पीर बढ़ावे जब चोट करें अपने सखी साखा, चाकरी करें ना मिले, मान स्वाभिमान से ज्यादा। खुद की समझ से बढ़ावे पैर, नासमझी में उलझ समझदार से, कौन चाकर कमावे बैर ... अनपढ़ माली पाल पोस कर बगिया, अनपढ़ हाली खेत जोत कर अन्न उपजाए बढ़िया... पढ़ें लिखे बाबू साहेब पेन की नोंक से कुचले, ज़मीनी दुनिया... पढ़ें लिखों के पेन ने बढ़ाया है कुदरत के बासिदों का पैन(दर्द)। जवानी किसानी और देश भक्ति की दिवानी होती थी। आज वही जवानी नशे, आतंक, बेरोजगारी, अश्लीललता से लिप्त हो, अपराध की आपाधापी में गुम हो रही। राधा, मीरा, रुक्मिणी तीनों का एक कान्हा, जग में प्रेम, दर्शन, प्रणय सूत्र का प्रतीक.. अध्यात्म के रहस्य में आत्मा शरीर का संयोग "जन्म" आज लज्जित हो रहा। कचरे के ढेर में मानव का अंश, नैतिक, चरित्रहिनता की खुली कहानी कह रहा। करो ना ऐसे कर्म, जो कोरोना को दे बुलावा, मुंह छुपाने को मास्क कपड़ा कम रह जाएं।