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सआदत हसन मंटो के बारे में

सआदत हसन मंटो एक इंडो-पाकिस्तानी नाटककार, लेखक और उपन्यासकार थे, जो अपनी गैर-पारंपरिक लेखन शैली के लिए जाने जाते थे। उनकी रचनाएँ उर्दू भाषा के उत्साही पाठकों के लिए जादुई शब्द हैं। 42 वर्षों के अपने अल्प-कालिक जीवन में, उन्होंने 22 से अधिक लघु कथाएँ, निबंधों के तीन संग्रह, रेडियो नाटकों की पाँच श्रृंखलाएँ, व्यक्तिगत रेखाचित्रों के दो समूह, एक उपन्यास, और फिल्म स्क्रिप्ट का एक हिस्सा भी बनाया है। उनकी बेहतरीन कहानियों को उच्च श्रेणी में रखा गया, जिससे न केवल उन्हें सफलता मिली बल्कि उन्हें सलाखों के पीछे भी पहुंचा दिया गया। वह एक ऐसा व्यक्ति था जिसने सामाजिक मुद्दों और कठिन सच्चाइयों के बारे में बात करने की हिम्मत की, जो किसी ने भी करने की हिम्मत नहीं की और अपने शब्दों और कृतियों के माध्यम से उनके बारे में जागरूकता पैदा की। वह भारत के विभाजन से बुरी तरह प्रभावित था और वीरतापूर्वक इसका विरोध करता था। उनकी अधिकांश लघुकथाएँ और नाटक देशवासियों द्वारा किए गए अत्याचार और छेड़छाड़ पर आधारित हैं, विशेषकर महिलाओं और बच्चों द्वारा विभाजन की भयावह घोषणा से पहले के दिनों में। सामाजिक मुद्दों के उनके ग्राफिक और यथार्थवादी चित्रण ने 20 वीं शताब्दी के बेहतरीन उर्दू लेखकों में से एक के रूप में अपनी प्रतिष्ठा को मजबूत किया।

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सआदत हसन मंटो की पुस्तकें

सआदत हसन मंटो की इरोटिक कहानियाँ

सआदत हसन मंटो की इरोटिक कहानियाँ

सवाल यह हैं की जो चीज जैसी हैं उसे वैसे ही पेश क्यू ना किया जाये मैं तो बस अपनी कहानियों को एक आईना समझता हूँ जिसमें समाज अपने आपको देख सके.. अगर आप मेरी कहानियों को बर्दास्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब यह हैं की ये ज़माना ही नक़ाबिल-ए-बर्दास्त हैं|

151 पाठक
42 रचनाएँ

निःशुल्क

सआदत हसन मंटो की इरोटिक कहानियाँ

सआदत हसन मंटो की इरोटिक कहानियाँ

सवाल यह हैं की जो चीज जैसी हैं उसे वैसे ही पेश क्यू ना किया जाये मैं तो बस अपनी कहानियों को एक आईना समझता हूँ जिसमें समाज अपने आपको देख सके.. अगर आप मेरी कहानियों को बर्दास्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब यह हैं की ये ज़माना ही नक़ाबिल-ए-बर्दास्त हैं|

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सआदत हसन मंटो  के बदनाम लेख

सआदत हसन मंटो के बदनाम लेख

सआदत हसन मंटो (11 मई 1912 – 18 जनवरी 1955) उर्दू लेखक थे, जो अपनी लघु कथाओं, बू, खोल दो, ठंडा गोश्त और चर्चित टोबा टेकसिंह के लिए प्रसिद्ध हुए। कहानीकार होने के साथ-साथ वे फिल्म और रेडिया पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे।

32 पाठक
18 रचनाएँ

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सआदत हसन मंटो  के बदनाम लेख

सआदत हसन मंटो के बदनाम लेख

सआदत हसन मंटो (11 मई 1912 – 18 जनवरी 1955) उर्दू लेखक थे, जो अपनी लघु कथाओं, बू, खोल दो, ठंडा गोश्त और चर्चित टोबा टेकसिंह के लिए प्रसिद्ध हुए। कहानीकार होने के साथ-साथ वे फिल्म और रेडिया पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे।

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शिकारी औरतें

शिकारी औरतें

यह कहानी मर्दों के शिकार पर निकली औरतों पर आधारित है। इसमें बंबई और लाहौर की उन औरतों के क़िस्से बयान किए गए हैं, जो बिना किसी वजह के राह चलते मर्दों के साथ हो लेती हैं। ये औरतें उन मर्दों के साथ अपना समय बिताती हैं, या फिर उनसे पैसे ऐंठती हैं।

28 पाठक
1 रचनाएँ

निःशुल्क

शिकारी औरतें

शिकारी औरतें

यह कहानी मर्दों के शिकार पर निकली औरतों पर आधारित है। इसमें बंबई और लाहौर की उन औरतों के क़िस्से बयान किए गए हैं, जो बिना किसी वजह के राह चलते मर्दों के साथ हो लेती हैं। ये औरतें उन मर्दों के साथ अपना समय बिताती हैं, या फिर उनसे पैसे ऐंठती हैं।

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सआदत हसन मंटो  की बदनाम कहानियाँ

सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ

सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ है कि मंटो की यथार्थ और घनीभूत पीड़ा के ताने-बानो से बुनी गयी हैं। 'बू', 'खुदा की कसम', 'बांझा' काली सलवार, समेत कई ढ़ेर सारी कहानियां हैं। इनमें कई कहानियां विवादित रही। 'बू' ने तो उन्हें अदालत तक घसीट लिया था।

23 पाठक
42 रचनाएँ

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सआदत हसन मंटो  की बदनाम कहानियाँ

सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ

सआदत हसन मंटो की बदनाम कहानियाँ है कि मंटो की यथार्थ और घनीभूत पीड़ा के ताने-बानो से बुनी गयी हैं। 'बू', 'खुदा की कसम', 'बांझा' काली सलवार, समेत कई ढ़ेर सारी कहानियां हैं। इनमें कई कहानियां विवादित रही। 'बू' ने तो उन्हें अदालत तक घसीट लिया था।

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सआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानियाँ

सआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानियाँ

मंटो ने भी चेखव की तरह अपनी कहानियों के दम पर अपनी पहचान बनाई. भीड़, रेप और लूट की आंधी में कपड़े की तरह जिस्म भी फाड़े जाते हैं. हवस और वहश का ऐसा नज़ारा जिसे देखने के बाद खुद दरिन्दे के सनकी हो जाने की कहानी है 'ठंडा गोश्त'. कहते हैं नींद से बड़ा क

21 पाठक
50 रचनाएँ

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सआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानियाँ

सआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानियाँ

मंटो ने भी चेखव की तरह अपनी कहानियों के दम पर अपनी पहचान बनाई. भीड़, रेप और लूट की आंधी में कपड़े की तरह जिस्म भी फाड़े जाते हैं. हवस और वहश का ऐसा नज़ारा जिसे देखने के बाद खुद दरिन्दे के सनकी हो जाने की कहानी है 'ठंडा गोश्त'. कहते हैं नींद से बड़ा क

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सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ

सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ

मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है

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सआदत हसन मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ

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मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है मंटो की लोकप्रिय कहानियाँ उतनी महत्वपूर्ण है कि मंटो ने इतने बरस पहले जो कुछ लिखा उसमें आज की हकीकत सिमटी नजर आती है

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सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ

सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ

मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।

13 पाठक
40 रचनाएँ

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सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ

सआदत हसन मंटो की लघु कथाएँ

मंटो ने लम्बे समय तक एक बेहतर दुनिया की ओर ले जाने वाली रचनाएँ लिखीं। आज भी बहुत से लोग लघु कथाएँ लिख रहे हैं। जहाँ कुछ-कुछ या सब कुछ लघु कथा से जुड़ रहा है। पाठक पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिये बिना सच्ची और अच्छी कहानियों को बयाँ किया जा रहा है।

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दस रूपये

दस रूपये

"यह एक ऐसी कमसिन लड़की की कहानी है जो अपनी उमड़ती हुई जवानी से अंजान थी। उसकी माँ उससे पेशा कराती थी और वो समझती थी कि हर लड़की को यही करना होता है। उसे दुनिया देखने और खुली फ़िज़ाओं में उड़ने का बेहद शौक़ था।

6 पाठक
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दस रूपये

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"यह एक ऐसी कमसिन लड़की की कहानी है जो अपनी उमड़ती हुई जवानी से अंजान थी। उसकी माँ उससे पेशा कराती थी और वो समझती थी कि हर लड़की को यही करना होता है। उसे दुनिया देखने और खुली फ़िज़ाओं में उड़ने का बेहद शौक़ था।

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सआदत हसन मंटो के लेख

आखिरी सैल्यूट

24 अप्रैल 2022
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ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

आर्टिस्ट लोग

24 अप्रैल 2022
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जमीला को पहली बार महमूद ने बाग़-ए-जिन्ना में देखा। वो अपनी दो सहेलियों के साथ चहल क़दमी कर रही थी। सबने काले बुर्के पहने थे। मगर नक़ाबें उलटी हुई थीं। महमूद सोचने लगा। ये किस क़िस्म का पर्दा है कि बुर

धुआँ

24 अप्रैल 2022
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वो जब स्कूल की तरफ़ रवाना हुआ तो उसने रास्ते में एक क़साई देखा, जिसके सर पर एक बहुत बड़ा टोकरा था। उस टोकरे में दो ताज़ा ज़बह किए हुए बकरे थे खालें उतरी हुई थीं, और उनके नंगे गोश्त में से धुआँ उठ रहा था

टेटवाल का कुत्ता

24 अप्रैल 2022
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कई दिन से तरफ़ैन अपने अपने मोर्चे पर जमे हुए थे। दिन में इधर और उधर से दस बारह फ़ायर किए जाते जिनकी आवाज़ के साथ कोई इंसानी चीख़ बुलंद नहीं होती थी। मौसम बहुत ख़ुशगवार था। हवा ख़ुद रो फूलों की महक में

अनार कली

24 अप्रैल 2022
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नाम उसका सलीम था मगर उसके यार-दोस्त उसे शहज़ादा सलीम कहते थे। ग़ालिबन इसलिए कि उसके ख़द-ओ-ख़ाल मुग़लई थे, ख़ूबसूरत था। चाल ढ़ाल से रऊनत टपकती थी। उसका बाप पी.डब्ल्यू.डी. के दफ़्तर में मुलाज़िम था। तन

आँखें

24 अप्रैल 2022
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ये आँखें बिल्कुल ऐसी ही थीं जैसे अंधेरी रात में मोटर कार की हेडलाइट्स जिनको आदमी सब से पहले देखता है। आप ये न समझिएगा कि वो बहुत ख़ूबसूरत आँखें थीं, हरगिज़ नहीं। मैं ख़ूबसूरती और बदसूरती में तमीज़ क

बुर्क़े

24 अप्रैल 2022
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ज़हीर जब थर्ड ईयर में दाख़िल हुआ तो उसने महसूस किया कि उसे इश्क़ हो गया है और इश्क़ भी बहुत अशद क़िस्म का जिसमें अक्सर इंसान अपनी जान से भी हाथ धो बैठता है। वो कॉलिज से ख़ुश ख़ुश वापस आया कि थर्ड

एक ज़ाहिदा, एक फ़ाहिशा

24 अप्रैल 2022
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जावेद मसऊद से मेरा इतना गहरा दोस्ताना था कि मैं एक क़दम भी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उठा नहीं सकता था। वो मुझ पर निसार था मैं उस पर। हम हर रोज़ क़रीब-क़रीब दस-बारह घंटे साथ साथ रहते। वो अपने रिश्तेदारों स

एक ख़त

24 अप्रैल 2022
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तुम्हारा तवील ख़त मिला जिसे मैंने दो मर्तबा पढ़ा। दफ़्तर में इसके एक एक लफ़्ज़ पर मैंने ग़ौर किया और ग़ालिबन इसी वजह से उस रोज़ मुझे रात के दस बजे तक काम करना पड़ा, इसलिए कि मैंने बहुत सा वक़्त इस गौर-ओ-

मोज़ेल

24 अप्रैल 2022
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त्रिलोचन ने पहली मर्तबा... चार बरसों में पहली मर्तबा रात को आसमान देखा था और वो भी इसलिए कि उसकी तबीयत सख़्त घबराई हुई थी और वो महज़ खुली हवा में कुछ देर सोचने के लिए अडवानी चैंबर्ज़ के टेरिस पर चला आ

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