आज वह फिर खड़ा है ,कठघरे में ,
दोषी बन!
वह ,जिसने
इंसान के बड़े से बड़े घाव पर मरहम लगाया।
आज उसी के आरोपों से घायल यहाँ आया ।
कहता है – मैंने हँसाया या रुलाया,
हर बार,
तुझे सबक ही सिखाया ।
अनुभव भी दिए, आगे बढ्ने का हुनर भी बताया ।
ये तो तूने मेरी कद्र नहीं की,
अपनी नासमझियों के लिए, मुझे ही दोषी ठहराया ।
आज मैं फिर खड़ा हूँ ,कठघरे में ,
दोषी बन!
मगर सोच ,
इंसानों की भीड़ में ,इंसान की परख करना ,
ख़ुद पर भरोसा कर, आगे बढ़ना ,
किस ने तुझे बताया ?
मगर ,
फिर भी मैं कठघरे में आया।
फिर ,एक सबक
लेकर !
गौर से सुनो ,
आज ,इस
सन्नाटे के पीछे की सुगबुगाहट ,
दृद शक्ति के साथ , ज़िंदगी जीने की चाहत !
Ø हाँ ,यही तो है वक़्त का सबक!
जो
हमें हर चुनौती में नया रास्ता दिखाता है ।
परमजीत
कौर