साथियो,
हिन्दी साहित्यकार त्रिलोचन शास्त्री एक कवि होने के साथ-साथ एक सफल संपादक के रूप में भी जाने जाते हैं I उनका जन्म 20 अगस्त सन 1917 को सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश में हुआ था I उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- धरती, गुलाब और बुलबुल, दिगंत, ताप के ताए हुए दिन, शब्द, उस जनपद का कवि हूँ, अरधान, तुम्हें सौंपता हूँ, चेती, फूल नाम है एक, सबका अपना आकाश, अगर चोर मर जाता, आदमी की गंध, एक लहर फैली अनंत की, जीने की कला आदि I 'ताप के ताए हुए दिन' काव्य संग्रह पर उन्हें सन 1981 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया I साहित्य सृजन का ये राही 7 दिसंबर सन 2007 को चिर निद्रा में लीन हो गया I 'शब्दनगरी' के मंच से आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं कविवर त्रिलोचन के साहित्य से उनकी अन्यतम रचना 'बढ़ अकेला' I हमें पूर्ण विश्वास है कि इसे पढ़ते हुए आपको मधुरिम रसानुभूति अवश्य होगी I
बढ़ अकेला
यदि कोई संग तेरे संग वेला
बढ़ अकेला
चरण ये तेरे रुके ही यदि रहेंगे
देखने वाले तुझे, कह, क्या कहेंगे
हो न कुंठित, हो न स्तंभित
यह मधुर अभियान वेला
बढ़ अकेला
श्वास ये संगी तरंगी क्षण प्रति क्षण
और प्रति पदचिन्ह् परिचित पंथ के कण
शून्य का श्रृंगार तू
उपहार तू किस काम मेला
बढ़ अकेला
विश्व जीवन मूल दिन का प्राणमय स्वर
सांद्र-पर्वत-श्रृंग पर अभिराम निर्झर
सकल जीवन जो जगत के
खेल भर उल्लास खेला
बढ़ अकेला
-त्रिलोचन
शब्दनगरी संगठन
29 अप्रैल 2015पुष्पा जी, अनेक धन्यवाद एवं आभार !