पूर्व से ही निर्मल भारत अभियान के नाम से यह योजना संचालित थी, किन्तु तब शौचालय बनवाने एवं अन्य कार्य के लिये जबरदस्ती नहीं किया जा रहा था। देश में नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार आयी उसने स्वच्छ भारत अभियान को ज्यादा तवज्जों दी और राज्य सरकारों को, राज्य सरकारों ने जिला सरकारों को और जिलाधिशों ने ब्लाॅक अधिकारियों को यह निर्देश दे डाले कि हर घर में शौचालय आवश्यक है, एक तिथि तय करके कि इतने दिनों में गांव को खुले शौच मुक्त कर देना है, जिसे अंग्रेजी में ओडीएफ ग्राम के नाम से पुकारा जाता है। सरपंचों पर दबाव डाला गया, सरपंचों ने साहुकारों से व्यापार ियों से कर्ज लेकर अपने गांवों में घर-घर शोचालय बनवा दिया और बनवा रहे हैं। जिन सरपंचों ने अथवा पंचायतों ने ऐसा नहीं किया वहां पंचायत की मुलभुत की राशि रोक दी गई, 11वें वित्त की राशि रोक दी गई है और कहते हैं कि हम सारे कार्य देशहित में कर रहे हैं। मेरा सीधा सा सवाल है पंचायत का जो जायज हक है मुलभुत की राशि पर उसका हक है, 11वें वित्त की राशि पर हक है लेकिन शौचालय नहीं बना तो आपने राशि नहीं दिया। हुजूर जिन ग्राम पंचायतों ने 100 प्रतिशत घरों में शौचालय बनवा लिया, उन्होंने कौन-सा तीर मार लिया। घर-घर पानी की उपलब्धता नहीं है, कई स्थानों पर यह स्थिति है कि लोग पेयजल हेतु पानी किसी तरह इंतजाम करके घर चलाते हैं, वहां पर शौचालय के लिये पानी क्या मोदी सरकार द्वारा, राज्य की सरकार द्वारा और जिला प्रशासन एवं ब्लाॅक अधिकारियों द्वारा आसमान से बरसाये जायेंगे। चलिये ठंड के दिनों में तो किसी तरह स्थिति को काबु में कर लिया जायेगा, किन्तु गर्मी के दिनों में जब लोगों को कई किलोमीटर का सफर तय करके पेयजल एवं अन्य कार्य हेतु पानी जुटाना पड़ता है तब इन शौचालय में पानी कहां से आयेंगे। समझ में नहीं आता है यह सरकार क्या करना चाहती? मित्रों/भाई,बहनों अच्छा होता ग्राम पंचायतों में सामुदायिक शौचालय की बात की जाती हर मुहल्ले में एक सामुदायिक शौचालय का निर्माण होता, जल की व्यवस्था हेतु ट्यूबवेल अन्य माध्यम लगाये जाते, लोगों को शौचालय के उपयोग के लिये जागरूक किया जाता तथा ग्रामीण स्तर की निगरानी समिति होती, कम कीमत पर एक अच्छी व्यवस्था को लागू किया जा सकता था। किन्तु सरकार का ध्येय केवल इतना है कि बस हमारी योजना लागू होनी चाहिए, चाहे उसके लिये सरकारी कर्मचारी और अधिकारी गुण्डागर्दी करें या फिर कुछ भी करें। प्रशासनिक गुण्डागर्दी तो इसी को कहते हैं कि आप पंचायतों से जबरन शौचालय बनवाने उनके मुलभुत की राशि रोक लेते हैं, 11वें वित्त की राशि से विकास कार्य की स्वीकृति नहीं मिलती। लेकिन फिर भी यदि इस सच्चाई को सामने लाया जाये तो लोग या तो देशद्रोही घोषित कर देते हैं या फिर नक्सल और आतंकी विचारधारा का। किन्तु जो सरकार तुगलकी फरमान की तरह चाहे जो हो जाये अपने आदेश को प्रशासन का गलत तरिके से उपयोग करके मनवाती है, वह सरकार क्या है, असली गुण्डागर्दी तो प्रशासन के लोग कर रहे हैं। भईया स्वच्छता होना चाहिए, हम भी स्वच्छता के पक्षधर हैं, किन्तु इसके लिये यथार्थ के धरातल पर यहां की आवश्यकता और उपलब्धता को ध्यान में रखकर योजना बनायईये, तो सभी हाथों हाथ लेंगे, अन्यथा शौचालय तो बन जायेंगे, शौचालय घर में बैठक लोग खाना खायेंगे और शौच के लिये वहीं जायेंगे जहां पहले से जाते थे? (भाई कम से कम छत्तीसगढ़ में तो यही हो रहा है, बाकि जगहों पर क्या हो रहा है आप सभी जानें?
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