कला ,संस्कृति
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टूटकर बिखर जाने वाले अपने प्रियजनों से जो सम्बन्ध...........क्या उन्हें सम्बन्ध कह सकते हैं ?नहीं ।वे तो महज़ सम्बन्ध हैं स्वार्थ के स्वार्थ पूरा हो जाये तो सम्बन्ध नहीं तो कुछ नहीं केवल घृणा ।एक ऐसी घृणा जो गले में अटका हुआ एक काँटा है