ये शोबाज़ी का जमाना है | नैतिकता का कोई पैमाना नहीं रहा | आज बस सनसनी की चाहत है | ऐसे में मर्यादित जीवन जीने वाले में लोगों में सनसनी कहाँ से मिलेगी ? हालाँकि इसमें मीडिया के साथ ही हम भी दोषी हैं | अगर हम चाह लें फिर ऐसी नौबत नहीं आएगी लेकिन फिलहाल ऐसा होना मुश्किल लगता है |
उषा यादव
02 अप्रैल 2016ये तो परमात्मा ही जाने कि अगले पल कौन सा नया मुद्दा सुर्ख़ियों में आता है, लेकिन इंतज़ार किया जाना चाहिए उस दिन का जब ये खबर लाइमलाइट में आये कि अब हर घर से एक आदमी को देश की सीमाओं पर डटने के लिए जाना ज़रूरी होगा, यकीन जानिये उस दिन के बाद से देश के हालात और ख़बरें देखने और पढ़ने के लायक होंगे . अभी तो एक महीने पहले और आज के अखबार में ज़्यादा फ़र्क़ नज़र नहीं आता है, लेकिन तब यक़ीनन सही मायने में हर दिन एक नयी खबर होगी !