वज़्न - 1222 1222 122 , अर्कान - मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फऊलुन बह्र - बह्रे हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़, काफ़िया - डूबता(आ स्वर) रदीफ़- है
"गज़ल"
अजी यह इस डगर का दायरा है
सहज होता नहीं यह रास्ता है
कभी खाते कदम बल चल जमीं पर
हक़ीकत से हुआ जब फासला है।।
उठाकर पाँव चलती है गरज
बहुत जाना पिछाना फैसला है।।
लगाई दौड़ बहुतों ने यहाँ पर
सुना मंजिल लगाती सिलसिला है।।
न चुकता हो सका है मोल इसका
हुआ गुमनाम अब मजमा सुना है।।
निभा लेती हैं राहें हर किसी को
नहीं होता पता वह बेसुरा है।।
सुना है रात में लगता है डर
बता गौतम जिगर सब एक सा है।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
महातम मिश्रा
21 दिसम्बर 2018मंच व मित्रों का हृदय से आभारी हूँ, इस लेख को श्रेष्ठ रचना का सम्मान देने के लिए व मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित करने के लिए, सादर नमन