“दुसरो की गलतियों से सीखो, अपने ही अनुभव से सीखने को तुम्हारी आयु कम पड़ जाएँगी।
इस धरती पर तीन रत्न है, अनाज, पानी और मीठे शब्द – मुर्ख लोग पत्थरो के टुकडो को ही रत्न समझते है।
“वह जो अपने समाज को छोड़कर दुसरे समाज को अपनाता है वह उस राजा के सामान है जो अच्छे रास्ते को छोड़कर दुराचारी रास्ते को अपनाता है।
आचार्य चाणक्य