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साझेदारी - परिचय

1 मार्च 2023

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साझेदारी क्या है ?    

साझेदारी दो या दो से अधिक व्यक्तियों की ऐसी व्यावसायिक संस्था है, जो पारस्परिक समझौते के अन्तर्गत किसी व्यवसाय को संचालित करने एवं लाभ को आपस मे बाँटने के उद्देश्य से बनायी जाती है। 

साझेदारी की परिभाषा 

प्रो. किम्बाल " एक साझेदारी अथवा फर्म व्यक्तियों का एक समूह है जिन्होंने किसी व्यावसायिक उपक्रम को चलाने के उद्देश्य से पूँजी अथवा सेवाओं का एकीकरण किया है। "
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872 के अनुसार " साझेदारी उन व्यक्तियों का पारस्परिक सबंध है जो किसी व्यवसाय मे अपनी सम्पत्ति, श्रम अथवा चातुर्य को संयुक्त करने तथा उसके लाभों को परस्पर करने के लिए सहमत हो गये है।"
एल. एच. हैने के शब्दों मे " साझेदारी अनुबन्ध करने योग्य व्यक्तियों के मध्य स्थापित सम्बन्ध है जो कि लाभोपार्जन हेतु किसी विधान से मान्यता प्राप्त व्यवसाय संचालित करने के लिए सहमत हो। " 

साझेदारी की विशेषताएं या लक्षण 

1. दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना
साझेदारी व्यवसाय के लिए कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। ये व्यक्ति अनुबन्ध करने योग्य हो। भारत मे वैधानिक रूप से सामान्य व्यवसाय मे साझेदारी मे अधिक से अधिक 20 व्यक्ति एवं बैकिंग व्यवसाय मे 10 व्यक्ति साझेदार हो सकते है।
2. व्यवसाय के लाभ को आपस मे बांटना
साझेदारी का उद्देश्य व्यवसाय से केवल लाभ कमाना ही नही, वरन् उसे आपस मे बांटना भी होना चाहिये, क्योंकि साझेदारी लाभ के ही अधिकारी नही, वरन्  सम्भावित हानि के लिए भी उत्तरदायी होते है।
3. साझेदारों के मध्य वैध अनुबन्ध होना
अधिनियमानुसार साझेदारी का सम्बन्ध अनुबन्ध द्वारा उत्पन्न होता है, स्थिति द्वारा नही, अतः यह नितांत आवश्यक है कि साझेदारों के बीच एक अनुबन्ध हो। चूंकि सम्मिलित हिन्दू परिवार के सदस्यों का सम्बन्ध अनुबन्ध द्वारा उत्पन्न नही होता, अतः कानून की दृष्टि मे वे साझेदार नही माने जाते तथा उनका व्यवसाय भी साझेदारी का व्यवसाय नही कहलाता है। यह अनुबंध लिखित हो सकता है अथवा मौखिक।
4. असीमित दायित्व
साझेदारी की एक विशेषता यह भी है कि साझेदारों का दायित्व असीमित होता है। फर्म के ऋणों के भुगतान के लिए साझेदार व्यक्ति रूप से उत्तरदायी होता है। अर्थात्  हानि की स्थिति मे फर्म के ऋणदाता अपना धन साझेदारों की व्यक्तिगत सम्पत्ति से वसूल कर सकते है।
5. परम सद् विश्वास का होना
साझेदारी के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि साझेदारों मे आपसी सद् विश्वास सुदृढ़ हो। साझेदारी तो विश्ववास पर ही आधारित है। जिस दिन भी आपस मे मतभेद हो जाता है, साझेदारी ज्यादा चल नही पाती और अन्त मे उसका समापन हो जाता है।
6. हितों का हस्तांतरण
कोई भी साझेदार अपने हित को, अन्य साझेदारों की सहमति के बिना हस्तांतरित नही कर सकता है। लेकिन साझेदार फर्म से अवकाश ग्रहण कर सकता है।
7. वैध व्यापार का होना
साझेदारी के लिए यह नितांत आवश्यक है कि,  कुछ न कुछ व्यवसाय या कारोबार हो, . व्यवसाय वैध हो।" यदि या दो से अधिक व्यक्ति परस्पर कोई ठहराव करते है, किन्तु उनके ठहराव का उद्देश्य किसी व्यवसाय को चलाना नही है तो ऐसे ठहराव को साझेदारी नही कह सकते।
8. पूँजी का विनियोग आवश्यक नही 
साझेदार बनाने के लिए आवश्यक नही है कि वह पूँजी भी लगाये। बिना पूँजी लगाये भी कोई व्यक्ति फर्म मे, आपसी समझौता से, साझेदार बन सकता है। यही भी आवश्यक नही है कि सभी सभी साझेदार बराबर -बराबर पूँजी लगायें।
9. अस्तित्व
फर्म का साझेदारों का फर्म से कोई अलग अस्तित्व होता है। फलस्वरूप साझेदारी पर किसी साझेदार के दिवालिया होने, मृत्यु होने या अवकाश ग्रहण करने आदि बातों का प्रभाव पड़ता है। 

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