समय का बोध सिर्फ उनको होता है जिनका जन्म होता है. जिसका जन्म हुआ हो उसकी मृत्यु भी निश्चित है और जन्म और मृत्यु के बीच जो है वो ही समय है. जन्म ना हो तो मृत्यु भी ना हो और समय भी ना हो. समय सिर्फ शरीर धारियों के लिए है , आत्मा के लिए नहीं. आत्मा अजर है अमर , उसके लिए समय नहीं बाँध सकता. मेरी अपनी कोई उम्र ही नहीं है, उम्र तो सिर्फ इस शरीर की है जो भौतिक पांच तत्वों से बना है, और जिन्हे एक ना एक दिन नष्ट होना है. मैं था , मैं हूँ और मैं रहूंगा. इसलिए ना तो मैं, ना ही मेरा धर्म खतरे में है. खतरे में वो लोग है या उनका धर्म है जो इस शरीर को स्वयं मानते है. मैं स्वतंत्र हूँ, ना तो मुझे कोई धर्म, जात, नस्ल या देश बाँध सकता है. जंजीरे तो लोगो ने अपने पैरो में खुद बाँध रखी है, धर्म के नाम पर , जाति या देश के नाम पर, जिस रोज़ ये ज़ंज़ीरे तोड़ दोगे तुम सबके हो जाओगे और सब तुम्हारे. भगवान् कृष्ण ने गीता में त्याग के महत्व को बताया है, जिस दिन तुम अपने अंहकार को त्याग दोगे तुम मेरे हो जाओगे.(आलिम)