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sanjay की पुस्तकें

sanjay के लेख

भिक्खु (भिक्षु) कौन ?

7 अगस्त 2018
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मूल पालि —धम्मपद (भिक्खुवग्गो) हत्थसंयतो पादसंयतो, वाचासंयतो संयतुत्तमो. अज्झत्तरतो समाहितो, एको सन्तुसितो तमाहु भिक्खुं. हिन्दी अर्थ —जो हाथ, पैर और वाणी में संयत है, जो उत्तम संयमी है, अपने भीतर की (सच्चाईयों को) जानने में लगा है, समाधियुक्त, एकाकी और संतुष्ट है, उसे #भिक्खु (भिक्षु) कहते हैं.___

अष्टांगिक मार्ग

7 अगस्त 2018
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सम्मा दिट्ठी (सम्यक दृष्टि) आष्टांगिक मार्ग का प्रथम और प्रधान अंग है।सम्मा दिट्ठी (सम्यक दृष्टि) का अर्थ है, कर्मकांड के क्रिया-कलाप की प्रभावोत्पादकता में विश्वास न रखना और शास्त्रों की पवित्रता की मिथ्या-धारणा से मुक्त होना।सम्मा दिट्ठी (सम्यक दृष्टि) का अर्थ है, अंधविश्वास तथा अलौकिकता का त्याग

बुद्ध पूर्णिमा

29 अप्रैल 2018
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💐धम्म देशना💐 मार कौन है?"बाहु सहस्समभिनिम्मित सायुधन्त,गिरिमेखलं उदित-घोर-ससेन मारं।दानादि धम्मविधिना जितवा मुनिन्दो,तं तेजसा भवतु ते जयमङ्गलानि।।"- जयमंगलअट्ठगाथाजिन मुनीद्र (बुद्ध) ने सदृढ हथियारों को धारण किए हुए चार सहस्त्र भुजावाले, गिरिमेखला नामक हाथी पर चढ़े हुए अत्यन्त भयानक सेना सहित

आसिफ़ा

15 अप्रैल 2018
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आसिफ़ासीढ़ियों से उतरते वक्तहड़बड़ी में पैर फिसलाऔर ख़रोंच के साथ मोच आईये तो ठीक हो जाएगामैं ज़िंदा हूँ अभी!आसिफ़ा का क्या होगा?हफ़्ते भर जंघाओं के बल पूर्वक मर्दन सेपत्थर से बन गयी होगी।पत्थर के देव के सामनेनिर्भया की चित्रकारीबेरंग भंग मर्यादाओं के तारढोंगी है असली चित्रकार!केशर की खुशबूकहवा का प्यालापर

आसिफ़ा

15 अप्रैल 2018
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आसिफ़ासीढ़ियों से उतरते वक्तहड़बड़ी में पैर फिसलाऔर ख़रोंच के साथ मोच आईये तो ठीक हो जाएगामैं ज़िंदा हूँ अभी!आसिफ़ा का क्या होगा?हफ़्ते भर जंघाओं के बल पूर्वक मर्दन सेपत्थर से बन गयी होगी।पत्थर के देव के सामनेनिर्भया की चित्रकारीबेरंग भंग मर्यादाओं के तारढोंगी है असली चित्रकार!केशर की खुशबूकहवा का प्यालापर

बुधना

9 अप्रैल 2018
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घोड़ी पर चढ़ाबुधना आज बहुत खुश हैसुगना से उसकी शादी होने को हैतैयारियां जोरो पर है।बारात निकलने तो तैयार हैबाजे बज रहे हैंबाराती सज रहे हैंघोड़ी को भी सजा रहे हैं।पुलिसिया दल भी भारी संख्या में हैगाँव छावनी बना हुआ हैबुधना घोड़ी पर चढ़ता हैमाई बेटे तो चुम्मा देती हैबहन भाई हेलमेट पहनती हैबाप घोड़ी के रस्स

ज़िंदा गई जलाई कुछ तुमसे पूछने आयी

11 मार्च 2018
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ज़िंदा गई जलाई कुछ तुमसे पूछने आयी!हाँ भी न पूछाना भी न पूछाकोमल जंघाओं का मर्दन करकेस्त्रीत्व का अपरदन करकेजिंदा गई.....जबरन काबू में करकेभांग पिलाक़ेरंगीन बनाकेयौन कुंठा का शिकार बनायाजिंदा गई.......प्रेम के जगह वासना मिलीप्रेमी के जगह भेड़िया मिलाविश्वास के जगह धोखा मिलानर के जगह मादाभक्षी मिलाजिंद

झरोखा

23 सितम्बर 2015
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यूँ न था मैं गुमसुम पहले, जब तुम मिले बरसात की साँझ,सीखा तुमसे मुस्कुराना गम में भी, तुम्हारी यादें कुछ अनकही सी है,मिलते थे तुम तो जब तो मन मंद मुस्कुराता था ,और गीत प्रीत के गाता था ,अब साथ मेरे केवल तुम्हारी यादों का झरोखा ही शेष है।

यादें

16 सितम्बर 2015
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गुमसुम सी तुम थी,एक शाम यूँ ही तुम्हे देखा बारिश की बूँदों से,तुम भींगी जा रही थी।था तुम्हे दूर जाना अपने निकेतन को,यह देख कवि का दिल हुआ विभोर और करने लगा शोर,खा जाके हे सखी! ये लो रेनकोट धारण करो इसे,था रेनकोट बढ़ा,सखी को रेनकोट पहनना याद है।

यादें

16 सितम्बर 2015
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गुमसुम सी तुम थी,एक शाम यूँ ही तुम्हे देखा बारिश की बूँदों से,तुम भींगी जा रही थी।था तुम्हे दूर जाना अपने निकेतन को,यह देख कवि का दिल हुआ विभोर और करने लगा शोर,खा जाके हे सखी! ये लो रेनकोट धारण करो इसे,था रेनकोट बढ़ा,सखी को रेनकोट पहनना याद है।

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