जिस प्रकार चंदन की सुगंध पानी के बूँद-बूँद में समा जाती है उसी प्रकार प्रभु की भक्ति भक्त के अंग-अंग में समा जाती है। यदि प्रभु बादल है तो भक्त मोर के समान है जो बादल को देखते ही नाचने लगता है। यदि प्रभु चाँद है तो भक्त उस चकोर पक्षी की तरह है जो बिना अपनी पलकों को झपकाए चाँद को देखता रहता है। संत रविदास जी ने हमेशा अपने दोहों और रचनाओं के माध्यम से समाज में फैली बुराइयों और कुरीतियों को दूर किया है। संत रविदास जी ने सभी को भगवान की भक्ति करके सचाई की राह पर चलने की प्रेरणा दी है। इन्होंने सभी लोगों को एकता के सूत्र में चलने का भी विशेष प्रयास किया है। अपनी काव्य-रचनाओं में खड़ी-बोली, राजस्थानी, अवधी और उर्दू-फारसी जैसी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया है। जो भी संत रविदास जी के दोहे पढ़ता है तो वह उन दोहों से बड़ी सिख लेता है। इनकी रचनाएं हास्यस्पर्शी होती हैं।
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