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माना कि न थी नसीब के खाते में खुशहालियां,बर्बादियों को भी न जाने लगी ये किसकी नज़र है।

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<p>माना कि न थी नसीब के खाते में खुशहालियां,</p><p>बर्बादियों को भी न जाने लगी ये किसकी नज़र है।</p>

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Shreedhar के लेख

दिल का दिया जला सको तो....

13 नवम्बर 2021
1
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<p><strong>रोज आया-जाया करते हो आंगन तक मेरे,</strong></p> <p><strong>कभी मेरे घर पे ठहरो तो कहें।</

कैसे कह दूं कि सिर्फ तुमसे प्यार है

28 अगस्त 2021
7
3

<p><strong>कुछ बारिशों से प्यार है</strong></p> <p><strong>कुछ बादलों से प्यार है</strong></p> <p><s

न जाने लगी ये किसकी नज़र है

2 अगस्त 2021
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माना कि न थी नसीब के खाते में खुशहालियां,बर्बादियों को भी न जाने लगी ये किसकी नज़र है।--श्रीधर

तिजारती रिश्ते

2 अगस्त 2021
1
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अब कहां रह गई फुरसतें जमाने को जीने की,तिजारती रिश्तों के बीच कहां कद्र है सीने की। ---श्रीधर

एक शेर

2 अगस्त 2021
0
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बेसाख्ता तेरा नाम क्या आ गया जुबां पे सुबह-सबेरेआज दिन भर एक दर्जन गीत लिखे हैं नाम पर तेरे।--श्रीधर

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