पर्यावरण यानी वातावरण । पृथ्वी और इसके कक्ष में आने वाली हवा, पानी, समुद्र, पहाड़ियां, पेड़ों से भरे जंगल, मिट्टी, झील, झरने जानवर, सौरमंडल इत्यादि पर्यावरण के विभिन्न अंग हैं। पर्यावरण में संतुलन होना चाहिए। इसे सदा साफ और स्वच्छ रखना सभी का कर्तव्य है। पशु-पक्षी और हम सब के जीने के लिए ऑकसीजन बहुत आवश्यक है। ऑक्सीजन पाने के लिए वृक्ष हमारी बहुत बड़ी मदद करते हैं। वृक्ष हमसे छोड़ी गई कार्बनडाइऑक्साइड लेकर हमें ऑक्सीजन देते हैं। इस प्रकार पेड़-पौधों की सहायता से पर्यावरण संतुलित हो जाता है। पर्यावरण में असंतुलन से ऋतुएं समय से नहीं आतीं और वर्षा भी नियमित नहीं होती। वर्षा हुई भी तो कहीं अतिवृष्टि कहीं अनावृष्टि होती है। पर्यावरण के असंतुलन को रोकने के लिए हम सब सहयोग दे सकते हैं। सबसे पहले तो हम गंदगी न फैलाएं। अपने आस-पास की नालियों को साफ रखें। कूड़ा कचरा जहां-तहां न फैंकें। इसे एक निश्चित स्थान पर डालें ताकि नगर निगम की गाड़ी इसे शहर के बाहर बंजर भूमि में फेंक सके। पर्यावरण मानव जाति का सुरक्षा कवच है। अनुचित उपयोग से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा ही। रास्तों पर दौड़ते वाहन, कार्बनडाइऑक्साइड छोड़ते कारखानों की चिमनियों से निकलता धूआं वायु प्रदूषण के प्रतिशत को बढ़ाते रहते हैं। नगरीकरण और औद्योगीकरण वैज्ञानिक विकास की देन हैं तथा इन दोनों की देन है प्रदूषण। पर्यावरण को सर्वाधिक नुकसान प्रदूषण से ही पहुंचता है। विशेषज्ञों के अनुसार एक लाख हेक्टेयर पर पेड़ लगाकर वातावरण से प्रति वर्ष 10 लाख टन कार्बनडाइऑक्साइड सोखी जा सकती है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व कार्बन व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत तक संभावित है जिससे इसे प्रति वर्ष 100 मिलियन डॉलर प्राप्त होंगे। क्योंकि विकसित देशों ने औद्योगिक उन्नति करली है और जंगल लगाने के लिए उसके पास भूमि का भी अभाव है, इसीलिए विकासशील देशों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में अपना योग्दान बढ़ाएं। भारत को कार्बन ट्रेडिंग के लिए एक अति अनुकूल देश माना जाता है। किंतु भारत को इस व्यवसाय में फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहिए। क्योंकि डॉलर कमाने का यह धंधा आगे चलकर भारत के विकास का रोड़ा भी बन सकता है।
संतुलित पर्यावरण न केवल किसी देश विशेष बल्कि संपूर्ण विश्व की समस्या है। तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। इससे समुद्र के नजदीक बसने वाले नगर डूब रहे हैं। नदियों के साफ पानी में जहरीला रासायनिक कचरा छोड़कर मानवजाति के लिए हानिकारक वातावरण तैयार किया जा रहा है। पानी के दुरुपयोग तथा जंगलों की अंधाधुंध कटाई से वातावरण में प्रदूषण फैल रहा है। कुएं और तालाब सूख रहे हैं तथा भूजल स्तर भी नीचे जा रहा है। दूषित पानी पीने से गैस्ट्रो और कॉलरा जैसी भयावह बीमारियां फैल रही हैं । प्रदूषण के कारण कीट-पतंगों से फसलों को बचाने के लिए रासायनिक छिड़काव करना पड़ता है जोकि मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। किसी हादसेवश या जानबूझकर समुद्र में तेल या रेडियोधर्मिता फैल जाने से भी वातावरण प्रदूषित हो जाने से मानव तथा पशु-पक्षियों का प्रभावित होना निश्चित है। पेट्रोलियम पदार्थों के उपयोग की बेलगाम छूट के कारण विषैली गैसों का उत्सर्जन हो रहा है। पर्यावरण कार की चपेट में है। तापमान में वृद्धि का भी यह एक मुख्य कारण है। ऊर्जा, परिवहन, कृषि व औद्योगिक क्रांति के लिए कोयला, खणिज, तेल और पेट्रौलियम गैस का प्रयोग बढ़ने से कार्बनडाइऑक्साइड और अन्य गैसों का उत्सर्जन बढ़ा है। यूरोप, अमेरिका और अन्य विकासशील देशों जिसमें भारत और चीन भी शामिल हैं, में कारों की संख्या बढ़ी है। विश्व की सर्वाधिक कार कंपंनियां भारत में कार बेचना चाहती हैं। आंकड़ों के अनुसार 2005 में देश में उच्च-मध्य वर्ग की संख्या 5 करोड़ से अधिक थी, 2015 में 20 से 25 करोड़ और 2025 तक 40 से 45 करोड़ तथा इसी वर्ग का कारों की तरफ विलक्षण आकर्षण होता है। देश की 70 फीसदी नदियां प्रदूषित हैं और मरने की कगार पर हैं। गंगा का स्रोत गंगोत्री ग्लेशियर 30 सालों में 1.5 किमी तक सिकुड़ चुका है। इसरो के आंकड़ों में भी बारहमासी नदियों के स्रोतों के धीरे-धीरे सिकुड़ने की पुष्टि हुई है। देश के 2.32 प्रतिशत वनक्षेत्र पर अवैध कब्जा है। हिमालय के 16000 ग्लेशियरों में से अधिकतर पिघल रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने गंगा को सबसे प्रदूषित नदियों की श्रेणी में रखा है। वर्ष 2008 में भारत के पास केवल 18 प्रतिशत सीवेज के शोधन की क्षमता थी। बाकी के सीवेज को जलस्रोतों में बहा दिया जाता है जो जलस्रोतों को प्रदूषित करता है। देश की राजधानी दिल्ली में प्रतिदिन बड़ी मात्रा में सीवेज पानी यमूना में बहा दिया जाता है। सच्चाई यह है कि सरकार को नागरिकों तक साफ पानी पहुंचाने के लिए पूरी ताकत लगानी होगी। जहां कभी नदी नाले बहते थे अब वहां प्लास्टिक बहता है। धरती का तापमान बढ़ रहा है और पानी न मिलने से पशु-पक्षी भी मर रहे हैं, जिनका होना प्राकृतिक संतुलन माना जाता है। इन दिनो पर्यावरण को संतुलित रखने में सहायक पक्षियों की कुछ जातियां एवं पेड़ कम हो गए हैं। भारत सरकार को वनों के संरक्षण में की जा रही व्यवस्थाओं में बढ़ोतरी लानी होगी और वातावरण में हरियाली की मात्रा में वृद्धि लाने के प्रयास तेज करने होंगे। वातावरण के संरक्षण से ही मानव जाति सुरक्षित रह पाएगी। दुनिया में प्रदूषण फैलाने वाले सबसे बड़े देश अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया हैं जिनका प्रति व्यक्ति कार्बन जर्मनी और जापान से दोगुना है और भारत से 20 गुना। कार्बन उत्सर्जन के लिए अकेले भारत को 900 अरब डॉलर(आंकड़ा पुराना) की आवश्यकता होगी। 1996 से 2005 के बीच धरती का ताप 0.74 बढ़ा है जिससे जलवायु में विनाशकारी परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। वायुमंडलव में मौजूद पानी के कण और कुछ गैसें धरती से टकराकर लौट रही सूर्य की गर्मी को रोक लेती हैं। जिससे धरती की सतह का औसत तापमान 14 डिग्री सेल्सियस बना रहता है। यदि कारबनडाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ओजोननाशक गैसें न हों तो धरती का औसत तापमान माइनस 18 डिग्री तक गिर जाए। बीसवीं सदी के मध्य में उद्योगों के फैलने के साथ वातावरण में इन गैसों के बढ़ने के साथ इन गैसों की मात्रा बढ़ने के कारण इन गैसों का मोटा आवरण बन गया और सूर्य की अधिक ऊष्मा रुकने लगी। धरती का तापमान बढ़ने से सदियों से बर्फ और समुद्र तल के नीचे दबे मिथेन के विशालकाय भंडार टाइमबम का रुप लेकर फट सकते हैं जिससे जलवायु परिवर्तन की स्थिति और भी भयावह हो जाएगी। जागरुक भारतीय समुदाय और भारत सरकार की ओर से पर्यावरण को नियंत्रित करने के लिए सकारात्मक उपाय किए जा रहे हैं। दिनांक 6.10.2010 को दिल्ली, खड़गपुर, कानपुर, मुंबई, मद्रास, रुड़की तथा गुवाहटी के सात आईआईटी निदेशकों ने केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री के साथ गंगा सफाई योजना से संबंधित एक करार पर हस्ताक्षर भी किए थे। राष्ट्रीय नदी संरक्षण आयोग में देश की 37 नदियों को शामिल किया गया है। जलवायु परिवर्तन पर कोपनहेगन में हुए सम्मेलन में दुनिया की उबरती हुई अर्थव्यवस्थाओं ब्राजील, दक्षिण अफरीका, भारत और चीन ने मिलकर इस जिम्मेदारी को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया था। टिकाऊ विकास पर हुए रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन पर दुनिया के 100 देशों के प्रमुखों ने संयूक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन को स्वीकार किया था लेकिन आज 23 वर्ष बाद दुनिया एकबार फिर से चौराहे पर खड़ी है। कहीं हरियाली हमारे कंप्यूटर तक ही सीमित न रह जाए इसलिए भविष्य सुरक्षित करने के लिए मानवजाति को कुछ उपाय अवश्य करने होंगे। इसके लिए प्रकृति से जो हम लेते हैं उतनी ही मात्रा में उसे लौटाना चाहिए। पेड़-पौधों को काटना नहीं चाहिए, सौर ऊर्जा पर अधिक जोर देना चाहिए, साफ पानी में गंदे तथा हानिकारक तत्व नहीं मिलने देना चाहिए, हरियाली बढ़ाने के लिए पेड़-पौधों और जंगलों का कटाव रुकना चाहिए। वर्तमान में भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 21 प्रतिशत वन क्षेत्र है जिसमें से 40 प्रतिशत खराब हो चुका है। खराब क्षेत्र को सुधारने और वन क्षेत्र को बढ़ाने के प्रयास होने चाहिए, आने वाली पीढ़ियों को प्रदूषण मुक्त विश्व देने के लिए तापमान को बढ़ने से रोकना चाहिए, हथियारों के निर्माण को रोकना चाहिए और सभी को बताना चाहिए कि अपनी जरुरतों के अनुरुप ही सुविधाओं का उपयोग किया जाए।