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राधा बनकर हो जाने दो तेरी. ..

13 जुलाई 2020

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राधा बनकर हो जाने दो तेरी. ..


रोज़ रात, एक दस्तक आती है,

शायद, वह कुछ कहना चाहती है,

उठकर, देख पाता हूँ, साफ़ एक चेहरा,

पता नहीं कैसे, चाहे, जितना भी हो अँधेरा,


किसी से, कह भी नहीं सकता, करेगा नहीं कोई विश्वास,

अंतर्मन की महिमा का, सिर्फ़ होता है एहसास,

डर भी लगा, पहली बार जब आयी आवाज़,

खिड़की से देखा बाहर, था नहीं कोई परवाज़,


कई दिन बीत गए, जब कोई दस्तक आयी नहीं,

आहिस्ते से, हुई आहत, कहा उसने, मैं हूँ यहीं,

पहचान गए क्या साहब, तुमने मुझे एक रोज़ था बचाया,

उस दिन, जब दुल्हन की सज्जा से, लोगों ने जबरन मुझे उठाया,


मगर तुम चले गए, लोगों ने पांचाली मुझे, फिर बना दिया,

सिर्फ़ एक बार कृष्ण बनकर, तुमने ऐसा क्यूँ किया,

खोजती रही तुम्हें, लेकिन देर हो गयी,

कई रास्तों पर भटकी, मगर, रोज़ नयी हो गयी,


जानते हो, अब, जब तुम, मुझे मिले हो आज,

देखो, मैं तुम्हारे हूँ नहीं, कोई काज,

मेरा सौंदर्य, अब है नहीं तेरे लायक़,

ज़माने ने, मुझे बना दिया बहुत भयानक,


ऐ भले मानस सुन, तेरे मन के एक कोने में बैठी रहूँगी,

तू जो बोलेगा, सब कुछ सहूँगी,

बस एक बात, अगर मान ले मेरी,

राधा बनकर हो जाने दे तेरी,...


सुमंत पोद्दार

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