआपके पापा ने नही बताया,वो तो होकर गये थे। । मेरे हाथ से फोन छूट के गिर गया।मैं कैसे अपनी शादी की खुशी मनाऊँ। दूसरी शादी में भी किस्मत ने भी दगा दे दिया ।आँखो से टप-टप आँसू बह रहे थे। आज उनकी गोद भी भरी हैंऔर ना माँ ग ही सूनी हैं पर दुनियाँ के इन तमगो को झेलने के लिए वोखुद इस दुनियाँ में नही रही।आप इस दुनियाँ में तो जिन्दा नहीं हो पर मेरी यादो में हमेशा जिन्दा रहोगी।

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आपकी शुभ कामनाओं के लिए आपका बहुत -बहुत शुक्रिया।

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