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मेरी अधूरी कहानी

11 अगस्त 2018

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"ये लो लिफाफे मे एक लड़की की फोटो और बाँयोडाटा है देख लेना। कल सुबह चले जान लड़की देखने।" पापा ने टेबल पे लिफाफा रखते हुए कहा। "पाता नहीं इसको कौन सी हूर परी चाहिए " बुदबुदाते हुए पापा रूम से बाहर निकल गए। ये चौथा रिश्ता आया था। पापा फिर से वापस कमरे में आ गए एक लम्बी साँस लेते हुए बोले "कोई और तो नहीं है न।" मै जमीन की ओर सर किए था इस सवाल जवाब पता भी था नहीं भी था। कितना खूबसुरत होता है पहला प्यार थोड़ा भोलापन थोड़ा शरारतपन थोडा शराफत थोड़ी सी सादगी थोड़ी सी शैतानी और ढेर सारा प्यार और ढेर सारी मुस्कराहटे और थोड़े से आँसू। क्या पहला प्यार परियो की कहानियों मे पूरा होता है। उससे मिल के लगा था वो भी मेरे लिए परी ही थी अंधेरे की परी। वो जुगनु की तरह थी जो और ही कोई रात तलास कर रही थी। मै उससे ज्यादा ही उम्मीद लगा बैठा था मैं उसकी उम्मीद के कारण अपने माँ बाप की उम्मीदों तोड़ना नहीं चाहता था। मै अपने पहले प्यार का इंतजार कर सकता था लेकिन यह सब अपने माँ बाप के प्रति नाइंसाफी होगी। वो तो मुझे मालूम ही नहीं था उसके दिल में क्या था शायद पहला प्यार होता ही ऐसा है खूबसूरत आँखो में सपने जगाने वाला लेकिन अधूरा वो जो कभी सच न बने तभी खुशबु उसकी झुअन उसकी टीस जिंदगी भर हमारे साथ रहती है। जो हर बार याद आता है तन्हाई में बारिशो में लम्बे सफर में कोई पुराना गीत सुनके। शायद मेरा प्यार वही सब बनके मेरी जिंदगी में आया था एक खुबसूरत याद। मैने घड़ी की ओर देखते देखते पापा के सवाल का जवाब में कहा- "नहीं पापा और कोई नहीं है।" पापा मम्मी बड़े खुश हुए। बेटे के दुल्हा बनने का ख्याल माँ बाप की सबसे बड़ी खुशी होती है। मेरा पहला प्यार मेरे हाथो से फिसला जा रहा था। सावन आ गया था उम्मीद की शाखो में लगे लम्हो ख्वाबो सपनो के फूल तेज बारिस में टूट के उड़ते चले जा रहे थे। मैं घर से निकलता था तो लगता था मेरे पैर सूखी पत्तियो को रौंधते हुए चल रहे थे ये पत्तियां मेरे सपने ही थे। क्या ये अक्सर होता है मुझ जैसे आम लड़के के साथ कि कोई जिसे हम पुरी तरह जानते भी न हो, उसके साथ लम्बा वक्त गुजारा भी न हो वो इतना अपना सा लगने लगे कि अपनी जिंदगी का बड़े से बड़ा फैसला उसके कदमो में डाल दे। शायद पहला प्यार पागलपन का ही नाम होता है एक अधूरा पागलपन। इस पागलपन ने मुझे सोचने समझने की क्षमता खत्म कर दी थी लेकिन मुझे पता था मै भटक रहा हूं लेकिन मुझे ये भटकना न पसंद भी नहीं था। उसका नाम अ******* मेरा नाम अ******* ये भाग्य था या खुबसूरत इत्तेफाक। मेरी उसकी कहानी खुबसुरत इत्तेफाक से ही बनी थी न। मेरा दिल कह रहा था अगर ये सब न होता तो और कोई इत्तेफाक होता हम कहीं और मिलते क्योकिं मिलना तो था हमें। इतना खुबसूरत इत्तेफाक कभी इत्तेफाक से नहीं होते। लेकिन अब मैं मजबूत हो गया था उसकी यादो से दूरी रखने लगा था। मै जनता था अगर मैं अपने मन को उसके पास जाने दूंगा तो जल जाऊंगा, कमजोर पड़ जाऊंगा। जुलाई का महीना मानसून की बौछारे दिल के गाँव तक आ गयी थी। सोचा दुख न करू जब वह मेरी हुयी ही नही तो बिछड़ती कैसे। शायद अब मुझे उससे नहीं उसके ख्याल से प्यार था या पहले प्यार के ख्याल से प्यार था। आज भी अक्सर बैठ जाता हूं जाके जहां हम मिले थे शायद एक नए इत्तेफाक के इंतजार में। एक सुबह ऐसे ही उदासी में बैठा था पता नहीं पापा ने कैसे पढ लीया मुझे और बोले- "क्या हुआ बहुत शांत शांत रहते हो, कोई बात क्या।" मैने सोचा " पापा क्यो नहीं पढ लेते मेरे मन की बात। आपके इस सवाल का जवाब मैं हजार बार दे चुका हूं। नहीं करनी किसी और से शादी" "कुछ नहीं पापा बस ऐसे ही, छुट्टियां खतम हो रही है इसीलिए।" एक फेक मुस्कान लाते हुए पापा को समझाया। आखिर वो सुबह भी आ गयी बिन बुलाये मेहमान की तरह। मम्मी पापा ने जो लड़की देखी थी उससे मिलने भी जाना था। उस दिन फिर एक नयी परिक्षा देनी थी। मै पहुच गया उस रेस्टोरेंट में जहां उस लड़की से मिलना था। क्या ये मेरी जिंदगी के फैसले की घड़ी थी। मेरी एक "हाँ" मेरी जिंदगी बदल सकती थी। मै गहरी सोच में डूबा था। "हाय!!!अ******* न..... मैं ज**** ।" वो लड़की आ गयी थी जिसकी फोटो मैने लिफाफे से निकाल के देखी ही नहीं थी। वो बाते करने लगी। देखने बोलने में अच्छी थी बल्कि सुंदर थी। गाने और म्यूजिक सुनने की शौकीन थी। हर मिनट मै खुद से सवाल पूछ रहा था इस बार घर में "हां" बोलना है या "न"। उसने कुछ मेरे बारे में पूछा और कुछ अपने बारे में बताया। मैने एक बार फिर अपने से सवाल किया "हाँ" या "न"। अगर समझौता ही करना था अपनी जिंदगी से अच्छा समझौता लग रहा था। कौन जाने वो कभी अपनी जिंदगी में आयेगी भी की नहीं। मन नारदमुनि बन के जिद पे बैठा था "हाँ" या "न"। मै उस रेस्टोरेट में बैठा था जहां जिंदगी मुझसे कह रही थी मै अपनी जिंदगी का फैसला कर लू। मै नहीं जानता था इस रेस्टोरेट से मेरा रास्ता किस ओर जाने वाला है। काश ये लम्हा इतना मुश्किल न होता काश मै अपने दिल की बात सबको बताने में न हिचकिचाता। मै उसकी "हाँ" की ख्वाइस रखता था लेकिन उसकी "न" से डरता था। काश इस टेबल में ज***** नहीं अ****** बैठी होती और बोलती कितने फट्टू हो इतना टाईम लगा दिया बोलने में। जो सिर्फ अब वो ये ख्वाबो में बोल रही थी। जब किसी से प्यार होता है हम हजारो लम्हे बुन लेते है। काश वो मेरी जिंदगी में न आती तो सामने बैठी ये सुंदर सी लड़की मुझे अच्छी लगती। गलती उस लड़की की नहीं थी गलती मेरे दिल की थी जो उसको दे बैठा था। कुछ उसको बोल पाता उससे पहले एक बार फिर आंखो में उसकी तस्वीर आ गयी और मुझे जरा सा भी समय न लगा उसको सब कुछ बताने में। "आँल द बेस्ट फाँर योर लव" बोल के वो मुसकुराते हुए चली गयी। गम को भूलने के लिए सीधा ठेके पे पहुंच गया लेकिन पी नहीं। घर के संस्कारो ने हिम्मत ही नहीं जुटाने दी। घर पहुंचा पापा को ज***** के बारे में और अपना फैसला भी बता दिया। पापा बिना कुछ बोले अंदर चले गए। मैं भी भाग के अपने कमरे में आ गया। जूते एक तरफ फेंके कपड़े दूसरी तरफ फेके और तकिए से लिपटकर बेतहासा रोने लगा। कुछ ही महीनों में मै क्या से क्या हो गया था। इंटेलीजेट समझदार कान्फीडेंट लड़का आज कितना कमजोर हो गया था। जैसे प्यार एक ऊंचा पर्वत हो और मैं उसके नीचे घुटने के बल बैठा था। जिसपे चढने की ख्वाईस भी थी हिम्मत भी थी लेकिन कोई रास्ता नहीं था। आज तक मैने किसी भी चीज को खुद को कमजोर करने नहीं दिया था। प्यार नाम की बला आखिर मेरे लिए क्यो है। मै अपने कमरे से बाहर निकला और सीधा पापा के कमरे में चला गया और कहा "पापा मै कमजोर पड़ रहा हूं मै कमजोर नहीं पड़ना चाहते। मै अभी शादी नहीं करना चाहता। पापा मै यूपीएसी प्रशासनिक सेवा की तैयारी करना चाहता हूं। जब तक मै न चांहू प्लीज मुझे ये शादी वाले झमेले से दूर रखना" मैने अ***** को भुलाने का फैसला कर लिया था। भाड़ मे जाये मोहब्बत जब मोहब्बत को मेरी फिकर नहीं तो मै क्यो करू। उस दिन हल्की हल्की बरसात हो रही थी बादलो की बूंदू आसमान का सीना चीरे नीचे आ रही थी और जमीन से टकरा के अपनी जान दिए दे रही थी। कितनी जोश से चली थी अपने बादल के घर से एक लम्हे में बिखर गयी थी। हिम्मत और न उम्मीदी कितने पुराने यार है जो साथ साथ चलते है जैसे दो लंगोटिया यार आपस में कुश्ती कर रहे हो एक जीते और दूसरा हारे । मेरे लिए ये बारिश नहीं थी कांच के महीन टुकड़े थे जो लम्हो के दूर आसमान में बरसते हुए गिरे चले आ रहे थे। सब खत्म हो गया सब खत्म कर दिया था मैने। बारिस के शोर में मुझे अपनी सिसकिया भी सुनायी नहीं दी अपने आँसू भी महसूस नहीं किए। बारिस होती रही और मैं खामोशी में रोता रहा। फेसबुक खोली तो वो उसकी फोटो किसी और के साथ थी। पर ये तो गलत था मैने तो और किसी और का नाम उसके साथ जोड़ रखा था "अ******* अ**********।" उस इत्तेफाक की जादुई कड़ी किसी ने तोड़ दी थी। मै धीरे धीरे फेसबुक को स्क्राल किया और भी कई उसकी फोटो दिखी। मै झुलस गया। जिंदगी में पहली बार इतनी जलन महसुस की थी। किसी ने कमेंट किया क्या जोड़ी लग रही है इसके बाद मै बर्दाश्त नहीं कर सकता था। सारी फोटो हाईड कर दी। फोन को स्विच आँफ कर दिया। इतना अकेला इतना नाराज आज तक कभी महसूस नहीं किया था। ये जलन भी न अजीब होती है जिद्दी होती है नारद मुनी की तरह बिना कारण के आपको उकसाती है, मजा आता है न इसको लोगो को उकसाने में। कास कोई इस जलन को जला पाता। मैं बड़ी देर तक कमरे में अकेला लेटा रहा। मन में कुछ ऐसा शोर था जो मुझे डुबोये जा रहा था। कितना समझदार लड़का आज जलन महसुस कर रहा था। क्या प्यार लोगो को ऐसा बना देता है क्या। लेकिन प्यार हमें बेहतर इंसान बनाता है न। मैने तो यही सुना था। मुश्किल नहीं था मेरे दिल से मेरे राज पढ पाना। ये जलने उस लड़के के लिए नहीं थी। मै उसे खोना नहीं चाहता था। मै चाहता था वो चाहे जिस शक्ल में जिस रिश्ते में बस मेरी जिंदगी में बनी रहे चाहे वो न मिले बस वो मेरे आस पास रहे। बहुत सोचा कभी भी तुम्हारे बारे में नही लिखुंगा लेकिन खुद को रोक नहीं पाया। मेरा अहम मेरा गुरूर शायद जो तुम्हे लगता हो आज वो हार गया था। तुम्हे भूलना मुश्किल होगा मेरे लिए। यह सोच कर ही कलम जवाब दे रही है,आज भी आंखे तुम्हारा ही साथ दे रही है पन्ना आंसुओ से भीग गया था। इसके आगे लिखुंगा तो टूट जाऊगा फिर कभी उठ न पाऊंगा जो सपने सोचे थे अधूरे रह जायेंगे। बस इत्ती सी थी मेरी अधूरी कहानी।

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मेरा शाही पनीर

19 अगस्त 2018
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*मेरा शाही पनीर*मेरी दिनचर्या में जरूर ऊथल पुथल हो सकती है लेकिन रोजाना एक चीज जरूर सामन्य है माँ से फोन पे बात। शायद ही ऐसा कोई दिन बीता होगा जिस दिन मैने बात न की हो उनसे। जब भी कॉल आता है, माँ का। बस वही रोजाना वाले सवाल, और जिनका उत्तर हमेसा ही एक सा होता है। जैसे, खाने में क्या बना था? दाल कौन

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