इसे मैं अपना दुर्भाग्य ही समझूंगा कि आज से पहले मैंने कभी कानपुर के इस होनहार का नाम नहीं सुना था. जी हाँ, पहली बार यह नाम सुना और सिर गर्व से ऊंचा हो गया. यह नाम है आईआईटी मुम्बई से वर्ष २००७ में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने वाले अमितेश मिश्र का, जिन्होंने आज यानी २४ जनवरी को वसंत पंचमी जैसे पावन पर्व के दिन पूरी तरह से हिंदी पर आधारित सोशल नेट्वर्किंग वेबसाईट शब्द नगरी को लांच करके एक नयी गाथा लिख दी. मैंने इस अवसर का पूरा लाभ उठाते हुए अपना एक एकाउंट खोला और पहले टिप्पणी आपके सामने है. पीटीआई की रिपोर्ट ने जैसा बताया, ठीक वैसी ही है यह वेबसाईट. यानी आप यहाँ राष्ट्रभाषा हिंदी में लिख पढ़ सकते हैं और अपनी विचारधारा वाले लेखकों, कवियों हिन्दीभाषी लोगों से आसानी से जुड़ सकते हैं. यह सोशल नेट्वर्किंग साईट है बहुत आसान और इस पर काम करना, लिखना पढना बेहद सुखद एहसास कराता है. मैंने पहली बार अमितेश मिश्र के बारे में पीटीआई के जरिये जाना और उचित होगा कि आपको भी इस शख्सियत के बारे में आपको भी बताऊँ. संवाददाताओं से बातचीत का हवाला देते हुए पीटीआई ने बताया है कि अमितेश मिश्र ने पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ समय तक नौकरी की. हालांकि नौकरी में उनका मन नहीं लगा और उन्होंने अपनी कंपनी शुरू की. आईआईटी कानपुर में एसआईसीसी (सिड्वी इनोवेशन एंड इन्क्युवेशन सेंटर) की मदद से उन्होंने इन्क्यूवेटेड कंपनी ट्राईडेंट एनालिटिकल सोल्यूशन बनाई.इस कंपनी को बनाने में सिड्वी ने उन्हें २५ लाख की वित्तीय मदद दी. शब्द नगरी को इसी कंपनी ने विकसित किया है. रिपोर्ट के मुताबिक़ अमितेश का लक्ष्य देश के वे ६५ करोड़ लोग हैं जो हिंदी लिखते, पढ़ते और बोलते हैं. ख़ास बात यह कि इस वेबसाईट की सभी सेवाएं निःशुल्क हैं.कोई भी व्यक्ति शब्दनगरी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बना सकता है. स्वागत है आप सबका मित्रों अमितेश मिश्र को ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ.इसे मैं अपना दुर्भाग्य ही समझूंगा कि आज से पहले मैंने कभी कानपुर के इस होनहार का नाम नहीं सुना था. जी हाँ, पहली बार यह नाम सुना और सिर गर्व से ऊंचा हो गया. यह नाम है आईआईटी मुम्बई से वर्ष २००७ में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने वाले अमितेश मिश्र का, जिन्होंने आज यानी २४ जनवरी को वसंत पंचमी जैसे पावन पर्व के दिन पूरी तरह से हिंदी पर आधारित सोशल नेट्वर्किंग वेबसाईट शब्द नगरी को लांच करके एक नयी गाथा लिख दी. मैंने इस अवसर का पूरा लाभ उठाते हुए अपना एक एकाउंट खोला और पहले टिप्पणी आपके सामने है. पीटीआई की रिपोर्ट ने जैसा बताया, ठीक वैसी ही है यह वेबसाईट. यानी आप यहाँ राष्ट्रभाषा हिंदी में लिख पढ़ सकते हैं और अपनी विचारधारा वाले लेखकों, कवियों हिन्दीभाषी लोगों से आसानी से जुड़ सकते हैं. यह सोशल नेट्वर्किंग साईट है बहुत आसान और इस पर काम करना, लिखना पढना बेहद सुखद एहसास कराता है. मैंने पहली बार अमितेश मिश्र के बारे में पीटीआई के जरिये जाना और उचित होगा कि आपको भी इस शख्सियत के बारे में आपको भी बताऊँ. संवाददाताओं से बातचीत का हवाला देते हुए पीटीआई ने बताया है कि अमितेश मिश्र ने पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ समय तक नौकरी की. हालांकि नौकरी में उनका मन नहीं लगा और उन्होंने अपनी कंपनी शुरू की. आईआईटी कानपुर में एसआईसीसी (सिड्वी इनोवेशन एंड इन्क्युवेशन सेंटर) की मदद से उन्होंने इन्क्यूवेटेड कंपनी ट्राईडेंट एनालिटिकल सोल्यूशन बनाई.इस कंपनी को बनाने में सिड्वी ने उन्हें २५ लाख की वित्तीय मदद दी. शब्द नगरी को इसी कंपनी ने विकसित किया है. रिपोर्ट के मुताबिक़ अमितेश का 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