*मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , किसी परिवार में जन्म लेकर मनुष्य समाज में स्थापित होता है | इस जीवन क्रम में परिवार से लेकर समाज तक मनुष्य अनेको संबंध स्थापित करता है इन संबंधों का पालन बहुत ही कुशलता पूर्वक करना चाहिए | जिस प्रकार किसी भी विषय में सफलता के उच्च शिखर को प्राप्त कर लेने की अपेक्षा उस उच्च शिखर पर बने रहना मायने रखता है उसी प्रकार परिवार या समाज में किसी से भी संबंध बनाना इतना कठिन नहीं है जितना कठिन है संबंधों को चिरस्थाई बनाए रखना | मनुष्य जब इस धरती पर जन्म लेता है तो कुछ संबंध तो उसके पहले से ही बने होते हैं जिसमें माता - पिता , भाई - बंधु आदि मुख्य हैं और कुछ संबंध मनुष्य अपने व्यवहार से समाज में स्थापित करता है | किसी से भी मधुर संबंध स्थापित करने में एक लंबा समय लगता है परंतु संबंध विच्छेद होने में एक क्षण का समय ही बहुत है , इसलिए प्रत्येक मनुष्य को संबंधों को बनाए रखने के लिए सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए | संबंध बनाए रखना भी एक कला है , जो इस कला को नहीं जानता है वह अपने जीवन काल में हैं इन संबंधों से वंचित होता चला जाता है | संसार में मनुष्य किसी भी वृद्धा स्त्री को मां कह सकता है परंतु जिस मां के उदर में नौ महीने पर रह कर के उसके जननेंद्रियों से जन्म लिया है उस मां का मातृत्व अन्य स्त्री में नहीं प्राप्त हो सकता है | संसार में किसी को भी भाई कहा जा सकता है परंतु एक ही मां के उदर से जन्मे सहोदर भाई से जो प्रेम प्राप्त हो सकता है वह अन्य किसी से कदापि नहीं मिल सकता | इसी प्रकार किसी भी परिवार समूह या संगठन के मुखिया का कर्तव्य होता है कि वह अपने परिवार के छोटे से छोटे सदस्यों का भी विशेष ध्यान रखें जिससे कि उनके मन में नकारात्मक विचार ना उत्पन्न होने पाए , क्योंकि प्रायः यह देखा गया है की छोटी-छोटी बातों पर जब आपस में एक दूसरे को समझने का प्रयास नहीं किया जाता है तो संबंध विच्छेद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है | यहां यदि परिवार के मुखिया के द्वारा सबका ध्यान रखा जाता है तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी परिवार के मुखिया का मान बनाये रखना परम कर्तव्य बन जाता है | ऐसा करना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि संबंध जितनी कठिनता से बनते हैं उतनी ही आसानी से टूट भी जाते हैं सबको ही अपने संबंधों के प्रति सचेत रहते हुए उनको सहेजने का प्रयास करते रहना चाहिए |*
*आज के वर्तमान युग को यदि अंधा युग कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा क्योंकि आज मनुष्य अपने अहंभाव में अंधा हो रहा है इसी कारण संबंध विच्छेद जिस गति से हो रहे हैं वह चिंतनीय हैं | प्रत्येक मनुष्य अपने अहंभाव में जीवन जी रहा है संबंध विच्छेद होने का सबसे बड़ा कारण यही है | परिवार का कोई भी सदस्य अपने परिवार के मुखिया की बात नहीं मानना चाहता है | यदि मुखिया के द्वारा कुछ कह दिया जाता है तो संबंधित सदस्य को लगता है कि उसका अपमान किया जा रहा है यही कारण है कि आज समाज में एकल परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में देख रहा हूं कि यत्र - तत्र - सर्वत्र यही स्थिति बनी हुई है | समाज की प्रथम इकाई परिवार को कहा जाता है परंतु आज परिवारों में भी संबंध सहेजने की अपेक्षा संबंध विच्छेद की घटनाएं अधिक ही दिखाई पड़ रही है | आज मनुष्य इतना बुद्धिमान हो गया है कि वह किसी की बात मानना ही नहीं चाहता | हमारे पूर्वजों ने संबंधों को बनाए रखने के लिए अपनी प्रबल इच्छाओं को भी बलिदान कर दिया है , परंतु आज ठीक उसका उल्टा दिखाई पड़ रहा है | कटुता ने समाज को अपने जाल में फंसा रखा है और आज का मनुष्य इस जाल का भेदन नहीं कर पा रहा है | प्रत्येक मनुष्य को यह चिन्तन करते रहना चाहिए कि संबंध यदि बन गया है तो उसे प्रेमपूर्वक बनाये रखे यजि यह टूटने की स्थिति में भी पहुँच जायं तो अंतिम प्रयास तक येन - केन - प्रकारेण इसको बनाए रखना ही उसका परम कर्तव्य है , क्योंकि जितना दुर्लभ यह मानव जीवन है उससे कहीं अधिक दुर्लभ है किसी से संबंध बनना |*
*मानव जीवन में परिवार व समाज में एक दूसरे से संबंध मनुष्य की मूल पूंजी होती है परंतु आज मनुष्य मूल को छोड़कर के ब्याज के चक्कर में संबंध विच्छेद करता चला जा रहा है जो कि कदापि उचित नहीं है |*