शांति ख़ोज रहा है भटक है
मन अपने ही अंदर खोजो शांति वहीं टिकेगा मन!!
धरती की किस छोर पर मिलेगी शांति इसी सोच में
भटक रहा था मन..
समुद्र की गहराइयों में झील
की शालीनताओं में पहाड़ों की ऊंचाईयों में खोज रहा था शांति को मन..
घाटियां उतार रही थी पगडंडियां संभाल रही थी
कहां मिलेगी शांति यही ढूंढ रहा था मन!!✍🏻
सरिता मिश्रा पाठक "काव्यांशा