स्त्री अभिलाषा
चाह नहीं मैं क्रूर व्यक्ति,
अनपढ़ संग थोपी जाऊं ।
चाह नहीं पौधे की तरह,
जब चाहे जहां रोपी जाऊं ।।
चाह नहीं शादी की है,
जो दहेज प्रथा में मर जाऊं ।
चाह नहीं अपने अधिकारों,
से वंचित रह जाऊं ।।
हम अवला को कुछ और नहीं,
इज्जत व सम्मान मिले ।
वंचित ना हो अधिकारों से,
घर वर सरल समाज मिले ।।
तुम भूल गए लक्ष्मी दुर्गा को,
क्या इनके बलिदान रहे ।
बंद करो यह नारी शोषण,
क्यों कोख में बेटी मार रहे ।।
अभिनव मिश्रा