हंसगति ( २० मात्रा ) शिल्प विधान --- ११,९= २० प्रथम चरण ११ मात्रा चरणान्त २१ से अनिवार्य
"छंद हंसगति"
जस वीणा रसधार भरी है माता।
कर शारद उपकार भक्त का नाता।।
नमन करूँ दिन-रात मातु मम भोली।
भर शब्दों का ज्ञान सहज हो बोली।।-१
झंकृत हों सब तार मृदुल धुन गाऊँ।
छंद सृजन अनुसार राग अपनाऊँ।।
हों मीठे सुरताल भाव मन भाए।
नित नव नूतन रूप छटा विखराए।।-२
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी