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बुफे सिस्टम

12 मई 2015

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गाँव कथा दिनांक 14 अप्रैल 2015 चंदनवा के यहाँ तिलक था ! राम आसरे यु तो न्योता खाने के बड़े शौक़ीन थे ,किन्तु उस दिन ज्यो न्योते में गए तो तुरंत ही वापस आ गए ! कल्लन ने भी सोचा न्योते में जाने के लिए राम आसरे को लेता चलु ,अकेले जाने से थोडा संकोच तो होता ही है खाने में ! दो जन रहेंगे तो थोड़ी बेफिक्री रहेगी . ‘’राम आसरे , चलो चंदनवा के हिया हो आये ! ‘’ राम आसरे आंगने में आये ,हाथ में गमछा लिए हुए ! हाथ और मुंह पोंछते हुए ,यह तो कल्लन की आशा के विपरीत था ,उसे शंका हुयी की आसरे भोजन घर में ही कर चुके है ! रही सही पुष्टि आसरे के मुंह से निकली डकार ने पूरी कर दी ! ‘’भईया तुम चले जाओ ,हम तो जाकर आ चुके ‘’ आसरे ने कहा ‘’ काहे खाना अच्छा नहीं बना था का ? घर ही में भोजन किये प्रतीत होते है ‘’ कल्लन का हृदय धडक उठा न्योते का मजा खराब होने की आशंका से . ‘’पता नहीं ! हमने तो चखा ही नहीं ‘’ आसरे ने जवाब दिया ! ‘’ काहे ? ऐसा क्या हुवा ,कौनो लौंडा बदतमीजी किये का ? ‘’ ‘’ अरे नहीं नहीं ! भला हमसे कौन बदतमीजी करेगा ,वो तो वो नया सिस्टम है न आजकल चला हुवा ! क्या कहते है उसे जो हाथ में खाना लेकर खाने वाला ?’’ ‘’बुफे सिस्टम ‘’ कल्लन ने उत्तर दिया , ‘’ हां वही ‘बफर सिस्टम ‘! उसमे मजा नहीं आया , हम चले आये सब देखकर ,मन नहीं किया खाने का ‘’ आसरे ने मुंह बनाते हुए कहा . ‘’ ऐसा क्यों ?’’ ‘’अरे भईया वो बैठक वाली भारतीय पद्धति में जो मजा है वो बुफे में नहीं है ! वहा जाकर देखे तो हर कोई लपका पड़ा है ,अलग अलग डेगचीयो पर लोगो का हुजूम यु टूटा मानो यह दुनिया का आखिरी न्योता हो ,अनुशाशनहीनता थी हर जगह ! हमसे सहन नहीं हुयी यह अनुशाशन हीनता ! भैया जो सम्मान बैठक में बैठ कर खाने में है वो भला भिखारियों के जैसे कटोरा लेके अपनी बारी आने का इन्तेजार करने में कहा है ? ‘ आसरे ने दुखड़ा सुनाया ‘’सो तो है भईया ,किन्तु न्योते का मान तो रखना ही होगा न ?’’ कल्लन बोला ‘’हां न्योते में पचास रूपये लिखवा दिए है ,लेकिन खाने को दिल नहीं किया ,कमलेसवा तो प्लेट लेके खड़ा रहा ,रसगुल्ला मांगे किन्तु मिला नहीं ,चार बार आवाज दिए किन्तु कोई लौंडा नहीं सूना ! भईया हमारे में तो ऐसा अपमान सहने छमता ( क्षमता ) नहीं थी ,आजकल के लौंडो को भला कहा सुनने की फुर्सत है ,जुल्फी बढाये ,सलवार जैसन जिंसवा पहिने ससुरे लपुझन्ने बने बैठे रहेंगे सारे ( साले ) बाप दद्दे की इज्जत मिटटी में मिलाये दे रहे है ! सहरी ( शहरी ) चोंचला गाँव में चलाये रहे है , तो बताओ का जाए न्योता में खाने ? ‘’ ‘’ सही कहे भईया ,अच्छा तो हम भी हो आते है ,न्योते का मान रख के ‘’ कहते कल्लन मुंह लटकाए चल दिया ! ( घटना ,संवाद असली है ,पात्रो के नाम अलग अलग है ) गाँव कथा : 2 दिनांक 14 अप्रैल 2015 बुफे सिस्टम चंदनवा के यहाँ तिलक था ! राम आसरे यु तो न्योता खाने के बड़े शौक़ीन थे ,किन्तु उस दिन ज्यो न्योते में गए तो तुरंत ही वापस आ गए ! कल्लन ने भी सोचा न्योते में जाने के लिए राम आसरे को लेता चलु ,अकेले जाने से थोडा संकोच तो होता ही है खाने में ! दो जन रहेंगे तो थोड़ी बेफिक्री रहेगी . ‘’राम आसरे , चलो चंदनवा के हिया हो आये ! ‘’ राम आसरे आंगने में आये ,हाथ में गमछा लिए हुए ! हाथ और मुंह पोंछते हुए ,यह तो कल्लन की आशा के विपरीत था ,उसे शंका हुयी की आसरे भोजन घर में ही कर चुके है ! रही सही पुष्टि आसरे के मुंह से निकली डकार ने पूरी कर दी ! ‘’भईया तुम चले जाओ ,हम तो जाकर आ चुके ‘’ आसरे ने कहा ‘’ काहे खाना अच्छा नहीं बना था का ? घर ही में भोजन किये प्रतीत होते है ‘’ कल्लन का हृदय धडक उठा न्योते का मजा खराब होने की आशंका से . ‘’पता नहीं ! हमने तो चखा ही नहीं ‘’ आसरे ने जवाब दिया ! ‘’ काहे ? ऐसा क्या हुवा ,कौनो लौंडा बदतमीजी किये का ? ‘’ ‘’ अरे नहीं नहीं ! भला हमसे कौन बदतमीजी करेगा ,वो तो वो नया सिस्टम है न आजकल चला हुवा ! क्या कहते है उसे जो हाथ में खाना लेकर खाने वाला ?’’ ‘’बुफे सिस्टम ‘’ कल्लन ने उत्तर दिया , ‘’ हां वही ‘बफर सिस्टम ‘! उसमे मजा नहीं आया , हम चले आये सब देखकर ,मन नहीं किया खाने का ‘’ आसरे ने मुंह बनाते हुए कहा . ‘’ ऐसा क्यों ?’’ ‘’अरे भईया वो बैठक वाली भारतीय पद्धति में जो मजा है वो बुफे में नहीं है ! वहा जाकर देखे तो हर कोई लपका पड़ा है ,अलग अलग डेगचीयो पर लोगो का हुजूम यु टूटा मानो यह दुनिया का आखिरी न्योता हो ,अनुशाशनहीनता थी हर जगह ! हमसे सहन नहीं हुयी यह अनुशाशन हीनता ! भैया जो सम्मान बैठक में बैठ कर खाने में है वो भला भिखारियों के जैसे कटोरा लेके अपनी बारी आने का इन्तेजार करने में कहा है ? ‘ आसरे ने दुखड़ा सुनाया ‘’सो तो है भईया ,किन्तु न्योते का मान तो रखना ही होगा न ?’’ कल्लन बोला ‘’हां न्योते में पचास रूपये लिखवा दिए है ,लेकिन खाने को दिल नहीं किया ,कमलेसवा तो प्लेट लेके खड़ा रहा ,रसगुल्ला मांगे किन्तु मिला नहीं ,चार बार आवाज दिए किन्तु कोई लौंडा नहीं सूना ! भईया हमारे में तो ऐसा अपमान सहने छमता ( क्षमता ) नहीं थी ,आजकल के लौंडो को भला कहा सुनने की फुर्सत है ,जुल्फी बढाये ,सलवार जैसन जिंसवा पहिने ससुरे लपुझन्ने बने बैठे रहेंगे सारे ( साले ) बाप दद्दे की इज्जत मिटटी में मिलाये दे रहे है ! सहरी ( शहरी ) चोंचला गाँव में चलाये रहे है , तो बताओ का जाए न्योता में खाने ? ‘’ ‘’ सही कहे भईया ,अच्छा तो हम भी हो आते है ,न्योते का मान रख के ‘’ कहते कल्लन मुंह लटकाए चल दिया ! ( घटना ,संवाद असली है ,पात्रो के नाम अलग अलग है )
शब्दनगरी संगठन

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देवेन जी, सुन्दर व्यंग्य है...त्रुटिवश दो बार 'पेस्ट' हो गया है, कृपया लेख प्रबंधन में जाकर ठीक कर लें I धन्यवाद !

11 मई 2015

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गहन खामोशी

7 मई 2015
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माँ और सिरका

10 मई 2015
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वो हमेशा माँ की नाक में दम किये रहता था। माँ हमेशा हैरान रहा करती थी। उसकी एक आदत बड़ी खराब थी, घर में रखे "सिरके" को चाटने की । सिरके का खट्टा स्वाद उसे बहुत पसंद था, जब भी मौका देखता दो चार चम्मच मार लेता । माँ ने इस तरह से सिरके को जूठा करने के लिये जमकर लताड़ा ,लेकिन उसे न समझना था। सो नही समझा

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बुफे सिस्टम

12 मई 2015
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गाँव कथा दिनांक 14 अप्रैल 2015 चंदनवा के यहाँ तिलक था ! राम आसरे यु तो न्योता खाने के बड़े शौक़ीन थे ,किन्तु उस दिन ज्यो न्योते में गए तो तुरंत ही वापस आ गए ! कल्लन ने भी सोचा न्योते में जाने के लिए राम आसरे को लेता चलु ,अकेले जाने से थोडा संकोच तो होता ही है खाने में ! दो जन रहेंगे तो थोड़ी बेफिक्

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फिल्म एक नजर में ( क्लासिक्स ) : गाईड ( १९६५ )

14 मई 2015
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निर्देशन: विजय आनंद निर्माता: देव आनंद कलाकार: देव आनंद, वहीदा रहमान, किशोर साहू,लीला चिटनिस लेखक: आर. के. नारायण (उपन्यास) संगीत: एस.डी.बर्मन

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धर्म के सेल्समैन !

19 मई 2015
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आज शाम को ऑफिस से आकर ज्यो ही आराम करने बैठा के दरवाजे पर दस्तक हुयी ! मैंने दरवाजा खोला तो सामने दो युवक खड़े थे ,दोनों के हाथ में हैंडबैग थे , मैंने पहले उन्हें देखा उन्होंने मुस्कुराहट दिखाई और न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा के ये या तो सेल्समैन है या किसी धर्म के प्रचारक ! मन तो किया के दरवाजा तुरंत ब

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फिल्म एक नजर में : बॉम्बे वेलवेट

20 मई 2015
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अग्ली ‘ के बाद अनुराग कश्यप अपनी नई फिल्म लेकर आये है , जो उनकी अब तक बनाई गई सभी फिल्मो से अलग है ! वैसे ‘बॉम्बे वेलवेट’ अनुराग का सपना रही है ,जिस पर उन्होंने वर्षो मेहनत की है , फिल्म देखते वक्त आपको वह मेहनत साफ़ नजर आती है ,उनकी लगन फिल्म में साफ़ झलकती है ! किन्तु सिर्फ फिल्मांकन तक ही ,कह

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पुस्तक समिक्षा : कोहबर की शर्त

28 मई 2015
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बड़े दिनों से इस पुस्तक की तलाश थी , बड़ी मुश्किल से मिली और मैंने एकाध पृष्ठ पलट कर देखे , पुस्तक कोई नया संस्करण नहीं था ! पुराना ही संस्करण था ,जिसमे से पुरानी पुस्तक की महक आ रही थी ,जो भीनी भीनी सी थी ! और इसी महक के कारण पुस्तक पढने का वातावरण भी तैयार हो गया , गंवई भाषा को देखकर पुस्तक से अप

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पुस्तक समीक्षा : बनारस टाकिज

10 जुलाई 2015
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बनारस टॉकीज : इस पुस्तक का मैंने हाल ही में बड़ा नाम सुना था ,काफी चर्चा हो रही थी शोशल जगत की आभासी दुनिया में ! हम तो ठहरे पुस्तक प्रेमी ,तो भला हम इससे कैसे अछूते रहते भला ! वैसे भी आजकल हिंदी लेखन भी अपनी पुख्ता पहचान बना रही है ,जो कुछ समय पहले तक लुप्तप्राय समझी जाती थी ,किन्तु नए लेखको ने इस

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फिल्म एक नजर में : बाहुबली दी बिगनिंग

12 जुलाई 2015
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एस राजामौली इ ऐसे निर्माता निर्देशक है जिनकी फिल्मो की प्रतीक्षा केवल टोलीवूड ही नहीं अपितु हिंदी दर्शक भी बेसब्री से करता है , उनकी पिछली फिल्मो के बारे में कुछ कहने की जरुरत नहीं है ! बाहुबली जैसी वरिश्द कथानक देने के पश्चात उनका नाम इसी फिल्म से जाना जायेगा यह कहना कोई आतिश्योक्ति नहीं ह

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फिल्म एक नजर में : बजरंगी भाईजान

19 जुलाई 2015
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कबीर खान ने बतौर निर्देशक अपनी फिल्म ‘काबुल एक्सप्रेस ‘ से काफी प्रशंषा बटोरी थी , कुछ समय बाद वे सलमान के साथ ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘ एक था टाईगर ‘ में नजर आये जो उनकी पिछली फिल्म से एकदम अलग थी और मसालेदार एक्शन से भरी थी ! सलमान भी लगातार एक्शन भूमिकाओं में दिखने लगे जिसमे वे काफी जमते

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कारवाँ : ग्राफिक नावेल समीक्षा

2 अगस्त 2015
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कारवाँ : ग्राफिक नावेल समीक्षा कारवां : एक खुनी यात्रा , कुछ अरसे पहले कॉमिक्स जगत काफी सदमे झेल चूका था , बड़ी बड़ी दिग्गज कॉमिक्स कम्पनीज बंद हो रही थी ! वजह कुछ भी रही हो ,पाठको की बदलती रूचि ,मनोरंजन के बढ़ते साधन , पढने में रूचि कम होना , एवं बदलते समय के साथ कॉमिक्स पाठको के विचार बदलना .

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मांझी दी माउन्टन मैन : ‘शानदार ,जबरजस्त ,जिंदाबाद ‘

22 अगस्त 2015
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बिहार के अतिपिछडे इलाके में जन्मे ‘दशरथ मांझी ‘ की सत्य कथा पर आधारित इस फिल्म के निर्माण होने की घोषणा होने पर उत्सुकता जगी थी के अब बॉलीवूड में कुछ तो सार्थक देखने को मिलेगा .और फिल्म देखने के पश्चात यह बात सत्य प्रतीत हुयी ,वैसे भी बॉलीवूड की हवा आजकल कुछ बदली हुयी है ! काफी रचनात्मक प्रयास आ रहे

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टैक्सीवाले भाईजान

21 सितम्बर 2015
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कल कही से वापसी में ऑटो मिल नहीं रही थी ! बारिश की वजह से ट्रैफिक बहुत थी .रिक्शा मिल नहीं रही थी ,एक काली पिली वैगन मिली जिसमे बैठ गया .ड्राइवर चालु भाषा का इस्तेमाल कर रहा था ,,ट्रैफिक लगेली है ,मूड की माँ बहन हो रेली है !!!!!! वगैरह वगैरह .खैर बैठा और गाडी चल पड़ी , रस्ते में ट्रैफिक की वजह से काफ

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फिल्म एक नजर में : वजीर

13 जनवरी 2016
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वजीर के ट्रेलर ने ही काफी उत्सुकता जगा दी थी ,जिसकी मुख्य वजह इसकी स्टारकास्ट भी थी .अमिताभ बच्चन ,फरहान अख्तर ,जॉन अब्राहम ,नील नितिन मुकेश , आदि ,ऊपर से विधु विनोद चोपड़ा का प्रोडक्शन एवम बिजॉय  नाम्बियार का निर्देशन जिनके निर्देशन में हमेशा कुछ हटके मिला है बोलीवूड को ,किन्तु सफलता हमेशा औसत ही र

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नटसम्राट

13 जनवरी 2016
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नटसम्राट ‘’एक त्रासदीपूर्ण एवम मर्मान्तक कथानक का नाट्य रुपंतरण एवंम फिल्म संस्करण .‘’महाराष्ट्र ‘’ नाम लेते ही आँखों के सामने मुगलों को नाको चने चबवा देनेवाले शिवाजी का चेहरा सामने आता है , यहाँ का इतिहास गौरवशाली है ! यहाँ की संस्कृति में कला को जो सम्मान है वह शायद ही कही और देखने को मिले , यहाँ

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फिल्म एक नजर में : एयरलीफ्ट

25 जनवरी 2016
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फिल्म एक नजर में : एयरलीफ्टपिच्छले कुछ समय से अक्षय काफी बढ़िया फिल्मो में नजर आ रहे है जो लीक से हटकर और उम्दा होती है ,कुछ अपवादों को यदि छोड़ दिया जाए तो .यदि बॉलीवुड के पिछले कुछ सालो को खंगाला जाये तो बेशक अक्षय ऐसे सुपरस्टार के तौर पपर उभरते है जो बिना किसी शोरशराबे के अपनी जगह बना रहे है जिससे

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