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समन्दर में डूबी एक आशा (एक कविता)

2 अक्टूबर 2017

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इछाये डूबती उतरती है जीवन के समंदर में

कुछ अधूरी से कुछ पूरी से

हर पल ये डर पूरा न होने का डर

पूरी हो तो हर रिश्तें को खोने का डर

जीवन की लहरों में दुब न जाये सपने किसी अपने के

युही हे नही है डर हर कदम हर साँस पे


बस ये हे जीवन के हकीकत बन गया है

न किसी से शिकवा न करो कोई शिकायत

न आशा रखो न कोई उम्मीद जता

ये जो आशाये है बस ये ही तो

हर उलझन का सबब है

जीवन भरा है इसी उलझन के समन्दर में

हर आशा एक लहर की मानिंद उठती और गिरती

कुछ नया सबक देती कुछ याद दिलाती

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प्रिय देवेन्द्र आपकी पंक्तियाँ मन को छूने वाली हैं -- सस्नेह शुभकामना --------

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