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राहुल बाली के लेख

सोशल मीडिया है न!

9 अक्टूबर 2017
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हर रोज़ न्यूज़ चैनल्ज़ पर बहस का रंग मंचसजता है। मंच पर आसीन होते हैं दो चार नेता प्रवक्ता, एक-आध एक्स्पर्टजो कई चैनल्ज़ पर अकसर दिखाई देते हैं। कुछ और जाने पहचाने चेहरे भी होते हैं।वाद-विवाद और बहस की इस सारी प्रक्रिया को अंजाम तक पहुंचाने और नियंत्रित करने केलिए विराज़मान होता है एक ऐंकर, जो स्वयं भी क

सोशल मीडिया है न!

9 अक्टूबर 2017
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हर रोज़ न्यूज़ चैनल्ज़ पर बहस का रंग मंच सजता है। मंच पर आसीनहोते हैं दो चार नेता प्रवक्ता, एक-आध एक्स्पर्ट जो कई चैनल्ज़ पर अकसर दिखाई देते हैं। कुछ औरजाने पहचाने चेहरे भी होते हैं। वाद-विवाद और बहस की इस सारी प्रक्रिया को अंजामतक पहुंचाने और नियंत्रित करने के लिए विराज़म

भाषा की फूहड़ता बढ़िया मदिरा की तरह होता है

5 अक्टूबर 2017
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किसी के बात-चीत के अंदाज़ से काफ़ी हदतक उसके व्यक्तित्व का अंदाज़ा लगाया जा सकता है क्योंकि हर एक का अंदाज़-ए-बयाँअपना अपना होता है। परन्तु धीरे-धीरे हमारी आम बात-चीत में फ़ूहड़ता और भद्दापन आमहो गया है|कुछ रोज़ पहले एक शाम रोज़ाना की तरह टहल रहा था। टहलते टहलते एकछोटॆ से मैदान के पास से गुज़रना हुआ। वहां कु

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