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पुस्तकें जो मेरी प्रेरणा बनी..!

11 जुलाई 2016

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नौ दस वर्ष की उम्र में कॉमिक्स पढते हुए जाने कब ओशो को पढ़ना प्रारम्भ कर दिया ठीक से याद नहीं आता |

ओशो की नानक पर एक पुस्तक "एक ओमकार सतनाम" पढते हुए उस वक्त ऐसा लगा कि कोई नया द्वार खुल गया हो | और फिर एक सिलसिला चल पड़ा पुस्तकें पढ़ने का | 


ओशो के अतिरिक्त जे. कृष्णमूर्ति, दलाई लामा, आचार्य महाप्रज्ञ, सद्गुरु सभी ने ना सिर्फ प्रभावित किया बल्कि जीवन में बहुत कुछ जोड़ा भी | पाठ्यक्रम के दौर से लेकर आज तक प्रेमचंद की कहानियाँ हमेशा ही प्रेरणा बनी हैं | 


आचार्य महाप्रज्ञ की पुस्तक "खोज समाधान की" भी बेहद प्रेरक रही | महाप्रज्ञ जी को पढ़कर आश्चर्य होता है कि कोई कैसे जीवन दर्शन जैसे विषय पर इतनी सहजता से सब स्पष्ट कर सकता है | 


दलाई लामा की पुस्तक "द आर्ट ऑफ हैप्पीनेस" बेहद रोमांचक लगी | मृता प्रीतम की आत्मकथा , पढकर महसूस किया कि कितना कठिन होता है सत्य के साथ खड़े होकर लिखना | एक लेखक और व्यक्ति के रूप में अमृता प्रीतम ने भी प्रभावित तो किया ही |


हरिवंश राय बच्चन की कई कविताएं हैं जो कहीं मन में गहरे बैठी हुई हैं, "क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?" मेरी प्रिय कविताओं में से एक है | और भी ना जाने कितना कुछ है पुस्तकों में.. जो सदैव मेरी प्रेरणा बना !

दिल्ली

दिल्ली

मुकुल जी पुस्तकों से अच्छा कोई मित्र नहीं...

14 जुलाई 2016

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रचनाएँ
ahsaas
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बस अहसास ही तो हैं! कि तुम भी वही हो.. और मैं भी वही हूँ.! :)
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बेवजह.. बस यूँ ही..!

12 जून 2016
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कैसा महसूस होता है..? जब... आप किसी के लिए कम महत्वपूर्ण हो जाते हैं.. वो भी उसके लिए जो आपके लिए सर्वाधिक महत्व रखता है.. मन तो होता है.. कि उसे सीधे शब्दों में जाकर बोल दिया जाए कि.. "अब तुम मेरा ख्याल नहीं रखते..".. या "अब कभी ऐसा मत करना..".. फिर लगता है कि..ये तो उसकी स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना

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मेरा लेखन - अनुभूति , संवेदना और जीवन्तता..!

25 जून 2016
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जीवन में घटित हुआ कुछ भी, जो मन पर अंकित हो जाए लेखन में तब्दील हो ही जाता है | चिंतन लेखन को दिशा देता है, और लेखन जीवन को |सच कहूँ तो लेखन से अनुशासन, संकल्प, चिंतन जैसी कई सकारात्मक प्रवृतियों ने मुझमे जन्म लिया |मेरे लिए लेखन सदैव ही आत्म-सुधार का कार्य करता है | शायद व्यक्तित्व के अनुसार ही लेख

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पुस्तकें जो मेरी प्रेरणा बनी..!

11 जुलाई 2016
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नौ दस वर्ष की उम्र में कॉमिक्स पढते हुए जाने कब ओशो को पढ़ना प्रारम्भ कर दिया ठीक से याद नहीं आता |ओशो की नानक पर एक पुस्तक "एक ओमकार सतनाम" पढते हुए उस वक्त ऐसा लगा कि कोई नया द्वार खुल गया हो | और फिर एक सिलसिला चल पड़ा पुस्तकें पढ़ने का | ओशो के अतिरिक्त जे. कृष्णमूर्ति, दलाई लामा, आचार्य महाप्रज्ञ,

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सामाजिक समस्याओं में अंतर (लेख) #ज़हन

13 दिसम्बर 2017
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समस्या जीवन का अभिन्न अंग है। कुछ पाना है, कुछ करना है…सांस तक लेते रहना है तो भी कोई ना कोई समस्या मुँह बाये तैयार रहती है। हाँ, वीडियो गेम के लेवल की तरह कोई समस्या आसानी से निपट जाती है और कोई समस्या कितने ही संसाधन और समय व्यर्थ करवाती है। कुछ बड़ी समस्याएं जटिल होती हैं और सामाजिक परतों में अंदर

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