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श्रम साधक को विश्राम नहीं

17 मई 2020

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श्रम साधक को विश्राम नहीं

कडी़ धूप में मेहनत करते ,

सर्दी में भी नहीं वे थकते |

कभी बनातें सड़कें-गलियाँ,

कभी तोड़ते कड़ी चट्टान

करते कभी आराम नहीं ,

श्रम साधक को विश्राम नहीं |


मेहनत हीं है उनकी रीत ,

लेते नहीं कभी वे भीख |

मेहनत से ही खाते हैं ,

चौराहे पर सो जाते हैं |

कर्म में रहते सदा वे लीन,

आजीवन रहतेे वे दीन |

मिलता उचित सम्मान नहीं ,

श्रम साधक को विश्राम नहीं |


नंगे पाँव चलाते रिक्शा ,

नापते मीलों दूर सफर,

मंजिल तक सबको पहुचाते,

स्वंय की मंजिल से होते दूर |

कभी बनाते अद्भुत ताज़,

फिर भी दाने को मोहताज़

बेवस व लाचारी में भी,

स्वाभिमान से समझौता स्वीकार नहीं,

श्रम साधक को विश्राम नहीं |


कहीं कोई पूँजीवादी,

ऐय्यासी में होते चूर |

कहीं उड़ाते पैसे, तो

कभी चैन की निद्रा से होते दूर |

वहीं कोई मजदूर,

सुख- सुविधाओं से दूर |

रहते वे खुशहाल,

चैन की नींद वे सोते |

नींद की गोली उन्हें स्वीकार नहीं,

श्रम साधक को विश्राम नहीं |


बेटियाँ उनकी करती मजदूरी,

वस्त्र भी होते फटेहाल

इन सबसे दूर ,

कर्म में रहती वे मगरूर ,

कहीं कोई भेड़िये सी नजर,

नोचने को रहते तैयार..

हाय ! कैसी विडंबना,

मानवता भी इनसे ,

होती शर्मशार नहीं,

इन साधकों की,

सुनता कोई गुहार कहाँ ?

श्रम साधक को विश्राम कहाँ ?


स्वरचित मौलिक : कमला सिंह🙏

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श्रम साधक को विश्राम नहीं

17 मई 2020
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श्रम साधक को विश्राम नहींकडी़ धूप में मेहनत करते , सर्दी में भी नहीं वे थकते |कभी बनातें सड़कें-गलियाँ, कभी तोड़ते कड़ी चट्टानकरते कभी आराम नहीं , श्रम साधक को विश्राम नहीं |मेहनत हीं है उनकी रीत ,लेते नहीं कभी वे भीख |मेहनत से ही खाते हैं ,चौराहे पर सो जाते हैं |कर्

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श्रम साधक को विश्राम नहीं

17 मई 2020
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श्रम साधक को विश्राम नहींकडी़ धूप में मेहनत करते , सर्दी में भी नहीं वे थकते |कभी बनातें सड़कें-गलियाँ, कभी तोड़ते कड़ी चट्टानकरते कभी आराम नहीं , श्रम साधक को विश्राम नहीं |मेहनत हीं है उनकी रीत ,लेते नहीं कभी वे भीख |मेहनत से ही खाते हैं ,चौराहे पर सो जाते हैं |कर्म में रहते सदा वे लीन, आजीवन रहत

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वंदना

17 मई 2020
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हे जगज्जननी मातु, सुन ले हमारी अर्चन |हे वीणावादिनी माँ , सर्वस्व तुझपे है अर्पण ||अज्ञानता मिटा दे , तू कष्ट सारे हर ले |कर दे प्रकाशित जीवन,तम को तू सारे हर ले ||संपूर्ण सृष्टि तुझको, आह्वान कर रहा हैै |देर ना कर अब तू , नव चेतना तू भ

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वंदना

17 मई 2020
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हे जगज्जननी मातु, सुन ले हमारी अर्चन |हे वीणावादिनी माँ , सर्वस्व तुझपे है अर्पण ||अज्ञानता मिटा दे , तू कष्ट सारे हर ले |कर दे प्रकाशित जीवन,तम को तू सारे हर ले ||संपूर्ण सृष्टि तुझको, आह्वान कर रहा हैै |देर ना कर अब तू , नव चेतना तू भर दे ||हे विद्यादायिनी माँ, सुन ले मेरी गुजारिश |ये विश्व रो रहा

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