shabd-logo

संध्या

4 अगस्त 2018

150 बार देखा गया 150
featured image

जवाँ हूँ , जवाँ रहने को हूँ , मचलता,

शाम होते ही,

मैं अगली सुबह को करवटें बदलता|


मालूम है रही ज़िन्दगी ,

तो नई सुबह खींच देगी,

मेरे चेहरे पे एक और लकीर,

गफलत में हूँ, पुरानी मिटाने को,

मैं रातों को सँवरता|


देर-सवेर ही सही |

एक रोज़ तो उसे आना है|

फिर,...कहीं ...???

भर,... टूटकर,...बिखर न जाए,

जीवन वो गुल्लक ,

सोचकर ये!!!

मैं ... अब ... और आना डालने से डरता|


निचोड़कर ,...सूखने को पीड़ा टाँगी है तार पर,

उसपर द्रवित हो नभ भी है अश्रु गिरा रहा|

चाह में ताप की,

...और भीग,

...दर्द बन,

मैं रस्सियों से, बूँदों में हूँ टपकता|


अब बाँध ली है पट्टी ,

और भींच ली हैं आँखें ,

वो काली हवा के साये,

उसपर कब्र की बरगद का यूँ दरकना ,...

कुछ सूझता नहीं अब,...कि...अन्वेष कोई आए !!!

इस दिल पे हाथ रखे |

वो रंगों भरा नज़ारा ,

मैं भी...... काश..... कोई बुनता|



थिरक- थिरक कर लौ दिए की ,...

न जाने क्या समझा रही ???

मैं बुनता रुई के फोहे ,

...इस उम्मीद में ,...

की वो आके तेल भरता ?!!!?


(मनोज कुमार खँसली " अन्वेष" )

मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष" की अन्य किताबें

उमा शंकर  -अश्क-

उमा शंकर -अश्क-

हिंदी पद्य के लगभग इस अकाल के दौर में ऐसी रचनाएँ कम ही नजर आती हैं जैसी की यह लिखी गई है . अति सुन्दर

7 अगस्त 2018

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत अच्छी रचना है | कहाँ थे अब तक | बहुत दिन बाद यह रचना पढ़ने को मिल रही है |

5 अगस्त 2018

1

अजन्मा रुदन (बालिका भ्रूण हत्या पर)

23 जून 2017
0
4
5

अजन्मा रुदन(बालिका भ्रूण हत्या) वर्तमान आधुनिक भारतीय समाज में घर - घर में भीतर तक व्याप्त बेटे प्राप्त करने की

2

मैं कहाँ गज़ल लिखता हूँ ???

26 जून 2017
0
4
4

मैंने कब कहा मैं गज़ल लिखता हूँ ?मैं तो जो भी जीता हूँ , बस वही हर पल लिखता हूँ ! आज फिर शहीदों की गर्दन में घोंप कर कलम,

3

किस्साग़ोई

6 जुलाई 2017
0
4
4

अन्वेष .....किस्सा-दास्ताँ हूँ ,... किस्सागोई का मज़ा लेता हूँ | जो भी ज़ख़्म दिखते हैं , उन्हें अपनी रचना में सजा लेता हूँ | पहले ख़ुद खोदता हूँ कब्र अपनी, फिर खुद को ही काँधे पे उ

4

बाज़ार (भारतीय उप-महाद्वीप के सेक्स वर्करों का रोज़नामचा)

11 जुलाई 2017
0
5
2

खनकते है घुँघरू,रोती हैं आँखें,तबले की थाप पे ,फिर सिसकती हैं साँसें| हर रूह प्यासी,हर शह पे उदासी,यहाँ रोज़ चौराहे पे, बिकती हैं आँहें| ना बाबा,ना चाचा ,ना ताऊ,ना नाना,ना भाई यहाँ है,ना कोई अपना,...!?!... बस एक रिश्ता ,बस एक सौद

5

विडम्बना

14 जुलाई 2017
0
8
5

भूमिका : यह रचना मेरे हृदय के बहुत निकट है| यह कविता मैंने अपनी स्नातक (ग्रेजुएशन) के दौरान नवभारत टाइम्स में छपी ख़बर से

6

झोपड़े का मॉनसून

31 जुलाई 2017
0
8
9

सौंधी - सौंधी सी महक है मिट्टी के मैदानों में| मॉनसून की पहली बारिश है फूस के कच्चे मकानों में| उसके बदन से चिपकी साड़ी,माथे से बहकर फैले कुमकुम,या केशों से टूटकर गिरते मोतियों क

7

कहना चाहता हूँ कुछ ऐसा

11 अगस्त 2017
0
0
0

कहना चाहता हूँ कुछ ऐसा ,...

8

कहना चाहता हूँ कुछ ऐसा

11 अगस्त 2017
0
5
4

भावार्थ - यहाँ रचियता अपनी प्रेयसी के हृदय में अपना घर करने की चाह में नाना प्रकार की उपमाओं का प्रयोग कर रहा है| कभी वह उससे चाँद, तारों, स्वप्नों, कल्पनाओं की बात कर उसके मन म

9

बलि

30 अगस्त 2017
0
6
5

भावार्थ : - भारत में आज भी बलि-प्रथा ब- दस्तूर जारी है एवं जारी है आज के शिक्षित वर्ग का उसम

10

मुझे चाँद चाहिए

13 नवम्बर 2017
0
4
8

तोड़ लूँ,... उस नक्षत्र को जिस ओर कोई इंगित करे, मुझे वो उड़ान चाहिए,हाँ - हाँ मुझे चाँद चाहिए | नीले क्षितिज पे टंगी छिद्रों वाली,उस काली चादर का

11

अस्तित्व

9 फरवरी 2018
0
8
6

क्या हूँ?रोजगारों के मेले में बेरोजगार!?! क्या हूँ ?बिल्डिंगों के बीच गिरी इमारत का मलबा!?! या हूँ? उसमें दबी इच्छाओं , आशाओं और उम्मीदों की ख़ाक !?! कौन हूँ मैं ?क्यूँ हूँ मैं ?क्या हूँ मैं ?क्या अस्तित्व है मेरी इस बेबस सी खीझ का ?...क्या हूँ ?भीड़ भ

12

कहाँ से लाऊँ ???

5 मार्च 2018
0
2
4

13

संध्या

4 अगस्त 2018
0
3
2

जवाँ हूँ , जवाँ रहने को हूँ , मचलता, शाम होते ही,मैं अगली सुबह को करवटें बदलता| मालूम है रही ज़िन्दगी ,तो नई सुबह खींच देगी, मेरे चेहरे पे एक और लकीर, गफलत में हूँ, पुरानी मिटाने को,मैं रातों को सँवरता| देर-सवेर ही सही | एक रोज़ तो उसे आना है| फिर,...कहीं ...???भर,...

14

दर्द

15 फरवरी 2019
1
1
0

दर्द जाने क्या दर्द से मेरा रिश्ता है!?!जब भी मिलता है बड़ी फ़ुर्सत से मिलता है||

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए