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satishshukla

सतीश शुक्ला

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satishshukla

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पुस्तक के भाग

1

दोस्त तुम हो...

13 अक्टूबर 2015
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तारे जैसे बहुत दूरपरसाथ साथ हर रोजदोस्त तुम होफूलों की मनरची गंध सेतितली के अभिनमित पंख सेहर दिन हफ्ता सालमुदित मुस्काएदोस्त तुम होसुबह की धूप कि जैसे समा न पाए अँजुरी में परमन घर आँगनसभी जगह बिखराएदोस्त तुम होजीवन के गहरे सागर की तलहटियों में पलने वालेसपनों को दे दिशासत्य पर मदिर मदिर तैराएदोस्त तु

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उस नीलम की संध्या में

13 अक्टूबर 2015
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उस नीलम की संध्या में हम तुम दो तारों जैसेवो घनी चाँदनी शीतलवो कथा कहानी से पलवो नर्म दूब की शबनमवो पुनर्जन्म सा मौसमवो मलय समीरण झोंकेजीवन   पतवारों  जैसेउस नीलम की संध्या मेंहम तुम दो तारों जैसेवो चाँद का मद्धम तिरनावो रात का रिमझिम गिरनावो  मौन का कविता करनाऔ' बात का कुछ न कहनातारों के जगमग दीपकन

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