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anamika के बारे में

समय के थपेङों से झूझकर अपना अस्तित्व तलाशनें की कोशिश मेंव्यतीत होता क्षण

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anamika के लेख

मन को चिन्ता मुक्त रखिए

1 अक्टूबर 2015
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शारीरिक व मानसिक विकार का कारण चिंता और तनाव होता है।जो धीरे - धीरे मीठे जहर की तरह तन मन को विनाश के कगार पर ले जाती है।चिन्ता व तनाव के रहते हमारा तन के साथ मन भी कई लाइलाज भयंकर बीमारियों का शिकार हो जाता है।जीवन खंड खंड होकर दुविधा ग्रस्त हो जाता है।हम एक उद्धेश्य हीन जीवन की ओर अग्रसर होने लगते

कैसे निखारे व्यक्तिगव ?

29 सितम्बर 2015
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हमारा दयालु नजरिया और लोगों के प्रति सदभाव सुरक्षा कवच की तरह कङवे, कुटिल नकारात्मक, हानिकारक विचारों के विरुद्ध कार्य करता है।हमें सुखमयी जीवन और खुशगवार बनने के लिए हमारी मानसिक सोच कटुता हीन और चालाकी रहित होना चाहिए, तभी हमारे जीवन में दुख की घटा छटेंगी।जीवन में सर्वश्रेष्ठ कार्य तभी किया जा सकत

सफलता के लिए आत्मसम्मान व आत्मविश्वास का महत्व

27 सितम्बर 2015
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सफल होने के लिए हमें सफलता के बारे में ही सोचना चाहिए।मन में विश्वास बैठा लेना चाहिए कि हम सफलता के लिए ही पैदा हुए हैं और सफलता प्राप्त करके ही रहेंगे।मनमस्तिष्क में जैसा हम सोच लेते हैं वैसे ही हम बन जाते हैं।सफलता प्राप्त करने के लिए हमें सकारात्मक सोचना चाहिए।स्वयं को महत्व देते हुए मूल्यवान समझ

जिन्दगी की पाठशाला

26 सितम्बर 2015
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आपकी जिंदगी की पाठशाला में ऐसा कोई भी श्यामपट् नही है, जिस पर आपके जीवनयापन के उद्देश्य लिखें हो या ऐसा कोई मिशन या टारगेट नहीं लिखा होता, जिसके क्रमगत जीवन गुजारकर सुखी, संतोष, खुशी प्राप्त कर सके।व्यक्ति को स्वयं समझना चाहिए कि वह इस दुनिया में क्यों आया है? उसे किस तरह से जीवन व्यतीत करना है।हमे

हिन्दी की हिन्दी कैसे रोके?

14 सितम्बर 2015
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हिन्दी का पखवाड़ा या पितृपक्ष 14सितंबर तक चलता है।प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी हम 'हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है'के नारों के साथ हिन्दी दिवस मनाया जाएगा। लम्वे -लम्वे भाषणों के साथ अंत में शपथ ली जाएगी कि-'हम हिन्दी में ही काम काज करेकरेगें, राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए तथा समस्त जन को एकता के

"मैं और मेरे गुरू"

31 जुलाई 2015
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क्षण प्रतिक्षण, जिन्दगी सीखने का नाम हैं, सबके जरूजरूरी नहीं, गुरू ही सिखाए, जिससे शिक्षा मिले,वही गुरू कहलाए। जीवन पर्यन्त गुरूओं से रहता सरोकार, हमेशा करना चाहिए जिनका आदर सत्कार। प्रथम पाठशाला की मां गुरू बनी, दूजी पाठशाला के शिक्षक गुरू बने। सामाजिकता का पाठ मां ने पढाया, शैक्षणिक स्तर

पश्चाताप के आंसू

28 जुलाई 2015
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बात उन दिनों की हैं जब मैं स्कूल में बच्चों को पढाती थी।भूलकर भी कभी किसी का बुरा करने की सपने में भी नही सोचा था ।विशेष कर लडकियों के प्रति, वो भी निम्न वर्ग व गरीब तबके खी बच्चियों के प्रति विशेष लगाव था।वो आज भी हैं।कक्षा मे नाजिया नाम की लडकी थी ।भोली भाली लेकिन पढाई में बहुत ही कमजोर थी।लाख कोश

सुदृढ रिश्तों के लिए जरूरी है-सतत व सामयिक मूल्यांकन

19 जुलाई 2015
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हमारा जीवन सहयोग और सहभागिता पर आधारित होता हैं।जीवन में समरसता व सरसता के लिए हमें रिश्तों को सुदृढ़बनाना अत्यन्त आवश्यक होता हैं।वैसे तो हम जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त मूल्यांकन करते रहते हैं।क्योकि मूल्यांकन विहीन , निरुद्धेशजीवन होता हैं।मूल्यांकन करते रहने से ही हम, अपने जीवन के उद्धेश्य की प्र

क्या बस्तें का बोझ कम करना ही समस्या का हल हैं?

10 जुलाई 2015
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स्कूल खुलते ही अपने-अपनेपन तरह से सरगर्मियां शुरू हो जाती हैं।विशेषकर मीडिया वालों की।इस वर्ष बच्चों का वजन और उनके बस्तें का वजन। इस मुद्दे पर आज से करीब दो महीने पहले से ही चर्चा का विषय चल रहा हैं।किताबों का बोझ कम करने पर अधिक जोर दिया जा रहा हैः।इसका आशय स्पष्ट नहीं किया गया कि किताबों के पाठ क

आस्था

29 मई 2015
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राशन के नाम पर कुछ ना पा,महंगाई का रोना रोते हुए घर से सब्जीमंडी की राह पकङ ली।आसमान छूते सब्जी के दामों को सुन ,इधर से उधर इस फिराक मे घूमने लगी कि कही तो गरीबों का आलू मिल ही जाएगा ।लेकिन यह क्या थोङा ठीकठाक दिखा, तो दाम ,गांठ में बंधे रूपयों पर भारी पङ गया।काम-चलाऊ सब्जी ले वह मन ही मन बुदबुदात

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