मगध के सिंहासन पर बैठने के बाद आचार्य चाणक्य की सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य ने संपूर्ण उत्तर भारत के बचे प्रांतों को अपने राज्य में सम्मिलित किया।
चंद्रगुप्त मौर्य एक लोक हितकारी शासक था उस समय सुराष्ट्र प्रांत में पानी की बहुत कमी रहती थी।उसने अपने प्रांतीय शासक पुष्य गुप्त वैश्य के द्वारा अत्यधिक धन खर्च करके वहां सुदर्शन झील का निर्माण कराया।
अपने अंतिम समय में चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन भिक्षु भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण की, कुछ समय पश्चात मगध में भीषण अकाल पड़ा। चंद्रगुप्त मौर्य ने इस अकाल से निपटने में जनता की प्रत्येक प्रकार से सहायता की।
जैन अनुश्रुति के अनुसार उसके पश्चात चंद्रगुप्त मौर्य कर्नाटक में स्थित श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर चला गया वहीं उसने अनशन के द्वारा अपने प्राण त्याग दिए। लगभग 24 वर्ष तक शासन करने के पश्चात 297 ईसा पूर्व में चंद्र गुप्त मौर्य की मृत्यु हुई। इस प्रकार से भारत का यह महान सम्राट इतिहास के पन्नों में अमर हो गया।
जैन धर्म की इस अनुश्रुति कि चंद्रगुप्त मौर्य ने अनशन के द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे कुछ विद्वान स्वीकार नहीं करते परंतु उस काल को देखते हुए यह असंभव भी नहीं जान पड़ता।
चंद्रगुप्त मौर्य की दो रानियां थी दुर्धारा और कार्नेलिया हेलेना।
दुर्धरा का पुत्र बिंदुसार हुआ जो चंद्रगुप्त के पश्चात मगध के सिंहासन पर आसीन हुआ
इसे देख सकते हैं:-
हर्ष वर्धन जोग
19 सितम्बर 2020बताना तो मुश्किल है. तरह तरह की किम्वदंतियां हैं. बहरहाल श्रवणबेलगोला जब गए तो यही सुनने को मिला जो आपने लिखा है.