"एक यह सियार है"
नम्रता को सरकारी नौकरी मिली तो परिवार खुशियों से झूम उठा। स्वाभाविक है नम्रता के अरमान फलने फूलने लगे और वह अपने हर कर्म को और भी लगन से करने लगी। कार्यालय में मित्र और उसके अधिकारी सब के सब उससे संतुष्ट थे। एक वर्ष कैसे बीत गया उसे पता भी न चला। जब उसके मुख्य अधिकारी ने अपने केबिन बुलाकर उसे दिली बधाई दी और बताया कि उसके एक वर्ष का सी.आर. की फाइल साहब के टेबल पर आ गई बोलो नम्रता इस बार क्या लिखूँ पूरा का पूरा वर्ष बीत गया और तुमने ऐसा क्या किया है कि मैं इसमें लिखूँ, बताओ जो कहोगी लिख दूँगा, इस बार तुम्हारी मर्जी का लिखा जाएगा। असमंजस में घिरि नम्रता की नजरें जमीन देखने लगी और उसने धीरे से कह दिया, सर आप जो कहते हैं वह मै लगन से करती ही हूँ आप जो उचित समझें वह लिखें। मैं तो अच्छा ही लिखना चाहता हूँ पर कुछ अच्छा होना भी तो चाहिये। मेरी कलम को खुश कर दो, बस और क्या?। नम्रता क्या कहती, ठीक है सर बेहतरी के लिए कोशिश करूँगी।शाम हुई और नम्रता कार्यालय से अपने घर के लिए अपनी एक्टिवा पर निकली। सुनसान झाड़ियों वाली जिस सड़क पर वह रोज बिना डर के आया जाया करती थी आज अचानक एक खड़े सियार को देखकर डर गई। उसे लगा कि यह सियार अकेला पाकर उसपर हमला न कर दे। नम्रता उसे देख रही थी और सियार नम्रता को, शायद दोनों एक दूसरे से डर रहे थे। सियार को सड़क पार करनी थी तो नम्रता को अपना रास्ता। नम्रता ने हिम्मत से काम लिया और अपनी एक्टिवा को जोर से चला दिया तो सियार झाड़ी में दुबक गया और और नम्रता अपने पथ पर आगे बढ़ गई। नम्रता ने चैन की साँस ली और उसके मुँह से अनायास निकल गया। एक वो सी.आर. था एक यह सियार है।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी