प्राचीनकाल में जहाॅ नारियों को दैवीय अवतार समझा जाता था।उसका सामाजिक-राजनीतिक क्रियाकलापों में अपना अस्तित्व था।युग बदलते रहें,नारियों की दशा भी जीर्ण शीर्ण होती रही और एक समय ऐसा आया कि जब महिला पूर्ण रूप से पुरूषों पर आश्रित हो गई और नारियों पर कक्षई पावंदियां लगने के साथ ही अनेक सामाजिक कुरीतियों ने जन्म ले लिया,साथ ही दकियानूसी, रूढ़िवादी रीतिरिवाजों ने लङकियों को समाज व परिवार के लिए बोझ बना दिया।जिससे सामाजिक स्थिति में गिरावट,आर्थिक परनिर्भरता के अतिरिक्त शिक्षा स्तर में गिरावट आ गई।अनवरत चलते लङकियों की दयनीय स्थिति में सुधार के लिए आधुनिक युग के कई अग्रेता जैसे-गांधी जी, दयानन्द सरस्वती,तिलक आदि ने सुधारात्मक प्रयास किए और इन्दिरा जी,पी.टी.ऊषा,सरोजनी नायडू, नजमा हेपतुल्ल्, किरण बेदी आदि प्रेरणा स्त्रोंत बनी।सरकारी अमले ने भी महिला उत्थानात्मक योजनाएं ,कार्यकर्म,वैकल्पिक प्रावधान,कानूनी अधिकार,आरक्षण व्यवस्था प्रदत्त की और निरन्तर सुधारात्मक प्रयासो के लिए प्रयत्नरत हैं।फिर भी दृष्टिगोचर परिणाम नही हो रहे हैंकहने को पूर्व की और वर्तमान की महिला स्थिति में काफी परिवर्तन आया,लेकिन समाज में चन्द बिन्दु ऐसे हैं,जो महिलाओं को वास्तविक स्थितिसे वंचित किए हुए हैं।रामायण की सीता माता ने महर्षि गौतम से शिक्षा ग्रहण न करने का विरोध इसलिए किया थाकि उन्होंने अपनी पत्नी पर शक करके उसे तिरस्कृत व त्याग किया था।लेकिन स्वयं सीता माता भगवान राम द्वारा अग्निपरीक्षा व त्यागे जाने का विरोध न करके,मूकरूप से समझौता किया ।शायद कही न कही यह पौराणिक घटनाएं महिलाओं की दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेंदार हैं।दशक दर दशक महिला स्थिति परिवर्तित होकर अपना अस्तित्व कायम कर रही हैं,लेकिन आज भी कई समस्याओं मे नारी स्थिति समस्या पर सुई अटकी हुई हैं।आखिर ऐसे कौन-से व्यवधानमूलक बिन्दु हैं,जो नारियों को उपेक्षित व आशानुकूल परिणाम प्राप्ति में अवरोध हैं।
मेरे व्यक्तित्व दृष्टिकोण से पुरूषों अहंप्रवृति व मानसिक संकीर्णता।क्योकि जब तक पुरूष निष्पक्षभाव से महिलाओं को सुविधाएं जैसे-शिक्षा अधिकार,सामाजिक,राजनीतिक दर्जा में पहल नही करेगा,तब तक आप कितनी भी योजपाएं बनाईए,कारगर सिद्ध नही होगी।
स्वयं महिलाएं भी शिक्षा गर्हण करने के नाम पर किताबी डिग्रियाॅ लेकर,नैतिक मूल्यों से परे होती जा रही हैं,जो सामाजिक -पारिवारिक विघटन का कारण हैं।सामाजिक मूल्यों का पतन होने के कारण, अनेक सामाजिक विकृतियाॅ जन्म ले रही हैं।अतः महिलाओं को, लङकियों को शिक्षित होने के साथ अपनी सोच बदलनी होगी क्योकि एक शिक्षित गुणवान महिला पूरे परिवार को शिक्षित कर सकती हैंमसाथ ही शिक्षा ,महिलाओं का आकस्मिक बीमा हैं।जितना भी मौका ज्ञान प्राप्त करने का मिलें,उसे गॅवाना नही चाहिए।उच्चसैद्धान्तिक मूल्यों को व्यवहारिक रूप देकर सामाजिक संक्रमित दौर को पार करना होगा,तभी वास्तविकता में सुधार दृष्टिगत होगा।
महिला, महिला की सहभागी बनकर उसे उत्थान मार्ग पर ले जाए तो शायद यह पुरूषप्रधान समिज की दवंगकारी,अत्याचारी नीति को परिवर्तित कर समतावादी समाज स्थापित हो सकेगा,जो नर-नारी की जीवन गाङी के दोनों पहियों की सार्थकता सिद्ध कर सकेगे और पुरूषों की सोच से अवांछनीय तत्वों का परिष्कार हो सकेगा,क्योंकि किसी महापुरूष ने कहा भी हैं-'महिला की सफलता की कुंजी पुरूषों के हाथ में हैं।'