#तन की हकीकत नापी है तूने मेरी शब भर,
मन तक पहुँच पाते तो क्या बात थी..!
#तन की आबरू की बिसात अनमोल मेरी
#बस तन से इश्क जोड़ा तूने
मन की खिड़की से झाँकते..!
#मन मंदिर सा पाक ना #दहलीज़ लाँघी तूने
जिस्म का जश्न मनाते रहे..!
#भय मुक्त से तुम मुझमें रहते हो
लहू की रवानी में
फिर भी मेरी रूह #तक का तुम्हारा #सफ़र फासलो में रहा..!
#तन की पूजा से परे मेरी #ओर एक नज़र भर देखना #तुम्हारे लिए बहुत दूर की बात है ना ?
#तन पिपासा त्यज कर
कभी मन में #बसकर देखो जिस मंदिर #के आराध्य तुम हो मुझे #नतमस्तक सी #पूर्णतः समर्पित पाओगे..!
#भोग मुक्त इश्क की परिभाषा... स्पर्श से परे स्पंदनों में #सिमटकर तुम्हारी #आगोश में भी रहूँ मैं अनछुई...
भावु।