प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव की तन्मयता और अनुवाद कुशलता अद्भुत है। रघुवंश बहुत बडा महाकाव्य है। कालिदास की कृतियो मे एक गहरी दार्शनिकता भी है। जिसे अनुदित करना कठिन कार्य है। रघुवंश का प्रथम पद्य इसका उत्तम उदाहरण है। छोटे छंद अनुष्टुप में किया गया मंगलाचरण का अनुवाद करते हुये प्रो चित्रभूषण श्रीवास्तव ने लिखा है
जग के माता पिता जो पार्वती शिव नाम
शब्द अर्थ समएक जो उनको विनत प्रणाम
इसी भांति महाकवि कालिदास द्वारा दिलीप की गौसेवा का जो सुरम्य वर्णन किया गया है उसका अनुवाद भी दृष्टव्य है।
व्रत हेतु उस अनुयायी ने आत्म, अनुयायियो को न वनसात लाया
अपनी सुरक्षा स्वतः कर सके हर मुनज इस तरह से गया है बनाया
जब बैठती गाय तब बैठ जाते रूकने पे रूकते और चलने पे चलते
जलपान करती तो जलपान करते यूं छाया सृदश भूप व्यवहार करते।