महान कवि कालीदास का अमर प्रेम काव्य मेघदूत संस्कृत साहित्य की धरोहर है . इस खण्ड काव्य में महान कवि कालिदास ने विरह श्रंगार का अभूतपूर्व उदाहरण प्रस्तुत किया है . हर पति पत्नी या प्रेमी युगल के जीवन में भी कभी न कभी विरह का समय आता ही है , जब नायक नायिका दोनो को मजबूरी में एक दूसरे से दूर रहना पड़ता है . यक्ष और यक्षणी जो प्रेमी प्रेमिका हैं और एक सजा के चलते एक वर्ष के लिये एक दूसरे से दूर बिछड़े हुये हैं के बीच संवाद कैसे हो ? तब मोबाईल तो थे नही ! यक्ष ने आसमान में उड़ते मानसून के बादलो को अपना संदेश वाहक बनाकर उनके माध्यम से अपनी प्रेमिका को अपने मन की व्यथा बताने का यत्न किया है . मेघदूतो के माध्यम से कवि ने तत्कालीन भूगोल , प्रकृति वर्णन , और विरही प्रेमी की मनोदशा को काव्य गत सौंदर्य में अभिव्यक्त किया है . पर संस्कृत न जानने वाले इस अमर अद्भुत साहित्य से वंचित न रहें इसलिये प्रो सी बी श्रीवास्तव ने एक संस्कृत श्लोक का एक ही हिन्दी छंद में मूल कथा , भाव व कविता के उपमा उपमान के सौंदर्य की रक्षा करते हुये अनुवाद करके महान कार्य किया है . यही अनुवाद इस पुस्तक में आपके लिये प्रस्तुत किया गया है . हिनदी अनुवाद को संगीत से सजाकर उससे नृत्य नाटिका भी मंचित की जा सकती है .
मूल संस्कृत श्लोक
कस्यात्यन्तं सुखमुपगतं दुःखमेकान्ततोवा
नीचैर्गच्छिति उपरिचदशा चक्रमिक्रमेण ॥
हिन्दी अनुवाद
किसको मिला सुख सदा या भला दुःख
दिवस रात इनके चरण चूमते हैं
सदा चक्र की परिधि की भाँति क्रमशः
जगत में ये दोनों रहे घूमते हैं
...................मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद से अंश